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252किसी भी खाली खोज के साथ परिणाम मिले

ब्लॉग पोस्ट (56)

  • आचरण का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

    आचरण का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण www.lawtool.net पश्यचायत नीतिशास्त्र के गृहीत आधार भारतीय नीतिशास्त्र के समान पश्चयात नीतिशास्त्र के भी गृहीत आधार है । लकीन भारतीय तत्वज्ञों ने जिस प्रकार से गृहीत आधार का वर्गिकरण करते हुए उनका स्पष्टीकारण किया है । उस प्रकार का विस्तृत विवेचन पश्यचायत नीतिशास्त्र मे नहीं है । पश्चायत नीतिशास्त्र के अनुसार गृहीत आधार इस प्रकार है । 1. व्यक्तित्व – व्यक्तित्व नीतिशास्त्र का प्रमुख आधार है । नैतिक नियम बनाने के लिए व्यक्ति का विवेकशील हीना अवश्यक है नैतिकता का ज्ञान होना याने की शुभ –अशुभ का कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान होना आवश्यक है इस लिए नीतिशास्त्र ये मानकर ही आगे बढ़ता है । की व्यक्ति के पास नैतिकता का पूरा ज्ञान है । 2. विवेक - विवेक का अर्थ है बुद्धि ।विवेक नैतिकता का दूसरा गृहीत आधार है । मनुष्य मे बुद्धि तथा विवेक होने के कारण ही वह पशु से या जानवर से भिन्न है । मानुष्य बुद्धिमान प्राणी है या विवेकशील प्राणी है । इस विशवास से ही नैतिकता तथा अनैतिकता मनुष्य से ही संबन्धित मनी जाती है । अथवा मनी गई है । 3. संकल्प स्वतंत्रय - संकल्प स्वतंत्र्य प्रत्येक मनुष्य को । यह नीतिशास्त्र द्वारा स्वीकार किया गया है । प्रत्येक व्यक्ति को विचार करने की स्वतंत्रता है उसी प्रकार व्यक्ति को स्वतंत्र्य है । इसी ग्रहीत आधार के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कृति का जिम्मेदार ठहराया जाता है । 4. काण्ट ‘’नामक बुद्धिवादी तत्वज्ञानी के अनुसार मनुष्य को संकल्प स्वतंत्र्य है वह विवेकशील प्राणी है । इसके अलावा उन्होने निम्न – गुहित आधार स्वीकार किए है । 5. काण्ट के अनुसार संकल्प स्वतंत्र्य नैतिकता तथा जीवन के लिए आवश्यक है । यदि मनुष्य अपने कर्मो को करने मे स्वतंत्र्य नहीं है तो वह अपने कर्मो के लिए उतरदायी भी नहीं है । इसलिए नैतिकता के लिए संकल्प स्वतंत्र्य होना आवश्यक है । 6. अत्मा की अमरता --- काण्ट के अनुसार इच्छा और कर्तव्य के सतत संघर्ष को जितना ही नैतिकता है । परंतु यह कार्य इतना कठिन है की एक सीमित जीवन मे उसको पूर्ण करना असंभव है । नैतिकता का ध्येय प्राप्त करने के लिए यह मानना की आत्मा अमर है अत्यंत आवश्यक है इसलिए आत्मा की अमरता को गुहित आधार के रूप मे स्वीकार किया गया है । नियतिवाद ,अनियतिवाद ,आत्मनियतिवाद संकल्प स्वतंत्र्य का प्रश्न तत्व ज्ञान मे अतिशय महत्वपूर्ण होता है । अगर हम मन लेते है की व्यक्ति संकल्प करने मे स्वतंत्र है या निर्णय लेने मे स्वतंत्र होता है । तभी हम उस कृति के लिए उसे जिम्मेदार ठहरा सकते है ,लकीन प्रश्न यही है ?इस विषय मे तत्वज्ञान के अन्तर्गत तीन प्रमुखवाद चर्चा मे है – 1. नियतिवाद , -- -नियतिवाद के अनुसार मनुष्य को कृति करने के लिए स्वतंत्र नहीं है । प्रत्येक कृति सुष्टि मे जो घटनाए एव दूसरे से जुड़ी हुई होती है उसका ही परिणाम है । प्रत्येक कृति व्यक्ति के चरित्र से आनुवंशिकता से तथा उसके परिस्थिति से जुड़ी हुई होती है और इन सभी घटको का कृति पर परिणाम होती है इसलिए मनुष्य संकल्प स्व्तंत्र्य मे स्वतंत्र नहीं है । 2. अनियतिवाद , इसके अनुसार हम कृति करने के लिए स्वतंत्र है । नीतिशास्त्र ,राज्यशास्त्र का कायदा अनियतिवाद पर ही आधारित है । नीतिशास्त्र के अनुसार हमे अपने कर्तव्य निभाने चाहिए । इसका अर्थ है की हमने यह मानलिया है की वह कर्तव्य करने की क्षमता हममे है । इसीलिए हम उस कृति के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है । 3. आत्मनियतिवाद — नियतिवाद तथा अनियतिवाद दोनों पर विचार विमर्श करने के बाद इस निर्णय पे हम आते है की कुछा सच्चाई नियतिवाद मे है उसी प्रकार अनियातीवाद मे भी है । इसलिए इन दोनों का समानव्य करके आत्मनियतिवाद का स्पष्टी कारण दिया गया है । इनके अनुसार नियतिवाद के बारे मे सोचने से हमे ये समझ मे आता है की एक बार चरित्र प्रस्थपित होने पर हम उसी प्रकार की कृति करते है । लकीन चरित्र प्रस्थपित होने के पहले हम पूरी तरह से स्वतंत्र है । एक बार शराबी बन गए तो शराब जीवन का हिस्सा बन जाती है । कर्मो के प्रकार –पश्चात्य नीतिशास्त्र के अनुसार कर्म के तीन प्रकार है । a) स्वय निर्मित कर्म b) अनिच्छा कर्म c) असवायानिर्मित कर्म 1. स्वयनिर्मित कर्म – जो कृति किसी संकल्प के अनुसार की जाती है उसे स्वयानिर्मित कर्म कहते है । इसका अर्थ यह है की मनुष्य के सामने जब अनेक विकल्प होते है उसमे से किसी एक को चुनने के बाद उसी के अनुसार कृति की जाती है ,उसे स्वयानिर्मित कर्म कहते है । इसीलिए इस प्रकार की कृति के लिए वह पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया जाता है इस प्रकार की कृति मनुष्य द्वारा पूरे होशोहवास मे की जाती है । 2. अनिच्छा कर्म -- - जब व्यक्ति की प्रकार का कर्म करने का निर्णय लेता है । लकीन कुछा अनपेक्षित परिस्थितियो के कारण उस कर्म को न करते हुए विपरीत कृति उसके हाथो से होती है इस प्रकार के कर्म को अनिच्छा कर्म कहाते है । याने जो कृति या कर्म स्वयानिर्मित कर्म से विपरीत होती है तब उसे अनिच्छा कर्म कहते है । जैसे की क्रीकेट मे मैच के आखरी गेंद पर बिना रन लिए आउट होना । 3. असवायानिर्मित कर्म – इसे अनैच्छीक कर्म भी कहते है । जिन कृतियों मे मनुष्य की इच्छाओ को स्थान नहीं होता उस प्रकार की कृतियो को अनैच्छिक या अस्वयानिर्मित कर्म कहते है ।