डेविड ईस्टन के राजनीतिक व्यवस्था

राजनीति की समझ और विश्लेषण में डेविड ईस्टन का योगदान आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। उनकी राजनीतिक व्यवस्था के सिद्धांत ने राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन को एक नई दिशा दी है। इस लेख में हम डेविड ईस्टन के राजनीतिक व्यवस्था के सिद्धांतों को विस्तार से समझेंगे और देखेंगे कि उनका प्रभाव किस प्रकार आधुनिक राजनीतिक अध्ययन और व्यवहार में देखने को मिलता है।

राजनीतिक व्यवस्था की जटिलताओं को समझना और उसका विश्लेषण करना हर राजनीतिक वैज्ञानिक के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। डेविड ईस्टन ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए एक ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया जो राजनीतिक व्यवस्था को एक जीवित, गतिशील प्रणाली के रूप में देखता है। उनके सिद्धांतों ने यह स्पष्ट किया कि राजनीतिक व्यवस्था केवल नियमों और संस्थाओं का समूह नहीं है, बल्कि यह एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न तत्व एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं और प्रतिक्रिया देते हैं।

 


 डेविड ईस्टन के राजनीतिक व्यवस्था सम्बन्धी प्रतिमान का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए

अथवा ' डेविड ईस्टन का पद्धति बिश्लेषण अध्ययन पर टिप्पणी लिखिए अथवा ' व्यवस्था सिद्धान्त ' से आपका क्या तात्पर्य है ? डेविड ईस्टन के द्वारा इस सिद्धान्त के विकास तथा राजनीति शास्त्र में उसके प्रयोग हेतु दिये गए योगदान का उल्लेख कीजिए अथवा डेविड ईस्टन द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था सिध्दांत या परीक्षण कीजिए  

डेविड ईस्टन ( David Easton ) ने व्यवस्था की शोध सम्बन्धी आवधारणा सन् ५३ में प्रस्तुत की थी यह अवधारणा उसके प्रसिद्ध ग्रन्थ ' राजनीतिक व्यवस्था ' ( The Political System ) में प्रतिपादित की गयी ईस्टन ने अपने अध्ययन को राजनीतिक व्यवस्था पर आधारित किया है F व्यवस्था सिद्धान्त सामाजिक विज्ञानों में जीवशास्त्र से आया है मानवशास्त्र , समाजशास्त्र और मनोविज्ञान मे इसके

प्रचलन से प्रेरित होकर डेविड ईस्टन ने उस अवधारणा को राजनीति में प्रयुक्त किया जिसे ' राजनैतिक व्यवस्था ' की संज्ञा दी गई ईस्टन ने राजनीतिक व्यवस्था की परिभाषा करते हुए लिखा है किराजनीतिक व्यवस्था स्वयं में परिपूर्ण सत्ता है जो उस वातावरण या परिवेश , जिससे वह घिरी हुई होती है जिसके अन्तर्गत वह परचलित होती है , स्पष्टतः पृथकनीय रहती है " ईस्टन के ही अनुसार , “ राजनीतिक जीवन एक निश्चित राजनीतिक व्यवस्था है जो पूरी सामाजिक व्यवस्था का एक पहलू है " इस प्रकार ईस्टन के मतानुसार राजनीतिक व्यवस्था सम्पर्ण सामाजिक व्यवस्था का एक हिस्सा है तथा इसमे राजनीतिक जीवन व्यवस्थित है ईस्टन का पद्धति या व्यवस्था विश्लेषण ( Easton's System Analysis ) : ईस्टन के पद्धति विश्लेषण को अनेक नामों से पुकारा गया है  

( i ) निवेश - निर्गत विश्लेषण ( Input output analysis ) , 

( ii ) व्यवस्था सिद्धान्त ( System Analysis ) , 

( iii ) सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त का प्रवाह रूप ( Flow Model of General System Theory ) यंग ( Young ) ने इस बड़े व्यवस्थात्मक उपागम की संज्ञा दी है यह राजनीति विज्ञान की मौलिक दृष्टि द्वारा प्राप्त किया गया है इसे किसी अनुशासन द्वारा प्राप्त नहीं किया गया है  

