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स्विस संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व राजनीतिक परंपराएँ

स्विस संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व राजनितिक परंपरा

लगभग ५० लाख जनसंख्या और १६ हजार वर्गमील भूमि का देश स्विट्जरलैण्ड विश्व के सबसे छोटे स्वत राज्यों में से एक है , लेकिन अपनी विशिष्ट राजनीतिक संस्थाओं के कारण स्विस संविधान और शासन व्यवस्था के अध्ययन निश्चित रूप से बहुत अधिक महत्त्व है । साधारण व्यक्ति के लिए स्विट्जरलैण्ड विश्व का सबसे प्रमुख प्राकृतिक सौन्दर्य का स्थल , रेड क्रॉस और प्रसिद्ध घड़ियों का निर्माण स्थल ही है , लेकिन राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी के लिए यह इससे बहुत अधिक है । यह प्रजातन्त्र का घर और विश्व की सबसे प्रमुख राजनीतिक प्रयोगशाला है । स्विट्जरलैण्ड की राजधानी बर्न है । संघीय सरकार २ / १ ९ के मुख्य कार्यालय यही पर स्थित है ।




"स्विट्जरलैण्ड का संवैधानिक विकास ( CONSTITUTIONAL DEVELOPMENT OF SWITZERLAND ) : १२ ९ १ का राज्यमण्डल या स्थायी मैत्री संघ वर्तमान स्विट्जरलैण्ड के निर्माण की प्रक्रिया और स्विट्जरलैण्ड के संवैधानिक विकास का प्रारम्भ १२ ९ १ से समझा जा सकता है जबकि ऊरी , स्वेज और अण्डरवाल्डेन द्वारा आत्मरक्षा हेतु एक राज्यमण्डल ( League ) की स्थापना की गयी । इसके पूर्व वर्तमान स्विट्जरलैण्ड के क्षेत्र में अलग - अलग कैण्टन आस्ट्रिया के हैप्सबर्ग शासकों के अधीन थे , लेकिन १२ ९ १ में तीन कैण्टनों ने हैप्सबर्ग शासन से स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए एक राज्यमण्डल की स्थापना की । हैप्सबर्ग शासन द्वारा इन तीनों कैण्टनों को पुनः अपने अधीन कर लेने का प्रयत्न किया गया , यह कैण्टन अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा करने में सफल रहे । इससे प्रोत्साहित होकर अन्य कैण्टन भी राज्यमण्डल की ओर प्रवृत्त हुए और १३५३ तक इस राज्यमण्डल में ८ कैण्टन शामिल हो गये । १६४८ तक इस राज्य मण्डल में १३ कैण्टन शामिल हो गये , जो सभी जर्मन भाषाभाषी थे । राज्यमण्डल की प्रतिष्ठा में भी निरन्तर वृद्धि हुई और १६४८ की बेस्टफेलिया की सन्धि में इसे एक सम्प्रभु राज्य के रूप में मान्यता प्रदान की गयी ।


राज्यमण्डल की दुर्बलता (Weakness of Confederation ) - यद्यपि यह राज्यमण्डल बाहरी आक्रमणों के विरुद्ध अपने अस्तित्व को बनाये रखने में सफल रहा , लेकिन राज्यमण्डल निश्चित रूप से बहुत अधिक दुर्बल था । राज्यमण्डल में अपनी कोई स्थायी केन्द्रीय सरकार नहीं थी । इसकी एकमात्र संस्था ' डाईट ' ( Dict ) थी , जिसके समय - समय पर सम्मेलन अवश्य होते थे और उसमें राष्ट्रीय महत्त्व के प्रश्नों पर विचार होता था , परन्तु जो कैण्टन बहुमत निर्णय से असहमत हों , उन पर वे निर्णय लागू नहीं होते थे । प्रतिनिधि अपने कैण्टनों द्वारा दिये गये आदेशों के अनुसार ही कार्य करते थे । न कोई संघीय कार्यपालिका थी और न कोई संघीय सेना ; न कोई राष्ट्रीय नागरिकता थी और न काई संघीय जनपदाधिकारी वर्ग । इसके अतिरिक्त विभिन्न कैण्टनों की शासन - प्रणालियों में प्रचुर विभिन्नता थी । ६ कैण्टनों में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र था , ३ कैण्टनों में सीमित मताधिकार के साथ प्रतिनिध्यात्मक प्रजातन्त्र और ४ कैण्टन कुलीनतन्त्रात्मक थे । धार्मिक मतभेदों के कारण १७१२ में दूसरा गृहयुद्ध छिड़ गया , जिसने स्विस राज्यमण्डल को बड़ा दुर्बल कर दिया । इसलिए अनेक इतिहासकारों का तो यहां तक मत है कि इस समय स्विस राज्यमण्डल नाम की कोई वस्तु थी ही नहीं । ब्रुक्स का कहना है कि “ इस समय स्विट्जरलैण्ड का केन्द्रीय शासन ' राज्यमण्डल के विधान ' ( Articles of Confedertion ) के अन्तर्गत संचालित संयुक्त राज्य अमरीका के केन्द्रीय शासन से भी अधिक शक्तिहीन था ।