इसमे कई प्रकर की शरारिक क्रियाये ,सहजात क्रियाये इंका अंतरभवा इसमे होता है । यह कृतियाँ नैसर्गिक होती है लकीन इसमे करने वाले का कोई हेतु नहीं होता है । इस प्रकार से नैतिक क्रियाओ का विशलेशन करने के पशचायत एक बात स्पष्ट होती है की केवल स्वयानिर्मित कर्मो के लिए ही मनुष्य को उस कृति के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इस स्वयानिर्मित कर्म की प्रक्रिया इस प्रकार है। सर्वप्रथम मनुष्य को अपने जीवन मे कुछा वस्तुओ का आभाव दिखाई देता है या होता है । उस आभाव के कारण मन मे दुखद भावना उत्पन्न होती है । इस भावना को निकालने की इच्छा मन मे निर्माण होती है सुख और दुख के बीच मे अनेवाली यह इच्छा संघर्षात्मक विचार विनियम करके किसी एक विकल्प का आवंत करता है और उस विकल्प के अनुसार कृति करने का संकल्प करता है । इस प्रकार इस संकल्प को नैतिक महत्व नहीं है लकीन इस संकल्प के अनुसार की गई कृति महत्वपूर्ण होती है इसीलिए सही मायने मे नैतिक निर्णय का विषय संकल्प सहकृति है इस प्रकार यही कृति को स्वयानिर्मित कर्म मे अंत भूत करते हुए व्यक्ति को उस कृति का जिम्मेदार ठहराया जाना है । हेतु तथा उद्देश्य मे अंतर स्पष्ट कीजिये ? परीनंवाद तथा हेतुवाद नैतिक निर्णय का विषय क्या हो सकता है ?इसका उतर स्वया निर्मित कर्म मे यह दिया जाता है की फिर भी संकल्प सहकृति इसमे हेतु महत्वपूर्ण है या परिणाम महत्वपूर्ण है ? इसका भी निर्णय लिया जाता है भिन्न –भिन्न तत्वज्ञों ने इस विषय पर चर्चा की है । कुछा तत्वज्ञों के अनुसार कृति का परिणाम महत्वपूर्ण है । अगर उचित है या योग्य है तो ही वह कृति योग्य कहलाती है इस विचार धारा को ही परीनंवाद कहते है । इससे विपरीत कुछ तत्वज्ञों के अनुसार कृति की योगिता ,कृति के परिणाम पर आधारित न होते हुए उन कृतियो के पीछे मनुष्यो का जो हेतु होता है वह महत्वपूर्ण है । अगर हेतु सही है तो परिणाम चाहे बुरे ही क्यो न हो वह कृति अच्छी ही कहलाती है । इस विचार धारा हो हेतु वादी परम्परा कहते है । परिणाम तथा हेतु वाद परस्पर विरोधी नहीं है । यहाँ हेतु तथा उद्देश्य किसे कहते है ?यह स्पष्ट होना जरूरी है । इसका स्पष्टी कारण इसप्रकार से है नैतिक निर्णय के संदर्भ मे साध्य और साधन का विचार महत्वपूर्ण है । साध्य हमेशा साधनो का समर्थन करता है लेकिन कभी कभी साधनो द्वाराभी सध्या का समर्थन किया जाता है अगर सध्य अच्छा है तो उससे जुड़े साधन भी अच्छा होना जरूरी है क्या ?यह महातपूर्ण प्रश्न है जिसका उत्तर हेतु और उद्देश्य की संकल्पन मे ही मिलता है । हेतु तथा उद्देश्य / अभिप्राय बेन्थ्म और मिल इन तत्वज्ञों के अनुसार हेतु से परिणाम ज्यादा महत्वपूर्ण हिते है । हेतु याने कर्म करने की इच्छा है तथा उद्देश्य याने विशिष्ट ध्येय का विचार है । हेतु भावना का कारक कारण है तथा उद्देश्य अंतिम कारण है हेतु की तुलना मे उद्देश्य ज्यादा व्यापक है । स्व्यनिर्मित कर्म मे भी उद्देश्य को हेतु से ज्यादा महत्व दिया गया है । हेतु से उद्देश्य ज्यादा व्यापक है क्यो की उद्देश्य मे इष्ट तथा अनिष्ट दोनों परिणामो का विचार अंतभूत है । इसका स्पष्टी कारण इस प्रकार से भी दिया जाता है । इस प्रकार से उद्देश्य हेतु से हमेशा ही व्यापक होता है । उद्देश्य (अभिप्राय )के प्रकार तात्कालिक तथा प्रच्छन्न अभिप्राय । बाहरी तथा आंतरिक अभिप्राय । प्रत्येक्ष तथा अप्रत्येक्ष अभिप्राय चेतन तथा अचेतन अभिप्राय औपचारिक तथा यथार्थ अभिप्राय । तात्कालिक तथा प्रछ्न्न अभिप्राय – तात्कालिक जैसे डूबते हुए व्यक्ति को बचाने तथा प्रछन्न याने हर एक व्यक्ति की अपनी अपनी सोच होना । बाहरी तथा आंतरिक अभिप्राय – कुछ कर्म बाह्य स्वरूप मे अधिक महत्वपूर्ण होते है इसके विपरीत कुछ कर्म आंतरिक रूप से महत्वपूर्ण होते है । प्रत्येक्ष तथा अप्रत्येक्ष अभिप्राय -- -किसी व्यक्ति पर जान लेवा हमला करना यह प्र्त्येक्ष उद्देश्य है । तथा किसी ट्रेन मे बैठे एक व्यक्ति की जान लेने के लिए ट्रेन को उड़ा देना अप्रत्येक अभिप्राय है । चेतन तथा अचेतन अभिप्राय – यह उद्देश्य सजीव तथा निर्जीव से जुड़ा हुआ है । औपचारिक तथा यथार्थ अभिप्राय --- औपचारिक निर्णय प्रत्येक्ष निर्णय के समान होते है तथा यथार्थ निर्णय अप्रत्येक्ष निर्णय के समान होते है इस प्रकार उपयूक्त विवेचन द्वार यह स्पष्ट होता है की उद्देश्य याने असफल परिणाम तथा परिणाम याने सफल उद्देश्य है । कर्तव्य और अधिकार ---- अधिकार और कर्तव्य सापेक्ष शब्द है जो एक दुष्टि से अधिकार है वही दूसरे संबंध मे कर्तव्य हो जाता है । जहां अधिकार है वहाँ कर्तव्य है । नैतिक अधिकार जीने का अधिकार - जीने का अधिकार मनुष्य का सर्वप्रथम और मुख्य अधिकार है । इस अधिकार मे काम करने का अधिकार भी सम्मिलीत है इसीलिए किसी की हत्या करना गुनाह होता है । स्वतंत्रता का अधिकार – स्वतंत्रता का अधिकार के बिना नैतिक कार्यो की कल्पना असम्मभाव है प्रत्येक्ष व्यक्ति अपना ध्येय साध्य करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए । इसीकारण गुलामीगिरी गुनाह है । संपत्ति का अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार के साथ संपत्ति का भी अधिकार भी लगा हुआ हैजैसे रहने के लिए संपात्ति का अधिकार आवश्यक है अर्थात इस आधीकर का दुरुपयोग ठीक नहीं है । समझोते की पूर्ति का अधिकार –समझोते की पूर्ति का अधिकार तभी अर्थपूर्ण हो सकता है जैसे समझोते की पूर्ति के साधनो पर व्यक्ति का अधिकार हो अर्थात सम्पत्ति के अधिकार की सीमाये समझोते के अधिकार पर ही लागू होते है । शिक्षा का अधिकार – शिक्षा से ही व्यक्ति बनता है । नैतिक दुष्टिकोण से प्रत्येक व्यक्ति अपनी योगयता के अनुसार सर्वोत्तम शिक्षा पाने के लिए बाध्य है । नैतिक कर्तव्य जीवन का सम्मान – अपने और दूसरों के जीवन का सम्मान करना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है । आत्महत्या तथा हत्या दोनों ही घोर अनैतिक कार्य है । स्वतन्त्रता का सम्मान – स्वतंत्रता के अधिकार के साथ स्वतंत्रता के सम्मान का कर्तव्य भी लगा हुआ है । इसीकारण दूसरों को गुलाम बनाना उनका शोषण करना घोर अन्याय है । चरित्र का सम्मान – चरित्र ही मनुष्य मे सर्वोच्चय गुण है इसीलिए हमे संव्यां और दूसरों के चरित्र का सम्मान चाहिए । सम्पत्ति के अधिकार के साथ सम्पत्ति के सम्मान का कर्तव्य भी लगा हुआ है । निजी संपत्ति का सदुपयोग करते समय दूसरों के संपत्ति मे बाधक नहीं बनना चाहिए इसी कारण चोरी करना नैतिक अपराध है सामाजिक व्यवस्था का सम्मान – व्यक्ति और समाज का कल्याण इस पर निर्भर है व्यक्ति के अधिकार की रक्षा तभी हो सकती है जब तक की सामाजिक व्यवस्था बनी रहे इसीलिए सामाजिक व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए । सत्य का सम्मान – मनुष्य को अपने वचनो का पालन करना चाहिए । विचार तथा कर्म मे समजस्य रखना चाहिए । यह कर्तव्य समझोते के अधिकार से जुड़ा हुआ है । प्रकृति का सम्मान – प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति मे आस्था रखनी चाहिए । परिश्रम ही पुजा है समाज की प्रकृति व्यक्ति से जुड़ी हुई है । अधिकार और कर्तव्य मे परस्पर संबंध है अधिकार और कर्तव्य अन्योन्याश्रीत है । अधिकार और कर्तव्य परस्पर सापेक्ष है । अधिकार और कर्तव्य एक ही नैतिक नियमो के दो पहलू है ।