मीहान ( Meehan ) ने ईस्टन को राजनीति विज्ञान का सर्वाधिक सुसंगत और सुव्यवस्थित प्रकार्यवादी कहकर पुकारा है उसके विश्लेषण की आधारभूत इकाई व्यवस्था है ईस्टन ने अन्तरं ( Inter ) आन्तर ( Intra ) व्यवस्थाओं के व्यवहार को अपने अध्ययन का विषय बनाया हैं ईस्टन का आगत / निवेश निर्गत विश्लेषण ( Easton's Input output Analysis ) : राजनीतिक व्यवस्था की ईस्टन द्वारा की गई व्याख्या को ' इनपूट - आउटपूट ' विश्लेषण का नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि वह राजनीतिक व्यवस्था को ऐसे तन्त्र के रूप में देखता है जिसमें माँगों के निवेश आते हैं और राजनीतिक व्यवस्था इनका संसाधन कर रूपान्तर करती है व्यवस्था विश्लेषण के प्रयोग के सम्बन्ध में उसका दृष्टिकोण इस अर्थ में रचनात्मक है , क्योंकि उसने व्यवस्था को , सदस्यों को समूह के रूप में नही बल्कि प्रक्रियाओं के संकलन के रूप में लिया है स्वयं ईस्टन ने लिखा है किराजनीतिक , व्यवस्था किसी भी समाज में अन्ततः क्रियाओं की एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से बाध्यकारी अथवा अधिकाधिक निर्णय लिये जाते हैं  

ईस्टन केवल राजनैतिक अन्तःक्रियाओं के सैट को ही अपने विश्लेषण का विषय बनाता है अन्तः क्रियाओं के सैट से ईस्टन की चार महत्वपूर्ण अवधारणाएँ निकलती है , जिन्हें निवेश - निर्गत विश्लेषण का प्रमुख आधार कहा  जाता है ये हैं 

  • प्रथम , व्यवस्था ( System ) 
  • द्वितीय , पर्यावरण ( Environment ) 
  • तृतीय , अनुक्रिया ( Response ) तथा 
  • चतुर्थ , प्रति - सम्भरण या प्रदाय ( Feed back ) यहाँ पर हम उपर्युक्त चारों अवधारणाओं का विवेचन कर ईस्टन केव्यवस्था सिद्धान्त का विश्लेषण करने का प्रयास करेंगे

) व्यवस्था ( System ) - ईस्टन के अनुसार , राजनीतिक व्यवस्था अन्तः क्रिया करने वाली उन रचनाओं , प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं का सैट है जो या तो पर्यावरण के बीच चलती रहती है या आपस में चलती रहती हैं ईस्टन की व्यवस्था अवधारणा को निम्नलिखित प्रमुख विन्दुओं के अन्तर्गत समझाया जा सकता है

( i ) खुली हुई और अनुकूलनशील वह सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं को खुली हुई और अनुकूलशील मानता है साथ ही अन्य दूसरी व्यवस्थाओं से यह घिरी हुई भी है इसलिए इसके खुले होने का परिणाम यह होता है कि इसमें बाहर से ! धाराप्रवाह के रूप में ऐसी घटनाएँ और प्रभाव आते रहते हैं जो उन परस्थितियों का निर्माण करती हैं , जिनमें राजनीतिक व्यवस्थाओं के सदस्यों को काम करना पड़ता है

राजनीतिक व्यवस्था अन्य व्यवस्थाओं से घिरी होने के कारण बाहर के प्रभाव उस पर लगातार दबाव डालेंगे ऐसी स्थिति में राजनैतिक व्यवस्था में इतनी सामर्थ्य होनी चाहिए कि वह बाहर से आने वाले संकटों का सामना कर सके और अपने को उन परिस्थितियों के अनुकूल ढाल सके इसी कारण ईस्टन ने राजनैतिक व्यवस्था की अनुकूलनशीलता पर बहुत जोर दिया ! है ईस्टन का विश्वास है कि प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था के आन्तरिक संगठन में अनुकूलशीलता की अद्भूत क्षमता होती है .. 