" हेल्वेटिक गणराज्य की स्थापना ( Establishment of Helvetic Republic , 1798-1815 ) - इस स्थिति में क्रान्तिकारी फ्रांसीसी सेनाओं ने स्विट्जरलैण्ड पर आक्रमण कर राज्यमण्डल की निर्बलता को नितान्त स्पष्ट कर दिया । विजय के पश्चात् फ्रांसीसी क्रान्तिकारीयों ने पुराने राज्यमण्डल के स्थान पर नवीन गणतन्त्र की स्थापना की और इसे ' हेल्वेटिक गणराज्य ' का नाम दिया । यह नवीन गणतन्त्र वास्तव में फ्रांस का एक संरक्षित राज्य था और पेरिस में एक नवीन संविधान बनाकर इस पर लाद दिया गया था । इस नवीन संविधान और उसके अन्तर्गत स्थापित की गयी व्यवस्था के सबसे प्रमुख लक्षण एकात्मकता , केन्द्रीय सत्ता और सुदृढ़ नौकरशाही थे । यह नवीन व्यवस्था स्विट्जरलैण्ड की मूल स्थानीयता की प्रवृत्ति के इतनी अधिक विरुद्ध थी कि इसका विरोध होना नितान्त स्वाभाविक था । शीघ्र ही लगभग समस्त स्विट्जरलैण्ड में इस व्यवस्था के विरुद्ध अशान्ति और विद्रोह फैल गया । |


स्विट्जरलैण्ड में पुनः शान्ति और व्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य से नेपोलियन ने हस्तक्षेप किया और स्विट्जरलैण्ड के ६० प्रतिनिधियों को पेरिस बुलाकर इन्हें फ्रांसीसी परामर्शदाताओं की सहायता से स्विट्जरलैण्ड के लिए एक नवीन संविधान रचने का कार्य सौंपा गया । सन् १८०३ में नेपोलियन ने प्रसिद्ध ' एक्ट ऑफ मेडिएशन ' ( Act of Mediation ) की घोषणा की जिसने हेल्वेटिक गणतन्त्र का अन्त कर नवीन संविधान को क्रियान्वित कर दिया । इस नवीन संविधान ने बहुत कुछ अंशो में राज्यमण्डल की व्यवस्था को पुनर्जीवित कर दिया गया और कैण्टनों को पर्याप्त सीमा तक स्वायत्तता प्रदान कर दी गयी ।


वियना कांग्रेस और नवीन संविधान ( Vienna Congress and New Contitution , 1815-1848 ) - १८ ९ ३ में नेपोलियन की पराजय के पश्चात यूरोप के संयुक्त राज्यों ने १८१४ में स्विस डायट को एक नया संविधान बनाने के लिए विवश किया । इस नवीन व्यवस्था को ' पैक्ट ऑफ पेरिस ' ( Pact of Paris ) कहा जाता है और १८१५ की वियना कांग्रेस ने इस नवनिर्मित संविधान को स्वीकार कर लिया । वियना कांग्रेस ने जहां एक ओर स्विट्जरलैण्ड की आन्तरिक व्यवस्था की , वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय राजनीति में स्विट्जरलैण्ड की स्थायी तटस्थता की घोषणा कर इसकी वैदेशिक स्थिती भी निष कर दी । वियना कांग्रेस का यह निश्चित रूप से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य था जिसे वर्तमान समय तक मान्यता प्राप्त है । स्विस राज्यसंघ की सदस्य संख्या २२ हो गयी और यह जर्मन , फ्रेंच तथा इटालियन तीन भाषाओं से सम्बन्धित लोगों का भाषाभाषी राज्य हो गया । पेरिस पैक्ट को इस दृष्टि से प्रतिक्रियावादी कहा जाता है कि इसने स्थानीय स्वायत्तता को अत्यधि महत्त्व दिया और संघीय शक्ति को दुर्बल कर दिया ।