  • बेन्थ्म का निकुष्ट उपयोगिता वादी नैतिक सुखवाद

    बेन्थ्म का निकुष्ट उपयोगिता वादी नैतिक सुखवाद या बेन्थ्म का परिणाम का परिमाण त्मक उपयोगितावादी सुखवाद । बेन्थम का निकृष्ट उपयोगितावादी नैतिक सुखवाद  (Jeremy Bentham's Quantitative Utilitarian Hedonism) एक ऐसा सिद्धांत है जो यह मानता है कि नैतिकता का मूल उद्देश्य सुख (Pleasure) को बढ़ाना और दुःख (Pain) को कम करना है , और इस सुख-दुःख का मूल्यांकन मात्रात्मक (Quantitative) रूप से  किया जा सकता है। मुख्य विशेषताएँ: परिणामवादी दृष्टिकोण (Consequentialism) :बेन्थम का सिद्धांत यह मानता है कि किसी भी कार्य की नैतिकता उसके परिणामों से तय होती है। यदि किसी कार्य से अधिक लोगों को अधिक सुख मिलता है, तो वह नैतिक रूप से उचित है। सुख की मात्रात्मक गणना (Quantitative Measurement of Pleasure) :बेन्थम ने सुख को मात्रात्मक रूप से मापने का प्रयास किया और इसके लिए "हेडोनिक कैलकुलस (Hedonic Calculus)"  नामक पद्धति प्रस्तावित की। इसके अंतर्गत निम्नलिखित तत्वों पर विचार किया जाता है: Intesity (तीव्रता) : सुख या दुःख कितना तीव्र है? Duration (अवधि) : वह कितनी देर तक रहेगा? Certainty (निश्चितता) : उसके घटित होने की कितनी संभावना है? Propinquity (निकटता) : वह कब घटित होगा – निकट भविष्य में या दूर? Fecundity (उत्पादकता) : वह आगे और कितना सुख/दुःख उत्पन्न करेगा? Purity (शुद्धता) : क्या उसमें दुःख की कोई मिलावट है? Extent (व्यापकता) : कितने लोगों को प्रभावित करेगा? सभी सुख समान माने जाते हैं :बेन्थम के अनुसार, सभी प्रकार के सुख मूल रूप से समान होते हैं — चाहे वह शारीरिक सुख हो या बौद्धिक। उनके अनुसार, "एक साधारण व्यक्ति का सुख उतना ही महत्वपूर्ण है जितना एक ज्ञानी का।" आलोचना: जॉन स्टुअर्ट मिल (J.S. Mill) ने बेन्थम की मात्रात्मक दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए गुणात्मक सुखवाद (Qualitative Utilitarianism)  का समर्थन किया, जिसमें कुछ सुखों को अन्य की तुलना में श्रेष्ठ माना गया (जैसे बौद्धिक सुख > शारीरिक सुख)। सुखवाद – बेन्थ्म इंग्लैंड के प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक और समाज सुधारक थे । इनके अनुसार मानव स्वाभवत ; सुख चाहता है । अंत वह सुख के लिए कोई भी कार्य करता है । प्रत्येक मनुष्य का अंतिम लक्ष्य केवल सुख प्राप्ति होता है । मनोवैज्ञानिक सुखवाद - बेन्थ्म मनोवैज्ञानिक सुखवाद के समर्थक थे । इनके अनुसार निसर्ग ने ही मनुष्य को सुख तथा दुख के साम्राज्य मे रखा है । सुख की प्राप्ति और दुख की निवूत्ति यही मनुष्य के जीवन का सही नारा है । इसीलिए मनुष्य सदैव सुख की खोज करता है तथा दुख से दूर भागता है । नैतिक सुखवाद - बेन्थ्म ने अपने सिधान्त मनोवैज्ञानिक सुखवाद तथा नैतिक सुखवाद मे समन्वय स्थापित करने की चेष्टा की है वह लिखते है की प्रकृति ने मनुष्य को सुख और दुख नामक दो सर्वाशक्तिमान शासको के अधीन रख दिया है । हमे क्या करना चाहिए ?यह हमरे लिए महत्वपूर्ण है । नैतिक स्वार्थ सुखवाद - बेन्थ्म मनोवैज्ञानिक सुखवाद का समर्थन करते है और इसके अनुसार मनुष्य स्वभावत ; स्वार्थी होता है । अंत सुख प्राप्ति ही मानुष्य का पहला कर्तव्य होना सी चाहिए । यदि वह वस्तु सुख उत्पन्न कर सकता है वह शुभ है अन्यथा अशुभ है । परर्थ सुखवाद - बेन्थ्म मनोवैज्ञानिक सुखवाद का पुरुस्कार करते हुए बेन्थ्म स्वार्थ सुखवाद का ही समर्थन करते है । उनका कहना है की यह स्वप्न भी नहीं देखना चाहिए की मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के बिना अपनी उंगली भी नहीं हिलाता । लेकिन यह कहते हुए बेन्थ्म पारर्थ की तरफ बढते हुए यह भी बताते है की मानुष्य को व्यक्तिगत सुख को ही नहीं बल्कि दूसरों के सुख को भी जीवन का लक्ष्य मानना चाहिए । दूसरों को सुखी बनाकर ही व्यक्ति को सच्चा सुख मिलता है । स्थूल /निकुष्ट उपयुक्तावादी सुखवाद पार्थवाद का समर्थन करते हुए बेन्थ्म उपयोगितावाद की तरफ बढ़ते है । अधिकतम लोगो का अधिकतम सुख ही नैतिकता का मापदंड होना चाहिए इस मत को स्वीकार करते हुए बेन्थ्म कहते है की उपयोगितावाद की सिद्धांता से अभिप्राय यह है की प्रत्येक आचरण को यह सिधान्त करता है जिससे प्रस्न्नता और सुख को बढ़ाया जा सके । त्ता एसे आचरण को अस्वीकार करना चाहिए जिससे दुख या प्रसन्नता घटती हो या प्रसन्नता कम होती हो इस प्रकार का आचरण मनुष्य को नहीं करना चाहिए । सुख का मापदण्ड - बेन्थ्म के उपयोगितावाद के मत का आध्ययन करने से एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है की अधिकतम निर्णय कैसे करे । इसके उत्तर मे बेन्थ्म का कहना है की सुखो के परिणाम को मापा जा सकता है । उन्होने सुख तथा दुख से भेद बतलाए है । और सुखो के परिणाम को मापने का तरीका बताया है । इसे ही सुख का मापदंड कहते है । बेन्थ्म के अनुसार सुखो को मापने के सात आयाम है । वे इस प्रकार है । सुखो के आयाम 1. तीव्रता - एक सुख दूसरे सुख की अपेक्षा अधिक तीव्र हो सकता है । उदा =खेलने का सुख सोने के सुख की अपेक्षा अधिक तीव्र होता है । अंत खेलने का सुख नैतिक दुष्टि से अधिक शुभ है । 2. अवधि - जो सुख अधिक समय तक स्थायी रहे वह नैतिक दुष्टि से अधिक शुभ रहेगा । यहा सोने का सुख खेलने के सुख से स्थायी है । 3. निकटता - एक सुख दूसरे सुख की अपेक्षा अधिक निकटता से प्रप्ता होता है । यहा पर सोने का सुख खेलने के सुख की अपेक्षा निकट है इसी लिए खेलने का सुख की अपेक्षा सोने का सुख अधिक शुभ है । 4. दुष्टियता - एक सुख दूसरे सुख की अपेक्षा अधिक निशिचित एव नि-निश्देहात्मक होता है । उदा –सोने के सुख मे खेलने के सुख की अपेक्षा अधिक निशिचिता पाई जाती है । 5. उत्पादकता - जो सुख अन्य सुख को भी उत्पन्न करता है नैतिक दुष्टि से अधिक शुभ है । सोने के सुख की अपेक्षा खेलने का सुख अधिक शुभ है । 6. स्वच्छता - कुछ सुख जो के दुखो से मुक्त होते है उन्हे स्वच्छ सुख कहते है । और ऐसा सुख शुभ है । यहां सोने का सुख खेलने के सुख की अपेक्षा स्वच्छ रहेगा । 