राजनैतिक व्यवस्थाएँ अपने अन्दर ऐसी अनेक प्रविधियों ( Mechanisms ) का विकास कर लेती हैं , जिनके सहारे वे पर्यावरण के समक्ष टिके रहने का प्रयत्न करती है , अपने व्यवहार को नियन्त्रित करती हैं , अपने आन्तरिक ढाँचे को बदल लेती हैं तथा अपने मूलभूत उद्देश्यों तक परिवर्तन कर डालती हैं  

( ii ) समन्वयात्मक अवधारणा ईस्टन की अवस्था सम्बन्धी अवधारणा समन्वयात्मक है वह एक व्यापक शब्द हैं जिसमे सभी प्रकार की औपचारिक - अनौपचारिक क्रियाएँ , संरचनाएँ , प्रक्रियाएँ , मूल्य तथा आचार आदि जाते हैं  

( iii ) विश्लेषणात्मक अवधारणा ईस्टन की राजनीतिक व्यवस्था अवधारणा विश्लेषणात्मक है मानव राजनैतिक व्यवहार के साथ अमूर्त रूप से जुड़ी हुई है  


) पर्यावरण ( Environment ) - ईस्टन का कहना है कि राजनीतिशास्त्री को अपना समस्त ध्यान उन प्रक्रियाओं पर देना चाहिए जो पर्यावरण से राजनीतिक व्यवस्था में आने वाले अनेक प्रकार के प्रभावों के संसाधन परिवर्तन तथा उनसे होने वाली प्रतिक्रियाओं को जानने में लगी हुई हैं ईस्टन ने इन प्रक्रियाओं को ' राजनैतिक व्यवस्थाओं की जीवन प्रक्रिया ' का नाम दिया है और कहा है कि इनके बिना कोई व्यवस्था टिक नहीं सकती पर्यावरण दो प्रकार का हो सकता है प्रथम , समाज बाह्य ( Extra Societal ) तथा द्वितीय , समाज अन्तर ( Intra Societal ) , समाज बाह्य पर्यावरण में अन्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक व्यवस्थाएँ तथा अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक व्यवस्थाएँ आदि शामिल की गई है समाज अन्तर ( Intra Social ) पर्यावरण में परिस्थितिक ( Ecological ) व्यवस्थाएँ शामिल की गई हैं  

) अनुक्रिया ( Response ) प्रत्येक राजनैतिक व्यवस्था अपने पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया करती हैं पर्यावरण से अपनी ओर जाने वाले संकटों दबावों का सामना करती है तथा इसके अतिरिक्त समाज को सुव्यवस्थित एवं सतत बनाए रखने हेतु कुछ अन्य क्रियाएँ भी करती है इन समस्त क्रियाओं को अनुक्रिया शीर्षक के अन्तर्गत रखा गया है सुविधा की दृष्टि से इन अनुक्रियाओं को निम्न तीन शीर्षको के अन्तर्गत रखकर विवेचित किया गया है

( a ) माँगें ( Demands ) ईस्टन ने माँग की व्याख्या करते हुए लिखा है कि " वह जनमत की इस सम्बन्ध में अभिव्यक्ति है कि जिन लोगों के पास निर्णय लेने का अधिकार हैं उन्हें किसी विषय विशेष के सम्बन्ध में अधिकाधिक आवंटन करना चाहिए अथवा नहीं । " दूसरे शब्दों में जनसमाज द्वारा राजनैतिक व्यवस्था से कुछ कार्य , दायित्व , कानून निर्माण तथा सेवाओं की पूर्ति के लिए जो प्रदर्शन आदि कराए जाते हैं , उन्हें माँगे कहा जाता है । ये प्रायः सार्वजनिक प्रकृति की होती है ।

( b ) समर्थन ( Support ) राजनैतिक व्यवस्था को निरन्तरता तथा अनुरक्षण के लिए केवल अपने नियामक तत्वों पर ही निर्भर नहीं रहना पड़ता , बल्कि इसके अतिरिक्त कुछ अन्य साधनों को भी काम में लेना पड़ता है , इन्हें डेविड ईस्टन ने समर्थन नाम दिया है ईस्टन के अनुसार , निवेश के रूप में केवल माँगे ही नहीं होती , बल्कि कुछ समर्थनकारी तत्व भी होते हैं इस समर्थन के अभाव में राजनैतिक व्यवस्था अपने आपको अधिक समय तक बनाए नहीं रख सकती यह समर्थन प्रकट औरअप्रकट दोनों ही प्रकार का हो सकता है इसके साथ ही यह समर्थन सीमित और सम्पूर्ण भी हो सकता है यह समर्थन राजनीतिक व्यवस्था की तीन विशिष्ट वस्तुओं के प्रति होता है -

