पशाच्यात नीतिसशत्र
1)नीतिसशास्त्र की परिभाषा ---मानवीय जीवन मे मनुष्य का सम्बंध असंख्य वस्तुओ से होता है उन वस्तुओ के बारे मे उसके मन मे आकर्षण उतपना होता है इस वस्तु का स्वरूप होगा तथा इस का गुणधर्म कौन से होंगे एक वस्तु का दूसरी अन्य वस्तुओ से सम्बंध होगा भी या नहीं भी ?इसप्रकार से अनेक प्रश्न मनुष्य के मन मे आते है एक कौतूहल उसके मन मे उत्पन्न होता रहता है और इस से ज्ञान प्राप्त होने की शुरुआत होती है एक प्रकार के आश्चर्य से ही ज्ञान की शुरुआत होती है जिसे तत्वज्ञान कहते हे
प्लेटो नामक ग्रीक का कहना है - Wonder is the only beginning of philosophy',
अर्थत तत्वज्ञान की शुरुआत आश्चर्य से होती है अर्थात यहा philosophy याने की ज्ञान शब्द का प्रयोग अत्यंत व्यापक स्वरूप मे किया गया है
2)नीतिशास्त्र का अर्थ –नीतिशास्त्र तत्वज्ञान की प्रमुख शाका मे से एक है नीतिशस्त्र के साथ तर्कशास्त्र और सौन्दर्यशस्त्र भी तत्वज्ञान की प्रमुख शाखाये है नीतिसशास्त्र को अँग्रेजी मे ethics कहा जाता है ethics शब्द ग्रीक शब्द ethosसे बना हुआ है जिसका अर्थ है चरित्र तथा आचरण मनुष्य का आचरण ही उसके चरित्र का परिचयक होता है इसलिए नीतिशासत्र के अन्तरगत मनुष्य के नैतिक चरित्र का अध्ययन एव मूल्याकन किया जाता है इस शब्द की व्युत्पति mores नामक ग्रीक शब्द से होती है जिसका अर्थ आचरण या चरित्र ही होता है नीतिशस्त्र का अर्थ स्पष्ट करने के लिए अनेक तत्वज्ञों दवारा इसकी परिभाष की गई है इनमे से कुछ प्रमुख परिभाषाये इस प्रकार है ---
1)Polson(पालसन) इनके अनुसार रुढि अथवा नीतिमत्ता का शस्त्र याने नीतिशास्त्र |
2) मेकॅन्झी (macknzhi) इनहोने दो प्रकार से नीतिशस्त्र की परिभाषा स्पष्ट की है ---
a) नीतिशस्त्र आचरण की इष्टता (उचितता) के संबंध मे एक चीकित्सा है |
ब) मानवीय आचरण के सिद्धान्त बताते हुये उचित –अनुचित तथा शुभ –अशुभ के संदर्भ मे मानवीय कृतीयो का मूल्याकन करना ही नीतिशास्त्र है |
3)सेथ seth –इनके अनुसार ‘’शुभ के सम्बंध मे शास्त्रो का विचार करते हुए मानवीय ध्येय तथा कर्तव्य का अध्ययन करने वाला सर्वक्षेष्ठ शास्त्र नीतिशास्त्र है |
4) लिली (lili) ----लिली तत्वज्ञ के अनुसार नीति मानुष्यों के आचरण का शास्त्र है जिसमे मनुष्य के आचरण की उचित –अनुचित तथा योग्य –अयोग्य के बारे मे निर्णय लिया जाता है |
इस प्रकार नीतिशास्त्र वह शास्त्र है जिसमे किसी मापदंड के अनुसार मनुष्य के कर्तव्य तथा अकर्तव्य का विचार किया जाता है उपयुकत सभी परिभाषाओ को देखकर एक महत्वपूर्ण बात ध्यान मे अति है की इन सभी परिभाषाओ मे कुछ घटक समान है और यही समान घटक नीतिशास्त्र का स्वरूप स्पष्ट करते है |यह घटक इस प्रकार है
1) नीतिशास्त्र शास्त्र है
2) नीतिशास्त्र नियामक (आदर्शीय )शास्त्रा है
3) नीतिशास्त्र मानवीय अचरणों के आदर्शो का शास्त्रा है
4) इन आदर्शो के अनुसार कृति का मूल्यमापन करने वाला शास्त्रा है
1)नितिशास्त्र शास्त्र है
नीतिशास्त्र शास्त्र है इसका मतलब शास्त्र मे सामान्य रूप से जो गुणधर्म पाये जाते है वे सभी गुणधर्म नीतिशास्त्र मे भी पाये जाते है | शास्त्रा के परिभाषा इस प्रकार की जाती है