7. प्रशाद्न्ता - कुछ सुख ऐसे होते है जो ज्यादा लोगो को प्रभावित करते है । यहाँ पर खेलने का सुख सोने के सुख से ज्यादा शुभ है । बेन्थ्म का परिणमात्मक सुखवाद - सुखो के परिणाम को मापने के सिधान्त को प्रस्तुत कर बेन्थ्म यह स्वीकार करते है । की सुखो मे परिमाणत्मक भेद है । , गुणात्मक भेद नहीं है । उनके अनुसार गुणो की दुष्टि से सभी सुख एक समान होते है , इसीलिए परिणामो को देखना आवश्यक है । यह विचार बेन्थ्म निम्न यूक्ती द्वारा व्यक्त करते है । सुख का परिणाम समान होने पर भी पुस्पिन का खेल भी उतना ही अच्छा है जितना कविता पाठ इसका तात्पर्य यह है की कारण की दुष्टि से क्रीडा और कविता मे कोई अंतर नहीं है । यानि दो कृतियो द्वारा उत्पन्न होने वाले सुख का परिणाम अगर समान हो तो उन दोनों कृतियों की नैतिकता एक समान होती है । इस प्रकार से बेन्थ्म ने परिणाम को अपने सुखवाद मे महत्व दिया है । नैतिक अंकुश - परिणामात्मक सुखवाद स्पष्ट करते हुऐ बेन्थ्म नैतिक अंकुश का समर्थन करते है एक ओर बेन्थ्म मनुष्य को जन्मजात स्वार्थी मानते है । तथा दूसरी ओर मनुष्य को परार्थी भी कहते है । स्वार्थी होते हुए मनुष्य परार्थी कैसे हो सकता है । यह प्रश्न यहा उपस्थित होता है । इसका उत्तर देते हुए बेन्थ्म नैतिक अंकुश के सिधान्त की स्थापना करते है । यह अंकुश चार प्रकार के है । भैतिक अंकुश राजनैतिक अंकुश सामाजिक अंकुश धार्मिक अंकुश A. भौतिक अंकुश - भौतिक अंकुश या प्रकृतिक अंकुश इसका अर्थ है । की प्रकृति द्वार लगाया गया अंकुश इसके उलंघन से शारीरिक कष्ट होता है । प्रकृति मनुष्य को एक सीमा तक भोगने की शक्ति देता है । उससे ज्यादा भोगने लगे तो शारीरिक कष्ट होता है । इस शारीरिक कष्ट के भय से वैसे ही कष्ट होता है जैसे की ज्यादा भोजन से शारीरिक कष्ट होता है। इस अवस्था मे मनुष्य दूसरे को भोजन देता है और इस प्रकार से मनुष्य परर्थी बनता है । B. राजनैतिक अंकुश – हर व्यक्ति पर कुछ राजनैतिक नियमो से बंधा रहता है । जिसके उलंघन से उसे दण्ड मिलता है । राज्य के दण्ड के भाय से व्यक्ति परार्थी बन जाता है । C. सामाजिक अंकुश – सामाजिक अंकुश समाज के वे नियम है जिनको भंग करने से समाज मे बदनामी होती है । इनके विपरीत अच्छा काम करने पर समाज मे प्रतिष्ठा मिलती है अंत समाज के भय से व्यक्ति स्वार्थी होते हुऐ भी परार्थी बन जाता है । D. धार्मिक अंकुश – इनमे धर्मग्रंथो मे दिये गए नियम आते है । व्यक्ति इन नियमो पर विश्वास करता है । ईश्वर के द्वारा प्राप्त पाप या पुण्य के कारण याने धार्मिक दबाव के कारण व्यक्ति परार्थी बन जाता है । इस प्रकार बेन्थ्म ने आपने सुखवाद के शुरूआता मनोवैज्ञानिक सुखवाद से करते हुए परिणात्मक उपयोगितावाद को समर्थन किया याने स्वार्थ सुखवाद से परार्थ सुखवाद के तरफ बढ़ते हुए अपना सुखवाद स्पष्ट किया । आलोचना 1. सुखवाद – बेन्थ्म ने सुखवाद का पुरस्कार किया है और सुखवाद जड़वाद पर आधारित होने के कारण एक कमजोर सिधान्त बन गया है । जिसके कारण सार्वभोमिक सिद्धांत की स्थापना नहीं हो सकती है । 2. मनोवैज्ञानिक सुखवाद ---बेन्थ्म का सुखवाद आधार मनोवैज्ञानिक सुखवाद है अंत मनोवैज्ञानिक सुखवाद मे जो दोष है वे सभी बेन्थ्म के इस सिद्धांत मे भी विदयमान है । 3. नैतिक सुखवाद – बेन्थ्म मे मनोवैज्ञानिक सुखवाद को आधार मानकर नैतिक सुखवाद का पुरस्कार किया है लेकिन क्या है से क्या करना चाहिए ?यह हम नहीं बता सकते क्यो की नैतिकता पहले आती है याने की मूल्यो का विचार पहले करके तथ्यो के बारे मे सोचना चाहिए । 4. स्वार्थ से पारार्थ की तरफ कोई मार्ग नहीं है । स्वार्थ ओर पारर्थ नितांत विरोधी तत्व है । उसमे स्मन्वय कदापि स्थापित किया जा सकता है । 5. अधिकतम सुख का निर्माण असंभव है । अधिकतम सुख कीस प्रकार से निशिचय करे ? इसका निर्णय असंभव है क्यों की सुख आत्मा निष्ठा होता है कोई एक रोटी से सुखी होता है तो कोई चार रोटियो से 6. नैतिक अंकुश को नैतिकता कहना अनुचित है । कोई भी कार्य बाहरी दबाव से किया जाये तो वह नैतिक नही हो सकता और नैतिक अंकुश बाहरी दबावो के कारण किये गए नैतिकता का पालन है । 7. सुख का मापदंड अव्यवहरिक है । सुख आत्मनिष्ठा होता है । साथ ही साथ देश और काला के अनुकूल परिवर्तनशील भी होत है । एक ही कर्म एक परिस्थिति मे दुख देता है इसलिए इसका कोई मूल्यांकन नहीं है । 8. व्यापकता का आयाम उपयुक्त नहीं है । बेन्थ्म ने परिगणमाँ मे व्यापक को स्थान दे परर्थवादी बनने की चेष्ठा की है । लेकिन इस मापदंड का बलिदान देना पड़ता है । 9. सुख को भौतिक वस्तुओ की तरफ मापा नहीं जा सकता । सुख एक मानसिक तत्व होने के कारण किसे ठोस भौतिक वस्तु की तरह उसे मापा नहीं जा सकता है । 10. गुणात्मक भेद की कमी -- बेन्थ्म ने सुखो मे परिणाम को ज्यादा महत्व दिया है और गुणात्मक भेद को अस्वीकार किया है उनके तत्वज्ञान ये सबसे बड़ी गलती है । इसी के कारण उनका सुखवाद निकुष्ट सुखवाद कहलाता है जिसका कोई सिधान्त नहीं बन सकता । बेन्थम के निकृष्ट (मात्रात्मक) उपयोगितावादी नैतिक सुखवाद का एक सारणीबद्ध तत्व विवरण (हिंदी में) Description (in English) सिद्धांत का नाम निकृष्ट उपयोगितावादी नैतिक सुखवाद Quantitative Utilitarian Hedonism प्रवर्तक जेरेमी बेन्थम (Jeremy Bentham) Jeremy Bentham मुख्य उद्देश्य अधिकतम लोगों को अधिकतम सुख पहुँचाना Greatest happiness for the greatest number मूल विचार नैतिकता का मूल्यांकन कार्य के परिणाम से होता है Morality judged by consequences (Consequentialism) सुख का प्रकार मात्रात्मक (सभी सुख समान) Quantitative (All pleasures are equal) सुख का मापन (Hedonic Calculus) 1. तीव्रता (Intensity) 2. अवधि (Duration) 3. निश्चितता (Certainty) 4. निकटता (Propinquity) 5. उत्पादकता (Fecundity) 6. शुद्धता (Purity) 7. व्यापकता (Extent) 1. Intensity 2. Duration 3. Certainty 4. Propinquity 5. Fecundity 6. Purity 7. Extent प्रमुख आलोचना सुख की गुणवत्ता की अनदेखी (सभी सुख बराबर नहीं) Ignores quality of pleasures प्रतिक्रिया जॉन स्टुअर्ट मिल ने गुणात्मक उपयोगितावाद प्रस्तुत किया J.S. Mill proposed qualitative utilitarianism बेन्थ्म

  • पैराडॉक्स क्या होता है ?