( i ) राजनैतिक श्रम विभाजन पर आधारित राजनैतिक समुदाय के विषय में ,

( ii ) राजनैतिक व्यवस्था के आधारभूत मूल्यों और मानकों के प्रति ,

( iii ) राजनैतिक प्राधिकारियों के प्रति समर्थन जितना व्यापक होगा व्यवस्था उतनी ही अधिक मजबूत होगी समर्थन पर दबाव की स्थिति में वह अनेक प्रक्रियाएँ अपनाती हैं - जैसे संरचनात्मक तत्वों में परिवर्तन करना , प्रतिनिधित्व प्रणाली को बदल डालना , दलीय व्यवस्था को परिवर्तित कर देना तथा संविधान में संशोधन कर देना आदि

( ii ) माँगों का रूपान्तरण ( Conversion of Demands ) माँगों के रूपान्तरण की प्रक्रिया उन तरीकों को कहा जाता है जिनसे राजनीतिक व्यवस्था अपने समर्थनों और साधनों का प्रयोग , सत्ताओं या शासकों की सम्बोधित माँगों को अस्वीकार करने , उनको पूरा करने या उनमें हेर - फेर करने के लिए करती है ईस्टन ने निम्न चार विधियों का उल्लेख किया है

( ) कुछ माँगे प्रत्यक्ष रूप से , नकारात्मक या सकारात्मक ढंग से पूरी कर दी जाती हैं जैसे- नौकरी दे दी जाती है या इसके लिए मना कर दिया जाता है

( ) अधिकांश माँगे पहले एक सामान्य माँग में बदल जाती हैं और उसका सामान्य नियम बनाकर सामान्य समाधान कर दिया जाता है

( ) कई माँगो को सामान्य हित के मुद्दो में परिवर्तित कर दिया जाता है जिससे वे सामान्य नियम बनाने के स्तर तक महत्व प्राप्त कर सके और उसके बाद सामान्य नियम बनाकर उनका सामान्य समाधान कर दिया जाता है

( ) माँगो की पहले संख्या कम की जाती है और फिर उन्हें लोक कल्याण की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं में परिवर्तित करके पूरा कर दिया जाता है

( iii ) निर्गत ( Output ) - निर्गत संकल्पना को स्पष्ट करते हुए ईस्टन ने लिखा है कि , “ अधिकारियों के निर्णय और आदेश राजनीति व्यवस्था के निर्गत हैं , जो व्यवस्था के सदस्यों के व्यवहार से उत्पन्न परिणामो को पर्यावरण के लिए एक संगठित रूप देने का कार्य करते है " निर्गत केवल उस व्यापक समाज की घटनाओं को प्रभावित करते हैं जिसकी राजनीति व्यवस्था एक अंग है , परन्तु उस प्रक्रिया में वे उन सभी निवेशों को भी प्रभावित करते है जो एक के बाद एक करके राजनैतिक व्यवस्था मे प्रवेश करते हैं निर्गत कई रूपों में प्रकट हो सकते हैं जैसे कर उगाहना , सार्वजनिक आचरण के नियम , सार्वजनिक सम्मान , वस्तुओं तथा सेवाओं आदि के नियम तथा इनके सार्वजनिक वितरण के नियम आदि  

) प्रदाय / प्रतिसम्भरण पाश यह एक गतिशील प्रक्रिया है इस प्रक्रिया के माध्यम से पर्यावरण की प्रक्रिया व्यवस्था के पास इस रूप में आती है कि प्रतिसम्भरण या प्रदाय की प्रक्रिया के प्रकाश में वह अपने व्यवहार को बदल ले इस पर व्यवस्था की निरन्तरता तथा अनुकूलता टिकी रहती है प्रतिसम्भरण या प्रदाय तंत्र निर्गतों के प्रभावों और परिणामों को पुनः व्यवस्था के भीतर निवेश के रूप में पहुँचाते रहते हैं यह निर्गतो के परिणामों को निवेशों के निरन्तर आगम ( Inflow ) के साथ जोड़ता रहता है यह प्रतिसम्भरण या प्रदाय प्रक्रियाएँ राजनैतिक व्यवस्था से उनके स्तरों पर होती रहती हैं , लेकिन ईस्टन का सम्बन्ध मुख्य रूप से सम्पूर्ण व्यवस्था से सम्बन्धित प्रतिसम्भरण पाशों से हैं प्रतिसम्भरण विश्लेषण को चार खण्डों में विभाजित किया जा सकता है प्रथम खण्ड में , प्रतिसम्भरण की परिस्थितियाँ आती है इसमें व्यवस्था की प्रक्रिया आती है ।। द्वितीय खण्ड मे प्रतिसम्भरण अनुक्रिया आती है यह माँग सन्तोष के स्तर से सम्बद्ध है तृतीय खण्ड में , प्रतिसम्भरण अनुक्रियाओं की राजनैतिक व्यवस्था में संचरण की अवस्था आती हैं चतुर्थ अवस्था में , प्राधिकारियों का विचार विमर्श आता है इसके अन्तर्गत प्राधिकारीगण प्रतिसम्भरण अनुक्रियाओं के प्राप्त होने पर निर्गत प्रतिक्रिया पर विचार - विमर्श किया जाता है