संघर्ष और केन्द्रवादी शक्तियों की विजय ( Struggle and Conquest of Centralizing Forces १८१५ में नवीन व्यवस्था लागू किये जाने के बाद से ही कैण्टनों के मध्य संवैधानिक और धार्मिक मतभेद और उनके परिणामस्वर संघर्ष प्रारम्भ हो गया । इस संघर्ष के दो पक्ष थे एक पक्ष , सुधारवादी प्रोटेस्टेण्ट और दूसरा पक्ष प्रतिक्रियावादी कैथोलि कैण्टनों का सुधारवादी पक्ष , जिसे रेडीकल्स ' का नाम दिया गया , अधिक एकात्मकता और केन्द्रीयकरण का समर्थक लेकिन प्रतिक्रियावादी पक्ष , जिसे ' फेडरलिस्ट्स ' ( Federalists ) का नाम दिया गया , कैण्टनों के लिए अधिकाधिक स्वायत चाहता था । १८४७ में यह संघर्ष अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया , जबकि ७ कैथोलिक कैण्टनों ने राज्यमण्डल से पृथक हो अपने लिए पृथक् संघ ' सुन्दरबण्ड ' ( Sunderbund ) की स्थापना का प्रयत्न किया । १ ९ दिन ( १०-२९ नवम्बर १८४७ ) के गृहयुद्ध में राज्य संघ की सेनाओं ने कैथोलिक ' कैण्टनों ' की सेनाओं को पराजित कर दिया और केन्द्रवादी पक्ष की विजय -


सन् १८४८ का संविधान ( Constitution of 1848 ) - युद्ध की समाप्ति पर संघीय डायट ने यह अनुभव कि कि केन्द्रीय सरकार पर्याप्त शक्तिशाली होनी चाहिए , जिससे वह बाहरी आक्रमणों का सामना तथा आन्तरिक क्षेत्र में शान्ति ॐ व्यवस्था बनाये रखने का कार्य सफलतापूर्वक कर सके । अतः तद्नुसार शासन प्रणाली में परिवर्तन करने के लिए फरवरी १८१८ में १४ सदस्यों के एक आयोग की नियुक्ति की गयी । लगभग ५० दिन ( ११ फरवरी -८ अप्रैल १८४८ ) के परिश्रम से इस आ ने संविधान का एक प्रारूप तैयार किया , जिस पर ५ अगस्त से २ सितम्बर तक विभिन्न कैण्टनों में लोकनिर्णय लिया गय लोकनिर्णय में जनता द्वारा भारी बहुमत से स्वीकार किये जाने और २२ में से १५ ½ कैण्टनों द्वारा इसे स्वीकार कर लिये जाने नया संविधान १२ सितम्बर , १८४८ से लागू कर दिया गया ।


सन् १८७४ का पूर्ण संवैधानिक संशोधन ( Complete Constitutional Revision of 1874 ) स १८४८ में निर्मित संविधान के अन्तर्गत संविधान के पूर्ण संशोधन और आंशिक संशोधन की व्यवस्था की गयी है । इस व्यवस्था के अन्तर्गत अब तक संविधान में ५७ संशोधन किये जा चुके हैं , लेकिन इसमें पूर्ण संशोधन १८७४ में ही किया गया और इस का सर्वाधिक महत्त्व है । वर्तमान स्विस शासन प्रणाली का मूल आधार १८४८ में निर्मित और १८७४ में संशोधित किया गय संविधान ही है ।


सन् १ ९ ८७४ के इस पूर्ण संशोधन के आधार पर चार दिशाओं में परिवर्तन किये गये

( १ ) शासन - शक्ति के अधिकांश का केन्द्रीकरण ,

( २ ) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्रवाद की दिशा में प्रगति ,

( ३ ) आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में अधिकाधिक राजकीय हस्तक्षेप , तथा