    पैरामीटर परिभाषा पैराडॉक्स (Paradox)  एक ऐसा कथन या स्थिति होती है जो दिखने में विरोधाभासी (contradictory) लगती है, लेकिन उसके पीछे कोई गहरी सच्चाई या तर्क छिपा होता है। यह अक्सर हमारी सामान्य समझ या तर्क शक्ति को चुनौती देता है।पैराडॉक्स, एक ऐसा शब्द है जो सोचने में कठिनाई पैदा करने वाले विचारों या वाक्यों को व्यक्त करता है। ये विचार या कथन एक विरोधाभास पैदा करते हैं, जो हमें गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं। पैराडॉक्स का इतिहास बहुत पुराना है और यह विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलता है, जैसे कि विज्ञान, दर्शन और कानून। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम पैराडॉक्स के अर्थ, उनके ऐतिहासिक संदर्भ, और कानून की दुनिया में इसके महत्व पर चर्चा करेंगे। साथ में, भारतीय कानून के कुछ मामलों का जिक्र करेंगे जो पैराडॉक्स की श्रेणी में आते हैं। अंत में, एक दिलचस्प कहानी के माध्यम से पैराडॉक्स को समझाएंगे। पैराडॉक्स क्या होता है? पैराडॉक्स वह कथन होता है जो दो विरोधाभासी बातें एक साथ कहता है , लेकिन उन पर गहराई से सोचने पर एक सच्चाई सामने आती है। उदाहरण: "मैं झूठ नहीं बोलता।"अगर यह कथन एक झूठा व्यक्ति कह रहा है, तो क्या वह सच कह रहा है या झूठ? पैराडॉक्स ऐसे कथन होते हैं जो पहले तो विरोधाभासी लगते हैं, लेकिन गहराई में जाने पर वे सही प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए, "यह कथन झूठा है।" यदि यह सच है, तो यह झूठा होना चाहिए। लेकिन यदि यह झूठा है, तो यह सच है। पैराडॉक्स हमारे सोचने के तरीके को चुनौती देते हैं। वे हमें अपने पूर्वाग्रहों और धारणाओं पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करते हैं। पैराडॉक्स का इतिहास पैराडॉक्स की अवधारणा प्राचीन यूनानी दर्शन में बहुत महत्वपूर्ण थी। ज़ेनो (Zeno of Elea) नामक दार्शनिक ने सबसे पहले कई प्रसिद्ध पैराडॉक्स दिए, जैसे: अकिलीज़ और कछुए का पैराडॉक्स: तेज दौड़ने वाला अकिलीज़ कभी धीरे चलने वाले कछुए को नहीं पकड़ सकता, अगर कछुए को थोड़ी बढ़त दी जाए। यह तर्क आम समझ के खिलाफ है लेकिन गणितीय विश्लेषण द्वारा सुलझाया जा सकता है।यह विचार बाद में गणित, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र और अंततः कानून में भी आया। पैराडॉक्स का इतिहास प्राचीन ग्रीस से आरंभ होता है। विभिन्न दार्शनिकों ने पैराडॉक्स को अपने विचारों में शामिल किया, जिनमें ज़ेना का नाम प्रमुख है। ज़ेना ने कई पैराडॉक्स प्रस्तुत किए, जैसे "अखिलेश का दौड़ता तीर।" मध्य युग में, पैराडॉक्स धार्मिक और दार्शनिक चर्चाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन समयों में, कई दार्शनिकों ने पैराडॉक्स का उपयोग करके अपनी विचारधाराओं को साबित या चुनौती देने का प्रयास किया। आधुनिक युग में, पैराडॉक्स को तर्कशास्त्र और गणित में भी सम्मिलित किया गया है। गणितीय पैराडॉक्स जैसे बर्कली का पैराडॉक्स यह साबित करते हैं कि पैराडॉक्स किसी स्थिति या विचार को संशोधित कर सकते हैं। कानून की दुनिया में पैराडॉक्स का महत्व कानून की दुनिया में पैराडॉक्स महत्वपूर्ण होते हैं। वे हमारे न्यायिक सोचने के तरीके को चुनौती देते हैं। कई बार ऐसे मामले आते हैं, जहां नैतिकता और कानूनी प्रावधानों में टकराव होता है। नैतिकता बनाम कानून कई बार, एक कानूनी निर्णय नैतिकता के खिलाफ होता है। उदाहरण के लिए, 2020 में एक भारतीय न्यायालय ने एक हत्या के मामले में आरोपी को सजा दी, जबकि सबूतों की कमी थी। इसने सवाल उठाया कि क्या कानूनी प्रणाली हमेशा न्याय देती है। लघु अपील कुछ मामलों में, आरोपी का बचाव उस स्थिति में पैराडॉक्स बन जाता है, जहां आरोपी अपने खिलाफ साक्ष्य प्रस्तुत करता है। जैसे कि एक आरोपी जिसने तर्क दिया कि उसके द्वारा किए गए अपराध के कारक उसके खिलाफ नहीं, बल्कि समाज के खिलाफ हैं। भारतीय कानून में पैराडॉक्स के मामले भारतीय कानून में कई ऐसे मामले हैं जो पैराडॉक्स की श्रेणी में आते हैं। यहां कुछ प्रमुख उदाहरण दिए गए हैं: मथुरा बनाम राज्य यह मामला भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आता है। मथुरा का मामला एक पैराडॉक्स का उदाहरण है, जहां एक महिला को न्याय मिलने के बजाय उसके चरित्र पर सवाल उठाए गए। यह सवाल अभी भी चर्चा का विषय है कि क्या समाज में महिलाओं को सही न्याय मिल रहा है। बृजकिशोर बनाम राज्य इस मामले में, आरोपी ने के खिलाफ बताए गए सबूतों का इस्तेमाल करते हुए अपनी स्थिति को स्पष्ट किया। यह एक उलझन भरी स्थिति है, जहां आरोपी ने अपने पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत किया, जो सामान्यतः अप्रत्याशित होता है। ADM Jabalpur v. Shivkant Shukla (Habeas Corpus Case, 1976) आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। कोर्ट ने कहा कि "आपातकाल के दौरान कोई भी नागरिक कोर्ट में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती नहीं दे सकता।" यह एक पैराडॉक्स था: कानून की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों को ही कानून के नाम पर कुचल दिया गया। Kesavananda Bharati v. State of Kerala (1973) संसद संविधान संशोधित कर सकती है, लेकिन संविधान का मूल ढांचा (Basic Structure) नहीं बदल सकती। यह निर्णय भी एक प्रकार का पैराडॉक्स है, जहां "संविधान बदलने की शक्ति" और "संविधान की आत्मा" में टकराव है। Suresh Kumar Koushal v. Naz Foundation (2013) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 377 (समलैंगिक संबंधों को अपराध बताने वाली धारा) संवैधानिक है। यहाँ नैतिकता, अल्पसंख्यक अधिकार और कानून की व्याख्या के बीच टकराव सामने आया — एक सामाजिक पैराडॉक्स। Shreya Singhal v. Union of India (2015) – धारा 66A IT Act धारा 66A के तहत पुलिस किसी को भी "आपत्तिजनक पोस्ट" डालने पर गिरफ्तार कर सकती थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता)  के विरुद्ध बताया और रद्द कर दिया। पैराडॉक्स: कानून समाज में शांति बनाए रखने के लिए बना था, लेकिन वह भय और सेंसरशिप  का हथियार बन गया। Shayara Bano v. Union of India (2017) – Triple Talaq Case इस केस में "तीन तलाक" को असंवैधानिक घोषित किया गया। पैराडॉक्स: धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर होने वाली एक प्रथा, महिलाओं के मौलिक अधिकारों के खिलाफ गई।धर्म बनाम संविधान — एक गहरा कानूनी संघर्ष। Justice K.S. Puttaswamy v. Union of India (2017) – Privacy Case आधार कार्ड से जुड़ी निजता की बहस। पैराडॉक्स: राज्य की डेटा संग्रह करने की जरूरत (राष्ट्रीय सुरक्षा, लाभ वितरण) बनाम नागरिक की निजता का अधिकार। पैराडॉक्स एक कहानी द्वारा हम एक कहानी के माध्यम से पैराॉक्स की अवधारणा को समझते हैं: कहानी: "काले और सफेद का संघर्ष" एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में दो रंगों की शक्तियों का जलवा था: काला और सफेद। गाँव में काले रंग की विशेषता थी कि वह जिनसे मिलता, उन्हें असफल करता, जबकि सफेद रंग सफलता और खुशी का स्रोत था। गाँव में एक प्रतियोगिता आयोजित हुई, जहां सभी रंगों को आमंत्रित किया गया। काले रंग ने अपने साथी को चुनौती दी, "अगर तुम मुझसे हार गए, तो गाँव में सदा के लिए काले को मान्यता मिलेगी!" सफेद रंग ने इस चुनौती को स्वीकार किया, लेकिन एक हफ्ते बाद परिणाम जानने की शर्त रखी। काले रंग ने खुशी से चुनौती स्वीकार की। हफ्ते भर तक, दोनों रंग विचार करते रहे कि वे कैसे जीत सकते हैं। अंत में, प्रतियोगिता का दिन आया। परिणाम घोषित होते ही, सफेद रंग ने काले रंग को दिमागी खेल में हराने की कोशिश की। सफेद ने सकारात्मकता के साथ खेला। जब परिणाम आया, तो सफेद रंग जीत गया। काले रंग ने कहा, "यह असंभव है! मैं हमेशा जीतता हूँ!" सफेद रंग ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "जीत का असली मतलब केवल प्रतिस्पर्धा में नहीं है, बल्कि अपने गुण और विचार से बाहर निकलने में भी होता है।" इस कहानी ने यह सिखाया कि पैराडॉक्स केवल प्रतियोगिता में नहीं होते, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में भी प्रकट होते हैं। एक कहानी द्वारा पैराडॉक्स समझें: "न्याय का जाल" कहानी का नाम:   "दोषी कौन?" एक राजा ने एक अनोखा कानून बनाया: “कोई भी व्यक्ति जो राज्य के दरवाज़े पर आए और सच बोले, उसे अंदर आने दिया जाएगा। लेकिन अगर वह झूठ बोले, तो उसे फांसी दी जाएगी।” एक दिन एक व्यक्ति आया और बोला, “मैं मरने आया हूँ।” अब राजा के गार्ड परेशान हो गए: अगर यह सच कह रहा है, तो उसे अंदर आने देना चाहिए — पर तब वह मरेगा नहीं। अगर यह झूठ कह रहा है, तो उसे फांसी देनी चाहिए — पर तब वह सच कहेगा। तो अब क्या करें? यह एक पैराडॉक्स  है — एक ऐसा कथन जिसने कानून को स्थिर कर दिया ।