ईस्टन के व्यवस्था सिद्धान्त की आलोचना ( Criticism of Easton's Politial System Theory ) ईस्टन के राजनैतिक व्यवस्था सम्बन्धी विचारों की आलोचना विद्वानों ने अनेक आधारों पर की है कुछ प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं

) राजनैतिक व्यवस्था के स्थूल तथा सूक्ष्म व्यवस्थाओं के बीच भेद करने में असफल ईस्टन राजनैतिकव्यवस्था का स्थूल तथा सूक्ष्म ( संकल्पनात्मक ) व्यवस्थाओं के बीच अन्तर करने में असफल रहा है ईस्टन बात तो एक सूक्ष्म राष्ट्रीय व्यवस्था की करता है , परन्तु उसके विचार में स्थूल राजनैतिक व्यवस्था दिखाई देती है

) अत्याधिक सूक्ष्म , संदिग्ध , उलझी हुई तथा निरर्थक संकल्पना का प्रणेता प्रो . मीहान ने ईस्टन के राजनैतिक व्यवस्था सिद्धान्त की आलोचना करते हुए स्पष्ट शब्दों में लिखा है किपार्सन्स के समान ईस्टन भी सिद्धान्त का अर्थ स्पष्टीकरण के सन्दर्भ मे नहीं , संकल्पनात्मक संरचनाओं के निर्माण के सन्दर्भ में लेता है इसके परिणामस्वरूप जो अत्यधिक सूक्ष्म संरचना हमारे सामने उपस्थित होती है वह तार्किक दृष्टि से संदिग्ध , वैचारिक दृष्टि से उलझी हुई और आनुभविक शोध की दृष्टि से लगभग निरर्थक हैं "

) ईस्टन व्यक्ति को व्यक्ति के रूप में नहीं देख पाया है- ईस्टन यद्यपि व्यक्ति को अपने आनुभविक प्रेक्षक की इकाई बनाना चाहता है , लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि वह व्यक्ति को व्यक्ति के रूप में देख नहीं सका है इसको व्यक्ति में उसके व्यवहार में कोई रुचि नहीं है उसे तो व्यक्ति के व्यवहार के बीच की अन्तःक्रिया में ही रुचि है अर्थात् व्यक्ति राजनैतिक व्यवस्था के अनुरक्षण तथा विघटन के क्षेत्र में जो भूमिका निर्वाह करता है , ईस्टन का केवल उसकी उस भूमिका से सम्बन्ध रहा है इसका परिणाम यह हुआ है कि ईस्टन के व्यक्ति गुणविहीन दिखाई देते हैं उसकी राजनीति सारहीन दिखाई देती हैं

) अनुदारवादी और असहमतिवादी सिद्धान्त ईस्टन का व्यवस्था मॉडल केवल द्वितीय स्तर के परिवर्तनों का ही विश्लेषण कर पाता है वह क्रान्तिकारी परिवर्तनों , वृद्धि , पतन , विघटन , न्हास आदि की राजनीतिक घटनाओं को स्थान नहीं देता हैं उसकी व्यवस्था की सततता का लक्ष्य व्यवस्था के उत्तर जीवन से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ होने के कारण वहसततता की सीमाओं से परे जाने में असमर्थ है इस प्रकार ईस्टन जिस परिवर्तन की बात करता है , उसका उद्देश्य व्यवस्था का इस दृष्टि से अपने को सुधारना है कि वह अपने को बनाए रख सके इस प्रकार उसकी व्यवस्था का उद्देश्य खतरनाक परिधि से बाहर जाने देते हुए अपने मूल तत्वों को जीवित और सुरक्षित रखना है इस प्रकार यह पद्धति नियन्त्रण के प्रतिरूपों , शक्ति तथा प्रभाव की प्रक्रियाओं पर अधिक ध्यान नही दे पाती हैं " इस आधार पर अनेक विद्वानों ने इसे अनुदारवादी तथा असहमतिवादी सिद्धान्त बताया हैं