2) घटना समुच्चय के बारे मे पाया गया व्यवस्थाबद्ध ज्ञान अथवा सूत्र ज्ञान ‘इस परिभाषा मे व्यवस्थाबद्ध ज्ञान ‘’यहा शब्द अत्यन्त महत्वपूर्ण है |जिसका प्रयोग नीतिशास्त्र मे भी उतना ही महत्वपूर्ण है
a. प्रत्येकशास्त्रा का अपना एक विषय निश्चित होता है नीतिशास्त्र का मानवीय आचरण यहा विषय निश्चित है |
b. सभी शास्त्रो की एक शास्त्रीय पद्धति होती है |इस पद्धति मे साधारण रूप से तीन स्टार होते है
1) accurate observation (शुद्ध निरीक्षण )
2) classification (वर्गिकरण )
3) explanation (स्पष्टीकरण )
1)इसी प्रकार नीतिशास्त्र मे भी आध्यान के तीन स्तर है |मानवीय आचरण मे सबसे प्रथम हम मानवीय आचरण का ही निरीक्षण करते है उसके बाद उसकी आदते उसका स्वभाव उसका चरित्र इन सबका निरीक्षण के बाद ही वर्गिकरण होता है और अंत मे वर्गिकरण को देखते हुये और मूल्यो को समान रखते हुये मानवीय कृति का मूल्यमापन किया जाता है संक्षेप मे शास्त्रो से जुड़े सभी गुणधर्म नीतिशास्त्र मे भी पाये जाते है |व्यक्ति तथा समाज इनके परस्पर संबंधो का विवेचन नैतिक विधानों द्वारा स्पष्ट किया जाता है |यही नीतिशास्त्र का कर्तव्य है इसलिए नीतिशास्त्र को शास्त्रा कहते है |
नीतिशास्त्र आदर्शीय (नियामक )शास्त्र है
नीतिशास्त्र होने के बावजूद अन्य शास्त्रो के समान नहीं है नीतिशास्त्र नियामक शास्त्रा है |अन्य शास्त्रा व्यहारिक शास्त्र तथा प्रकृतिक शास्त्र है व्यहारिक शास्त्र वस्तुस्थिति से संबन्धित होते है लकीन नीतिशास्त्र मूल्यो से संबन्धित है |जिन शास्त्रो मे वस्तुस्थिति का यथार्थ वर्णन होता है उन्हे वर्णांत्मक अथवा नेसर्गिक शास्त्र कहते है इससे विपरीत जिन शास्त्रो मे मूल्यो का सर्थ्य विवेचन होता है उन शास्त्रो को आदर्शीय अथवा नियामक शास्त्र कहते है वर्णात्मक शास्त्र कोई घटना किस प्रकार होती है यहा स्पष्ट करता है याने what is ? क्या है ? इसका आध्ययन करता है लकीन नियामक शास्त्र मे घटना किस प्रकार होनी चाहिए ?what ought to be ? इसका अध्ययन होता है |इस प्रकार भौतिक शास्त्र ,आदि प्रकृतिक विज्ञान भोतीक जगत की क्रियाओ का आध्यान करता है तो दूसरी और तर्कशास्त्र ,नीतिशास्त्र तथा सोंदार्यशास्त्र नियामक विज्ञान है |ये क्रमश तर्कशास्त्र सत्य का नीतिशास्त्र परांशुभ का सोंदार्यशास्त्र सुंदरता का आध्यान करता है ये तीनों नियामक शास्त्र मनुष्य को ज्ञान संकल्प और अनुभूति के मूल्यो का निर्णय कराते है
नीतिशास्त्र मानवीय अचरणों के आदर्शो का शास्त्र है
नीतिशास्त्र नियामक शास्त्र है इसी कारण नीतिशास्त्र आदर्शो से चलने वाला शास्त्र है नीतिशास्त्र को अँग्रेजी मे ethic कहते है जिसका अर्थ है आदर्शा या रीतिरिवाज इसे moral philosophy भी कहते है हिन्दी मे इस का मतलब है नेतिका तत्वज्ञान जिसका अर्थ भी रीति रिवाजा या आदत ही होता है मानवीय रीति-रिवाज तथा अदते इनका आध्यान याने की मनुष्य के चरित्र का आध्यान है इसी –लिए नीतिशास्त्र मानवीय अचरणों तथा चरित्रों का विचार विमर्श करता है
मथ्यू अरनोल्ड –तत्वज्ञ के अनुसार आचरण जीवन का संपूर्ण भागा है