अंततः राजा को नियम में बदलाव करना पड़ा, क्योंकि इस कथन ने कानून के दोनों विकल्पों को विफल कर दिया। कानूनी नैतिकता बनाम कानूनी प्रक्रिया का पैराडॉक्स "क्या हर कानूनी चीज़ नैतिक भी होती है?" कुछ मामलों में कानून का पालन करने से अन्याय हो सकता है। उदाहरण: अगर किसी ग़रीब महिला ने अपने बच्चों को खाना देने के लिए चोरी की, और कानून उसे सज़ा देता है — क्या न्याय हुआ या अन्याय? व्यक्तिगत अधिकार बनाम सामाजिक व्यवस्था जब किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता समाज के हितों से टकराती है। उदाहरण: सोशल मीडिया पर कोई ऐसा विचार रखना जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन वो विचार समाज में अशांति फैलाए — क्या हम उसे बोलने दें या चुप कराएं? दार्शनिक रूप से कानून में पैराडॉक्स क्यों ज़रूरी हैं? पैराडॉक्स हमें यह दिखाते हैं कि: कानून जड़ नहीं है , उसे ज़रूरतों और परिस्थिति के अनुसार लचीला रहना चाहिए। कानून केवल नियम नहीं , बल्कि न्याय, नैतिकता और मानवता का मिश्रण है। अल्बर्ट आइंस्टीन  का एक कथन है जो यहाँ खूब जमता है: "अगर कोई विचार शुरुआत में मूर्खतापूर्ण न लगे, तो वह उम्मीद के लायक नहीं।" अंतिम विचार इस ब्लॉग पोस्ट में, हमने पैराडॉक्स का अर्थ, उनके इतिहास, और कानून की दुनिया में उनके महत्व की चर्चा की। भारतीय कानून के मामलों में पैराडॉक्स की उपस्थिति पर भी ध्यान दिया गया है। अंत में, एक कहानी के जरिए हमने यह सीखा कि जीवन में सही और गलत का निर्णय लेना कुछ-कुछ एक पैराडॉक्स के समान होता है। पैराडॉक्स केवल विचारों का विरोधाभास नहीं होते; ये हमें सोचने और समझने के नए तरीके प्रदान करते हैं। हमें चाहिए कि हम इनसे सीखें और अपनी जिंदगी को और बेहतर बनाएं।पैराडॉक्स कानून की दुनिया में सोच की सीमा  को परखने का काम करते हैं।ये जजों और वकीलों को यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या सिर्फ कानून का पालन पर्याप्त है, या न्याय का भी विचार जरूरी है ।कानून में पैराडॉक्स परिवर्तन का संकेत  हैं। वे दिखाते हैं कि कानून यांत्रिक नहीं , बल्कि जीवंत और विकसित होने वाला  है।भारतीय संविधान भी एक "जीवंत दस्तावेज़" है, जो समय और समाज के साथ बदलने की क्षमता रखता है — और पैराडॉक्स इस विकास के उत्प्रेरक होते हैं। पैराडॉक्स क्या होता है ?

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Welcome All Of You To The Lawtool Family www.lawtool.net पैराडॉक्स क्या होता है ? पैराडॉक्स (Paradox) एक ऐसा कथन या स्थिति होती है जो दिखने में विरोधाभासी (contradictory) लगती है, लेकिन उसके पीछे कोई गहरी सच्चाई या तर्क छिपा होता है। यह अक्सर हमारी सामान्य समझ या तर्क शक्ति को चुनौती देता है।पैराडॉक्स, एक ऐसा शब्द है जो सोचने में कठिनाई पैदा करने वाले विचारों या वाक्यों को व्यक्त करता है। ये विचार या कथन एक विरोधाभास पैदा करते हैं, जो हमें गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं। पैराडॉक्स का इतिहास बहुत पुराना है और यह विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलता है, जै दर्शनशास्त्र www.lawtool.net 5 दिन पहले महाराष्ट्र और गुजरात विभाजन का इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास संस्कृति, भाषा और राजनीति के बदलते समीकरणों से प्रभावित रहा है। महाराष्ट्र और गुजरात का विभाजन 1960 में हुआ,... भारतीय राजनीति www.lawtool.net 30 अप्रैल धर्मनिरपेक्षता की उत्पत्ति और विश्वव्यापी प्रभाव की खोज: एक ऐतिहासिक जांच धर्मनिरपेक्षता, जिसे अंग्रेजी में secularism कहते हैं, एक करामाती सिद्धांत है जो धार्मिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों की रक्षा करता है। ..... एक सवाल क़ानून से www.lawtool.net 13 अप्रैल भारत में मुगल साम्राज्य का उत्थान और पतन मुगल साम्राज्य भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण साम्राज्यों में से एक था। कई शताब्दियों तक फैले इस साम्राज्य का भारतीय उपमहाद्वीप की संस्क भारतीय इतिहास www.lawtool.net 8 अप्रैल मुगल साम्राज्य का चरमोत्कर्ष और विघटन-I शाहजहाँ के शासनकाल के अंतिम वर्ष उसके पुत्रों के बीच उत्तराधिकार के लिए भयंकर युद्ध से भरे हुए थे। भारतीय इतिहास www.lawtool.net 9 फ़र॰ मराठों का उदय मराठों का उदय भारतीय इतिहास www.lawtool.net 1 फ़र॰ दक्षिण भारत: चोल साम्राज्य चोल साम्राज्य का उदय भारतीय इतिहास www.lawtool.net 24 जन॰ उत्तरी भारत: तीन साम्राज्यों का युग उत्तरी भारत: तीन साम्राज्यों का युग (800-1000) हर्ष के साम्राज्य के बाद, उत्तर भारत, दक्कन और दक्षिण भारत में कई बड़े राज्यों का उदय हुआ।... भारतीय इतिहास www.lawtool.net 22 जन॰ बाल अधिकार-RIGHTS OF CHILDREN बच्चों के अधिकार वर्तमान समय में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा एवं संवर्धन की ओर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। हालांकि यह मुद्दा... www.lawtool.net 7 जन॰ 2024 स्विस संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व राजनीतिक परंपराएँ स्विस संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व राजनितिक परंपरा लगभग ५० लाख जनसंख्या और १६ हजार वर्गमील भूमि का देश स्विट्जरलैण्ड विश्व के सबसे... भारतीय राजनीति www.lawtool.net 14 अक्तू॰ 2023 भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमि और राजनीतिक प्रक्रिया महिलाएँ और राजनीतिक प्रक्रिया प्रश्न १ : नारीवाद से आप क्या समझते है । नारीवादी आंदोलन के उदय एवं विकास का वर्णन कीजिए । नारीवाद आधुनिक... भारतीय राजनीति www.lawtool.net 10 अप्रैल 2023 यूपी जनसंख्या नियंत्रण विधेयक हमारे देश में जनसंख्या नियंत्रण एक बहुत बड़ी समस्या है इसलिए इस समस्या को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण विधेयक, 2021... एक सवाल क़ानून से www.lawtool.net 31 जन॰ 2023 चीन के संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि नैपोलियन बोनापार्ट ने एक बार चीन के विषय में कहा था कि , “ वह एक सोया हुआ दानव है , उसे सोने दो, क्योंकि जब वह उठेगा तो आतंक पैदा कर देगा । भारतीय राजनीति www.lawtool.net 21 दिस॰ 2022 दण्ड क्या है / What is Punishment What is Punishment / दण्ड क्या है www.lawtool.net सजा क्या है - दण्ड क्या है शब्दकोश के अनुसार सजा दर्द या जब्ती; यह राज्य की न्यायिक... एक सवाल क़ानून से www.lawtool.net 17 नव॰ 2022 अमरीकी संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व राजकीय परंपराएँ प्रश्न 1 : अमरीकी संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व राजकीय परंपराओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए उत्तर : अमेरिका को ' राष्ट्रो का राष्ट्र '... www.lawtool.net 25 सित॰ 2022 भारत दल - बदल की राजनीति [ भारत दल - बदल की राजनीति POLITICS OF DEFECTION IN INDIA हल ही में हमारे देश में जिस प्रकार राजनीती का तथा राजनितिक पार्टियों का विकास हो... भारतीय राजनीति www.lawtool.net 24 अग॰ 2022 पुरुषार्थ पुरुषार्थ भारतीय विचारधाराओ के अनुसार प्रत्येक मानुष्य के जीवन मे पुरुषार्थ का विशेष महत्व है । व्यक्ति के जीवन की दिशा प्रदान करने तथा... दर्शनशास्त्र www.lawtool.net 2 अग॰ 2022 कर्म सिधान्त कर्म के सिधान्त की व्याख्या परिचय – नैतिक प्रत्यय के रूप मे कर्म के सिधान्त का विशेष महत्व है प्राचीन भारतीय दर्शन नीतिशास्त्र मे कर्म के... दर्शनशास्त्र www.lawtool.net 27 जून 2022 बौद्ध नैतिक दर्शन बौद्ध नैतिक दर्शन के चार आर्य सत्य एव अष्टांग मार्ग www.lawtool.net गौतम बुद्ध का यह मत था की दुख से मुक्ति ईश्वर ,आत्मा ,जगत सम्बन्धी... दर्शनशास्त्र www.lawtool.net 20 मार्च 2022 आश्रम तथा आश्रम व्यवस्था का अर्थ आश्रम तथा आश्रम व्यवस्था का अर्थ www.lawtool.net परिचय - आश्रम व्यवस्था के स्पष्टीकरण से पूर्व आश्रम का शाब्दिक अर्थ जानना होगा । यह... दर्शनशास्त्र www.lawtool.net 3 मार्च 2022 जैन नैतिक दर्शन जैन नैतिक दर्शन www.lawtool.net परिचय -जैन नैतिक दर्शन मे पाँच महाव्रतो का पालन कठोरता पूर्वक करना जैन आचार्यो ने अनिवार्य माना है । इसी... दर्शनशास्त्र www.lawtool.net 20 जन॰ 2022 भारतीय नीति शास्त्र - तत्वज्ञान तत्वज्ञान भारतीय नीति शास्त्र का अर्थ 1. भारतीय नीति शास्त्र की व्याख्या इस प्रकार है नीति का अर्थ निर्देश आचरण अथवा आचरण का शास्त्र... दर्शनशास्त्र www.lawtool.net 27 सित॰ 2021 राजनीतिक संस्कृति तथा राजनीतिक समाजीकरण राजनीतिक संस्कृति से क्याआशय है ? 