) राजनीति के सामान्य सिद्धान्त की कसौटी पर खरा नहीं ईस्टन के सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त की एक अन्य आलोचना इस आधार पर की जाती है कि " ईस्टन का राजनैतिक व्यवस्था का सिद्धान्तीकरण राजनीति के सामान्य सिध्दांत की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है " प्रो . एस . एल . वर्मा ने अपनी पुस्तक ' आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त ' में ईस्टन के व्यवस्था सिद्धान्त की इस आलोचना को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि " वह राजनीति का सामान्य या एकीकृत सिद्धान्त भी नहीं हैं , जिसके निर्माण की आशा ईस्टन ने अपनी आरम्भिक कृति में व्यक्त की है " " सततता की दृष्टि से भी ईस्टन तो पूरी तरह से तार्किक और आनुभविक आधार पर सर्वभावी ( Inclusive ) व्यवस्था के प्रश्नों पर विचार करता है ” “ तथ्यतः , . राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्थाओं पर आधारित होते हुए भी वह अनेक राजनीतिक प्रघटनाओं को छोड़ देता है " समग्र व्यवस्था के समावेशक ( Overall ) प्रश्नों पर ध्यान केन्द्रित कर देने से उसके पास वितरणात्मक ( Allocative ) प्रश्नों , जैसे कौन क्या पाता है ? आदि , के कोई अवसर नहीं रहते इससे वह अनेक क्षेत्रों में लक्ष्यों की प्राप्ति उनकी प्रक्रियाओ आदि पर ध्यान नहीं दे पाता है स्पष्टतः उसमें व्यक्तियों , व्यक्ति समूहों तथा व्यक्ति कार्यों आदि का अत्यन्त गौण स्थान है इनका विचार व्यवस्था संगति की दृष्टि से ही किया जा सकता है , किन्तु इनकी अवहेलना का परिणाम यह है कि निर्गत निवेश विश्लेषण राजनीति का सामान्य सिद्धान्त नहीं बन सकता क्योंकि उसने महत्त्वपूर्ण राजनीतिक तथ्यों को , अमूर्त व्यवस्था विश्लेषण पर संकेन्द्रित होने के कारण त्याग दिया है

) व्यक्तियों , व्यक्ति समूहों तथा व्यक्ति कार्यों की उपेक्षा ईस्टन अपने व्यवस्था सिद्धान्त में व्यक्ति की भी , जिसे वह आनुभविक परीक्षण की इकाई बनाना चाहता है , व्यक्ति के रूप में नहीं देख पाया है ईस्टन व्यक्ति को केवल बाहर से देखता है उसका दृष्टि केवल उसकी उस भूमिका पर है जो वह राजनीतिक व्यवस्था के अनुरक्षण और सततता में , अथवा विघटन और विनाश में अदा करता है इस प्रकार ईस्टन को तो व्यक्ति में और उसके व्यवहार में , कोई रुचि है , जब तक कि वह अन्तः क्रिया का एक भाग बन जाए 1

इस प्रकार ईस्टन उन व्यक्तियों पर , जो व्यवस्था के अंग है , व्यवस्था का क्या प्रभाव पड़ता है , यह समझने मे बिल्कुल रुचि नहीं लेता उसकी व्यवस्था का सदस्यों के व्यक्तियों से कोई सम्बन्ध नहीं हैं इस प्रक्रिया में राजनीतिक व्यवस्था और व्यक्ति पृथक् - पृथक् हो जाते है और दोनो ही उसकी ( राजनीति वैज्ञानिक ) पकड़ से बाहर हो जाते है अतः ईस्टन के व्यवस्था