स्पेन्स –के अनुसार आचरण याने ध्येयों का कृति से समायोजन है इसका अर्थ यहा है की आचरण याने सहेतूक या बुद्धिपुरस्सर की गई कृति है इस प्रकार उद्देश्य पूर्वक साध्यों को चुनना तथा उनकी आदत डालना ही चरित्र्य है इसलिए आचरण के बिना चरित्र्य बन ही नहीं सकता या हो ही नहीं सकता
नीतिशास्त्र कृति का मूल्यमापन करता है
नीतिशास्त्र कृतियों का मूल्यमापन दो त्त्वो द्वारा करता है जेसे की ईष्ट –अनिष्ट ,योग्य –अयोग्य ,उचित –अनुचित ,शुभ –अशुभ इत्यादि यह दो तत्व ही नीतिशास्त्र के आध्यान के विषयवस्तु है
Right ---यहा शब्द rectus इस लैटीन शब्द से उत्पन्न हुआ है इसका अर्थ सीधा या नियमानुसार इस right शब्द को ही उचित कहते है तथा अँग्रेजी के wrong इस शब्द को अनुचित कहा जाता है किसी नियम के प्रतिकूल होने पर उसे अनुचित कहते है तथा अनुकूल होने से उचित कहते है आचरण की परिभाषा मे जो कृति किसी नियम के अनुसार होती है तो व्हा उचित कहलाती है इसका अर्थ यहा है की किसी कृति को नियमो मे ढालने के बाद ही अस्तित्व प्रदान होता है
Good-अर्थात शुभ यह शब्द जर्मन भाषा के gut शब्द से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है लक्ष्य मे सहायक इस प्रकार शुभ एक साधन है जिसका उपयोग किसी सध्य की प्राप्ति मे किया जाता है दूसरे शब्दो मे कोई भी कृति जब शुभ कहलाती है या ईष्ट कहलाती है तब वह किसी ध्येय को उपयुक्त ही होती है |इस के विपरीत जो किसी सध्या का साधन नहीं है वर्णन बाधक हो वह अशुभ या अनिष्ट कहलाती है
सर्वोच्च शुभ /परमशुभ ---नीतिशास्त्र मे मनुष्य का अंतिम ध्येय होना चाहिए इस बारे मे अध्ययन होता है तथा उसी ध्येय की तुलना मे मानवीय कृतियों का मूल्यमापन होता है |परमशुभ साध्य है साधन नहीं यह आंतरिक दुष्टि से मूल्यवान है |यह सभी शुभों का आधार है नीतिशास्त्र मे परमशुभ को ही नैतिक मापदंड माना जाता है
नीतिशास्त्र कला है या शास्त्र ?
नीतिशास्त्र शास्त्र है उसके साथ साथ वह आदर्शीय शास्त्र भी है जो मूल्यो पर आधारित है नीतिशास्त्र कला नहीं है इसका अर्थ यह है की नीतिशास्त्र नुत्य,संगीत ,चित्रकला की तरह कला नहीं है |जिस प्रकार चित्रकला का आध्यान करने से मनुष्य कुशल चित्रकार बनता है उसीप्रकार नीतिशास्त्र के अध्ययन से व्यक्ति नैतिक आचरण नहीं करने लग जाता है
चित्रकार की कुशलता सुंदर आचरण प्रस्तुत करने मे नहीं है |
कला का सम्बंध रचनात्मक क्रिया से है किन्तु नीतिशास्त्र का सम्बंध ज्ञानात्मक पहल से है
कला जन्मजात है लकीन नीतिशास्त्र अर्जित है याने कला जन्म से ही पायी जाती है लकीन नैतिकता का ज्ञान देना पड़ता है |क्या शुभ है क्या अशुभ है ?इसका ज्ञान होना योग्य कृति के लिए जरूरी है |
परिणामो पर निर्भर करती है याने कला का मूल्यांकन बाह्य है लेकिन नीति हेतु पर निर्भर करती है इसलिए नैतिकता का मूल्यांकन आंतरिक है |
इस प्रकार कला तथा नीतिशास्त्र मे अंतर है अर्थात नीति,कला की विरोधी नहीं है |
सद्गुण अपनी कृतियों मे होता है |