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Have a look around and join the discussion. इस अनुसार क्रमित करें: नवीनतम सभी श्रेणियों को फॉलो करें Create New Post www.lawtool.net सशस्त्र बल व्यभिचार के लिए अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं- सुप्रीम कोर्ट में Hindi law सशस्त्र बल व्यभिचार के लिए अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं- सुप्रीम कोर्ट ने जोसेफ शाइन जजमेंट को स्पष्ट किया सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि सशस्त्र बल व्यभिचार के लिए अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं, क्योंकि आज कोर्ट ने 2018 के उस ऐतिहासिक फैसले को स्पष्ट 0 टिप्पणी 0 31 जन॰ 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर में Hindi law क्यों मनाया जाता है कि विश्व शिक्षक दिवस, क्या है थीम. World Teachers Day 2024 : आज दुनिया भर में विश्व शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। भारत में जहां हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है, वैश्विक स्तर पर हर वर्ष 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद विश्व भर के शिक्षकों के 0 टिप्पणी 0 05 अक्तू॰ 2024 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Revised timetable of AIBE XVIII (18) 2023 released – exam date changed, registration deadline extend में General & Legal Discussion October 18, 2023 10:30 AM Bar Council of India has announced the revised schedule for AIBE XVIII examination in 2023. The exam will now be held on November 26, 2023. Additionally, the registration deadline for the exam has been extended. Candidates can now submit their application forms till Nove 0 टिप्पणी 0 18 अक्तू॰ 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Adipurush Ban: Allahabad HC में General & Legal Discussion Adipurush Ban: Allahabad HC Issues Notice to Manoj Muntashir, Asks Centre Whether It Will Take Any Action in Public Interest June 27, 2023 The Allahabad High Court at Lucknow on Tuesday issued notices to Manoj Muntashir, who is Dialogue Writer of Adipurush movie, while dealing with two PIL pleas 0 टिप्पणी 0 29 जून 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net HC Quashes POCSO Case Against Boyfriend Saying 16-Year-Old Capable of Making Conscious Decision.. में General & Legal Discussion HC Quashes POCSO Case Against Boyfriend Saying 16-Year-Old Capable of Making Conscious Decision About Sex June 2023 In a significant ruling, the High Court of Meghalaya, headed by Justice W. Diengdoh, has quashed the proceedings in a POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) case, empha 0 टिप्पणी 0 27 जून 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Gangster Chhota Rajan moves HC seeking stay on release of "Scoop" web series over 'infringement .... में General & Legal Discussion Gangster Chhota Rajan moves HC seeking stay on release of "Scoop" web series over 'infringement of his personality rights' Jailed gangster Rajendra Nikalje alias Chhota Rajan on Thursday moved the Bombay High Court against web series “Scoop”, which is slated for release on Netflix on June 2, saying 0 टिप्पणी 0 02 जून 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net The 100 Most Famous Quotes of All Time में Famous - Quotes 1. "Spread love everywhere you go. Let no one ever come to you without leaving happier." -Mother Teresa 2. "When you reach the end of your rope, tie a knot in it and hang on." -Franklin D. Roosevelt 3. "Always remember that you are absolutely unique. Just like everyone else." -Margaret Mead 4. "D 0 टिप्पणी 0 29 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Ordinarily the Dispute under Insurance Policy Claims Would not be Referred to Arbitration ......... में High Court Judgment Ordinarily the Dispute under Insurance Policy Claims Would not be Referred to Arbitration when the Reference is Limited to Quantum of Compensation: Delhi HC In a significant ruling, the High Court of Delhi has shed light on the scope of arbitration clauses in insurance policy disputes. Justice Pr 0 टिप्पणी 0 29 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Allahabad HC Refuses to Quash Attempt to Murder Case Based on Compromise Between Victim and Accused में High Court Judgment Allahabad HC Refuses to Quash Attempt to Murder Case Based on Compromise Between Victim and Accused The Allahabad High Court recently made a crucial decision, refusing to dismiss an attempted murder case based on a compromise between the victim and the accused. In doing so, the bench of Justice 0 टिप्पणी 0 28 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net When Accused Can be Discharged in a Criminal Case? Explains Supreme Court में Supreme Court Judgment Recently, The Supreme Court answered an important question that when accused can be discharged in a criminal case. The bench of Justices Abhay S. Oka and Rajesh Bindal was dealing with the appeal challenging the order passed by the Bombay High Court by which the Court has set aside the order passed 0 टिप्पणी 0 27 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net BCI ने शहरी क्षेत्रो में जूनियर अधिवक्ताओ के लिए ₹20 हजार और ग्रामीण क्षेत्रो मे ₹15 हजार वजीफा देने का सुझाव दिया में Hindi law बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं, कानूनी फर्मों और स्वतंत्र वकीलों की सहायता करने वाले कनिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए न्यूनतम वजीफा की सिफारिश करते हुए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं।यह कदम दिल्ली उच्च न्यायालय के 29 जुलाई के निर्देशों के बाद उठाया गया है, जिसके बाद अधिवक्ता सिमरन कुमारी न 0 टिप्पणी 0 19 अक्तू॰ 2024 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net 2 October (Gandhi Jayanti) में General & Legal Discussion Non-violence is the greatest religion. Be the change you wish to see in the world. The greatness of humanity lies not in how powerful it is, but in how humane it is. Until you actually lose someone, you do not understand their value. To answer cruelty with cruelty is to accept your own moral and int 0 टिप्पणी 0 02 अक्तू॰ 2024 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net AIBE XVIII (18) 2023 में General & Legal Discussion AIBE XVIII (18) 2023-24 - The Bar Council of India (BCI) has opened the AIBE 18 registration 2023 on August 16, 2023 at 5 PM on its official website - allindiabarexamination.com. Interested applicants can appply for AIBE XVIII till September 30, 2023. The AIBE XVIII (18) 2023-24 will be conducted in 0 टिप्पणी 0 19 अग॰ 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस की जमीन हड़पने की कोशिश मामले में एक गिरफ्तार में General & Legal Discussion सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस की जमीन हड़पने की कोशिश मामले में एक गिरफ्तार June 27, 2023 रांची, सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस स्व. युसूफ इकबाल की जमीन हड़पने की कोशिश मामले में रविवार रात पुलिस ने भू- माफिया जुनैद रजा उर्फ चुन्ना को गिरफ्तार किया है। थाना प्रभारी दयानंद कुमार ने सोमवार को बताया 0 टिप्पणी 0 29 जून 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net वकीलों के लिए बड़ी खबर: बार काउंसिल ने COP हेतु जारी किया फॉर्म- जानिए किसे भरना है ये फॉर्म...... में General & Legal Discussion June 19, 2023वकीलों के लिए बड़ी खबर: बार काउंसिल ने COP हेतु जारी किया फॉर्म- जानिए किसे भरना है ये फॉर्म और क्या है प्रक्रिया रविवार को बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश ने उत्तर प्रदेश की अदालतों में प्रैक्टिस कर रहे वकीलों के लिए एक महत्वपूर्ण फॉर्म जारी किया। बार काउंसिल