क्या आपराधिक मामले में चार्जशीट ऑनलाइन अपलोड की जानी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला किया
सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है कि क्या पुलिस और ईडी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों को सार्वजनिक मंच पर मामलों में दायर चार्जशीट अपलोड करनी चाहिए ताकि जनता उस तक पहुंच सके?
एडमिशन स्टेज पर, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने इस विचार के बारे में संदेह व्यक्त किया और कहा कि जनता के लिए उपलब्ध चार्जशीट का दुरुपयोग किया जा सकता है।
अदालत ने यह भी संदेह जताया कि क्या ईडी को सार्वजनिक मंच पर चार्जशीट अपलोड करने के निर्देश जारी किए जा सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने यूथ बार एसोसिएशन इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में शीर्ष अदालत के 2016 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह निर्देश दिया गया था कि जब तक मामला संवेदनशील न हो, एफआईआर की प्रतियां 24 घंटे के भीतर प्रकाशित की जानी चाहिए।
श्री भूषण ने आगे तर्क दिया कि चार्जशीट एक सार्वजनिक दस्तावेज है जिसे चार्जशीट दायर करना सार्वजनिक कर्तव्य के निर्वहन में एक सार्वजनिक अधिकारी द्वारा किया गया कार्य है और इसलिए यह साक्ष्य अधिनियम के धारा 74 के तहत सार्वजनिक दस्तावेज की परिभाषा के तहत आएगा।
यह भी बताया गया कि RTI अधिनियम की धारा 6(2) के अनुसार, सूचना मांगने के लिए किसी औचित्य या कारण की आवश्यकता नहीं है।
दलीलें सुनने के बाद बेंच ने कहा कि वह एक विस्तृत आदेश जारी करेगी।
शीर्षक: सौरव दास बनाम भारत संघ
केस नंबर डब्ल्यूपी सी 1126