सिद्धान्त में व्यक्ति गुणों से बिहीन दिखाई देते हैं और यह उसकी राजनीति सारहीन बनकर रह जाती है ईस्टन के व्यवस्था सिद्धान्त का योगदान : ईस्टन की राजनीति शास्त्र के क्षेत्र में प्रमुख देन की निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है ) व्यवस्थाओं की प्रक्रियाओं की गतिशीलता का विश्लेषण करने में सक्षम ईस्टन की व्यवस्था विश्लेषण की पद्धति , सन्तुलन के दृष्टिकोण से आगे जाती है रुकावट , दबाव का नियन्त्रण , उद्देश्यपूर्ण निर्देशन आदि संकल्पनाएँ हमें व्यवस्थाओं की प्रक्रियाओं की गतिशीलता का विश्लेषण करने में सहायता पहुँचाती हैं ) नई दिशाओं का संकेत- ईस्टन की व्यवस्था पद्धति केवल प्रक्रियाओं की गतिशीलता का ही विश्लेषण करती है , बल्कि वह लक्ष्यों की खोज करने वाले प्रतिसम्भरण के रूप में नई दिशाओं का संकेत भी देती है ) तुलनात्मक राजनैतिक विश्लेषण में योगदान ईस्टन की व्यवस्था पद्धति का एक अन्य लाभ तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण के रूप में हुआ हैं समस्त राजनैतिक व्यवस्थाओं पर एक तुलनात्मक दृष्टि डाली जा सकती है औरन यंग ने इसी तथ्य की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि ईस्टन के निवेश निर्गत विश्लेषण की उन व्यवस्थात्मक दृष्टिकोणो में जिनका अभी तक किसी राजनीतिशास्त्री ने विशेषकर राजनीतिक विश्लेषण के लिए निर्माण किया हो , सर्वश्रेष्ठ माना है

) वैचारिक संरचना और निश्चित संकल्पना ईस्टन का व्यवस्था सिद्धान्त राजनीति विज्ञान की एक बहुत ही स्पष्ट और सुलझी हुई वैचारिक संरचना तथा निश्चित संकल्पनाएँ प्रदान करता है इस प्रकार स्पष्ट है कि ईस्टन में व्यवस्था सिद्धान्त के द्वारा राजनीति क्षेत्र में अपार योगदान दिया है उसने राजनीति शास्त्र में व्यवस्था विश्लेषण की नींव डाली है , राजनीति का एक सामान्य प्रकार्यात्मक सिद्धान्त विकसित किया है तथा राजनीति विश्लेषण के क्षेत्र में अनेक उपयोगी अवधारणाएँ विकसित की हैं निष्कर्ष - उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ईस्टन का राजनीतिक व्यवस्था सिद्धान्त राजनीति के सामान्य सिद्धान्त की कसौटी पर इस नहीं उतरता हैं , वह किसी हद तक अनुदारवादी तथा असहमतिवादी है तथा अस्पष्ट , अतिसूक्ष्म तथा जटिल है

राजनीतिक व्यवस्था के सिद्धांतों की सीमाएँ

डेविड ईस्टन के सिद्धांतों को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है, लेकिन कुछ सीमाएँ भी हैं। उनका मॉडल राजनीतिक व्यवस्था को बहुत ही सामान्य रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे कुछ जटिल राजनीतिक प्रक्रियाएँ छूट सकती हैं। उदाहरण के लिए, सत्ता संघर्ष, राजनीतिक असमानताएँ, और बाहरी प्रभावों को उनके मॉडल में पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया है।

इसके अलावा, उनका मॉडल अधिकतर स्थिर और संतुलित राजनीतिक व्यवस्थाओं के लिए उपयुक्त है। अस्थिर या अधिनायकवादी व्यवस्थाओं में यह मॉडल उतना प्रभावी नहीं होता।

राजनीतिक व्यवस्था के सिद्धांतों का भविष्य

डेविड ईस्टन के सिद्धांत आज भी राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन में प्रासंगिक हैं। भविष्य में, जैसे-जैसे राजनीतिक व्यवस्थाएँ और अधिक जटिल होती जाएंगी, उनके सिद्धांतों को नए संदर्भों में समझने और लागू करने की आवश्यकता होगी। तकनीकी विकास, वैश्वीकरण, और सामाजिक मीडिया के प्रभाव से राजनीतिक व्यवस्था की प्रक्रिया में बदलाव रहे हैं, जिन्हें समझने के लिए ईस्टन के मॉडल को विकसित करना होगा।

राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन में उनकी प्रणालीगत दृष्टिकोण ने शोधकर्ताओं को एक मजबूत आधार दिया है, जिस पर वे नई चुनौतियों और परिवर्तनों का विश्लेषण कर सकते हैं।

 

 

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