कला और नीति दोनों मे फरक है |कला का संबंध विशिष्ट कृति से होता है लकीन आचरण का क्षेत्र व्यापक होता है । नीतिशास्त्र शास्त्र होते हुये भी अन्य शास्त्रो से अलग है इसलिए उसे आदर्शीय शास्त्र या नियामक शास्त्र कहते है कला का मूल्यमापन बाहरी रूप से होता है लकीन नीतिशास्त्र आंतरिक रूप से मूल्यमापन करता है ।व्यवहरिक शास्त्रो मे क्या है ?यहा महत्वपूर्ण है तथा नीतिशास्त्र मे क्या होना चाहिए यहा महत्वपूर्ण है ।नीतिशास्त्र आचरण से संबन्धित होने के कारण नैतिकता हमारे लिए मायने रखती है या महत्वपूर्ण होती है । यहा हम कृति के उद्देश्य पर ध्यान देते है ना की परिणामो पर । इसलिए कलाकार और अच्छा मनुष्य इसमे फर्क करना आवश्यक है । जिस मनुष्य मे कला निर्माण करने का सामर्थ्य है उसे कलाकार कहते है केवल अच्छी कृति करने का समर्थ्य होने से व्यक्ति नीतिमान नहीं हो सकते । नीतिमान होने के लिए वास्तव मे उचित कृति करना आवश्यक है इस लिए सद्गुण उनकी कृति मे रहते है ,एसे कहा जाता है । मनुष्य की अच्छाई तथा बुराई उसके कृति से याने आचरण से है की जाती है ।
सदगुणो से छुटकारा नहीं मिलता
काला का संबंध विशीष्ट कृति से होता है लकीन नीति का संबंध मानवीय आचरण से होता है । किसी भी कलाकर के कृति का मूल्यमाँपन केवल उस कला के दुष्टि से नहीं किया जा सकता बल्कि उस कला को नैतिक परिणाम क्या हो रहा है यहा बात महत्वपूर्ण होती है ।चोर चोरी करने की कला मे कितना भी निपुण या कुशल क्यो न हो नैतिक दुष्टि से वह अयोग्य ही कहलाएगी ।आचरण के क्षेत्र व्यापक हाओने के करना कला का सामावेश आचरण मे किया जा सकता है । लकीन सभी आचरण कला के क्षेत्र मे नहीं आ सकते है ।लतामंगेश्कर अगर गीत गाना छोड़ भी देती है या कोई चित्रकार चित्रकारिता से कुछ दिनो की छुट्टी भी ले सकता है फिर भी वे श्रेष्ठ गायिका या श्रेष्ठ चित्राकर ही कहलाएगा लकीन या परंतु अच्छा या नीतिमान व्यक्ति यदि अपनी अच्छाई से या अच्छे आचरण से कुछ दिनो की छुट्टी लेकर बुरे काम करे तो वह आदमी कभी नीतिमान नहीं कहलायेगा । इसलिए कला से तो छुट्टी मिल सकती है परंतु सदगुणो के रास्ते मे चलने वाले को सदगुणो से छुट्टी नहीं मिल सकती है ।
नीतिशास्त्र की उपयोगिता या महत्व
नीतिशास्त्र मनुष्य को उचित तथा अनुचित का ज्ञान देकर अन्तिम सत्या की ओर ले चलता है ।नीतिशास्त्र का महत्वपूर्ण उड़देश्य मनुष्य को उसका सर्वोच्चा हित बताना है ।शुभ और अशुभ ,उचित और अनुचित ,का ज्ञान देते हुये जीवन कलात्मक रूप से कैसे जी जा सकती है यहा नीतिशास्त्र का अभ्यास विषय है ।नीतिशास्त्र किसी विशिष्ट जाती या धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है केवल मनुष्य को नैतिक बनाना ही उसका कर्तव्य है नीतिशास्त्र के अध्ययन से व्यक्ति खुद को जानना सीखता है । नीतिशास्त्र उसे व्यवहरिक कुशल बनाता है ।नीतिशास्त्र के अध्ययन से व्यक्ति अन्ध –विश्वास तथा धर्मविषयक गलतफहेमियों से मुक्ति पता है या मुक्ता हो जाता है ।नीतिशास्त्र का महत्वपूर्ण योगदान न्यायशास्त्र तथा राजनीति मे है । न्यायाधीशो को नीति का ज्ञान होना अत्यंत अवश्यक है । तभी वो योग्य या उचित निर्णय ले सकता है ।
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