ऑफ इंडिया सर्टिफिकेट एंड प् 0 टिप्पणी 0 19 जून 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net सुप्रीम कोर्ट ने 20 वर्षीय महिला को परिवार के सदस्यों से जान का खतरा होने की आशंका से सुरक्षा प्रदान में Hindi law सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली पुलिस को 20 वर्षीय एक महिला को सुरक्षा देने का निर्देश दिया, जो कथित रूप से घर से भाग गई थी और अपने परिवार के सदस्यों से अपनी जान को खतरा होने की आशंका से डर रही थी। शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए आदेश पारि 0 टिप्पणी 0 31 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Central vista project including new Parliament building faced several court cases में General & Legal Discussion Central vista project including new Parliament building faced several court cases The ambitious redevelopment project of the nation’s power corridor, Central Vista, which includes the new Parliament building inaugurated on Sunday, faced several legal challenges in the last few years. The project w 0 टिप्पणी 0 29 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net सारे जहां से अच्छा' लिखने वाले शायर मोहम्मद इकबाल से जुड़ा अध्याय सिलेबस से हटाया जा सकता है में Hindi law दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की अकादमिक परिषद ने राजनीतिक विज्ञान के पाठ्यक्रम से पाकिस्तान के राष्ट्र कवि मोहम्मद इकबाल से जुड़ा एक अध्याय हटाने के लिए शुक्रवार को एक प्रस्ताव पारित किया. वैधानिक निकाय के सदस्यों ने इसकी पुष्टि की. अविभाजित भारत के सियालकोट में 1877 में जन्मे इकबाल ने प्रसिद्ध गीत ' 0 टिप्पणी 0 29 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net पत्नी पति से ज्यादा कमाती है- सेशन कोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार करने के आदेश..... में Hindi law पत्नी पति से ज्यादा कमाती है- सेशन कोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार करने के आदेश को बरकरार रखा हाल ही में, मुंबई की एक निचली अदालत ने एक महिला को अंतरिम गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसे पता चला था कि वह अपने पति से प्रति वर्ष 4 लाख रुपये अधिक कमाती है। इस आदेश को अब मुंब 0 टिप्पणी 0 28 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net No Indisfeasible Right of Daughter-in-Law on Share Household: Delhi HC में High Court Judgment The Delhi High Court has ruled that a daughter-in-law does not have an indefeasible right in a “shared household” and that the in-laws cannot be excluded from the same. The court was hearing a plea moved by a daughter-in-law against her husband and in-laws who were senior citizens, challenging an o 0 टिप्पणी 0 27 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net World Teachers Day 2024 में General & Legal Discussion World Teachers Day 2024: Why is World Teachers Day celebrated, what is the theme World Teachers Day 2024: World Teachers Day is being celebrated all over the world today. While Teachers' Day is celebrated on 5 September every year in India, World Teachers' Day is celebrated on 5 October every year 0 टिप्पणी 0 05 अक्तू॰ 2024 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net AIBE XVIII (18) 2023:The Bar Council of India has once again revised the whole AIBE 18 Schedule 2023 में General & Legal Discussion AIBE XVIII (18) 2023: The Bar Council of India has once again revised the whole AIBE 18 Schedule 2023. Updated on Nov 9, 2023 AIBE XVIII (18) 2023: The Bar Council of India has once again revised the whole AIBE 18 Schedule 2023. Candidates can now submit the AIBE 18 Application Form 2023 until Nov 0 टिप्पणी 0 11 नव॰ 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Out of 25 High Courts 9 HCs are Unrepresented in Supreme Court में Supreme Court Judgment Out of 25 High Courts 9 HCs are Unrepresented in Supreme Court June 28, 2023 Recently, the Collegium showed a willingness to prioritize regional representation over seniority. This was seen when the Chief Justice of the Allahabad High Court, who ranked higher in seniority, was overlooked in favor 0 टिप्पणी 0 29 जून 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Bar Council of India approves RV University's School of Law में General & Legal Discussion Bar Council of India approves RV University's School of Law The Bar Council of India has approved RV University’s (RVU) School of Law and its five-year integrated BA LLB and BBA LLB programmes. The programmes will commence from August 2023. School of Law will be the sixth school under RVU. "Throu 0 टिप्पणी 0 28 जून 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Amend Laws to Punish Rape of Dead Bodies: Karnataka HC Tells Centre में High Court Judgment Amend Laws to Punish Rape of Dead Bodies: Karnataka HC Tells Centre By May 31, 2023 The High Court of Karnataka has asked the Centre to amend the relevant provisions of the Indian Penal Code (IPC) or bring in new ones criminalizing and providing for punishment for carnal intercourse’ with corpses. 0 टिप्पणी 0 09 जून 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net Lawyer Caught Using ChatGPT in Court to Argue- Know What Happened Next में General & Legal Discussion Lawyer Caught Using ChatGPT in Court to Argue- Know What Happened Next Artificial intelligence is a topic that is frequently discussed nowadays. It will keep you entertained if you use it in a humorous manner. But is it appropriate to rely entirely on it for everything? This is an open question. Pe 0 टिप्पणी 0 31 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net क्या चेक बाउंस नोटिस देने के 15 दिनों के भीतर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है में Hindi law क्या चेक बाउंस नोटिस देने के 15 दिनों के भीतर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट करेगा तय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक विशेष अनुमति याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें वैधानिक पंद्रह दिनो 0 टिप्पणी 0 29 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net नागपुर के चार मंदिरों में फटी जींस, शॉर्ट कपड़े पहनने पर नहीं मिलेगी एंट्री, में Hindi law नागपुर के चार मंदिरों में फटी जींस, शॉर्ट कपड़े पहनने पर नहीं मिलेगी एंट्री, ड्रेस कोड किया गया लागू नागपुर के चार मंदिरों में फटी जींस, शॉर्ट कपड़े पहनने पर नहीं मिलेगी एंट्री, ड्रेस कोड किया गया लागू महाराष्ट्र मंदिर महासंघ का कहना है कि राज्य के 300 मंदिरों में ड्रेस कोड को जल्द लागू किया जाएगा. 0 टिप्पणी 0 29 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net यासिन मलिक को फांसी देने की मांग, एनआईए ने दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की याचिका में Hindi law May 26, 2023 10:04 PM नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने हत्या और टेरर फंडिंग के मामले में दोषी करार दिए गए यासिन मलिक को फांसी की सजा की मांग के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली बेंच इस याचिका पर 29 मई को सुनवाई करेगा।एनआईए ने कहा है कि यासिन म 0 टिप्पणी 0 28 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें www.lawtool.net क्रेडिट कार्ड की अवधि समाप्त होने के बावजूद व्यक्ति को बिल भेजने पर एसबीआई पर जुर्माना...... में Hindi law दिल्ली के एक उपभोक्ता फोरम ने एसबीआई कार्ड्स एंड पेमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को निर्देश दिया है। लिमिटेड को एक व्यक्ति को उसके कार्ड की अवधि समाप्त होने के बाद भी उसे बिल भेजने और शुल्क का भुगतान न करने पर उसे काली सूची में डालने के लिए 2 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। नई दिल्ली जिला उपभोक्ता व 0 टिप्पणी 0 26 मई 2023 लाइक 0 टिप्पणी टिप्पणी करें Forum - Frameless

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