( ४ ) धार्मिक महन्तों की शक्ति पर प्रहार तथा समाप्ति संविधान के इस पूर्ण संशोधन में १८४८ के संविधान की १४ धाराएं बिलकुल रद्द कर दी गयी , ४० संशोधित हुई तो २१ नई धाराएं अपनायी गयीं । यह संशोधित संविधान १ ९ अप्रैल , १८७४ को जनता तथा राज्यों के बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया गया । यह संशोधित संविधान ११ मई , १८७४ से प्रभावी हुआ । पूर्ण संशोधन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य संघीय सरकार की समस्त सेना पर नागरिक ताका पूर्ण आधिपत्य स्थापित करना था ।


१८७४ के उपरान्त संवैधानिक विकास ( Constitutional Development after 1874 ) १८७४ के रान्त संवैधानिक विकास से लेकर अब तक संविधान में अनेक संशोधन हो चुके है । संशोधन के परिणामस्वरूप संघीय सरकार की शक्तियों का और केन्द्रीकरण हुआ है और इन संशोधनों ने जीवन के आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में शासन को और अधिक उत्तरदायित्व सौंपे हैं । इसके साथ ही कानून निर्माण में लोकनिर्णय को अपनाकर लोगों को कानून निर्माण में पहले से अधिक भूमिका और शक्ति प्रदान की गई । १ ९ ३५ में एक आन्दोलन के माध्यम से मांग की गयी कि स्विट्जरलैण्ड के संविधान में पुन पूर्ण संशोधन होना चाहिए । इस आन्दोलन के समर्थक चाहते थे कि कैण्टनों की शक्तियां में वृद्धि की जाये , विधानमण्डलों के इस नवनिर्मित संविधान को स्वीकार कर लिया । वियना कांग्रेस ने जहां एक ओर स्विट्जरलैण्ड की आन्तरिक व्यवस्था निर्धारि की , वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय राजनीति में स्विट्जरलैण्ड की स्थायी तटस्थता की घोषणा कर इसकी वैदेशिक स्थिती भी निर्धारित कर दी । वियना कांग्रेस का यह निश्चित रूप से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य था जिसे वर्तमान समय तक मान्यता प्राप्त है । इसी सम स्विस राज्यसंघ की सदस्य संख्या २२ हो गयी और यह जर्मन , फ्रेंच तथा इटालियन तीन भाषाओं से सम्बन्धित लोगों का बह भाषाभाषी राज्य हो गया । पेरिस पैक्ट को इस दृष्टि से प्रतिक्रियावादी कहा जाता है कि इसने स्थानीय स्वायत्तता को अत्यधिद महत्त्व दिया और संघीय शक्ति को दुर्बल कर दिया । था .


संघर्ष और केन्द्रवादी शक्तियों की विजय ( Struggle and Conquest of Centralizing Forces ) , १८१५ में नवीन व्यवस्था लागू किये जाने के बाद से ही कैण्टनों के मध्य संवैधानिक और धार्मिक मतभेद और उनके परिणामस्वरू संघर्ष प्रारम्भ हो गया । इस संघर्ष के दो पक्ष थे- एक पक्ष , सुधारवादी प्रोटेस्टेण्ट और दूसरा पक्ष , प्रतिक्रियावादी कैथोलिक कैण्टनों का सुधारवादी पक्ष , जिसे ' रेडीकल्स ' का नाम दिया गया , अधिक एकात्मकता और केन्द्रीयकरण का समर्थक लेकिन प्रतिक्रियावादी पक्ष , जिसे ' फेडरलिस्ट्स ' ( Federalists ) का नाम दिया गया , कैण्टनों के लिए अधिकाधिक स्वायत्तता चाहता था । १८४७ में यह संघर्ष अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया , जबकि ७ कैथोलिक कैण्टनों ने राज्यमण्डल से पृथक होकर अपने लिए पृथक् संघ ' सुन्दरबण्ड ' ( Sunderbund ) की स्थापना का प्रयत्न किया । १ ९ दिन ( १०-२९ नवम्बर १८४७ ) के इस गृहयुद्ध में राज्य संघ की सेनाओं ने कैथोलिक ' कैण्टनों ' की सेनाओं को पराजित कर दिया और केन्द्रवादी पक्ष की विजय हुई ।


सन् १८४८ का संविधान ( Constitution of 1848 ) युद्ध की समाप्ति पर संघीय डायट ने यह अनुभव किया कि केन्द्रीय सरकार पर्याप्त शक्तिशाली होनी चाहिए , जिससे वह बाहरी आक्रमणों का सामना तथा आन्तरिक क्षेत्र में शान्ति और व्यवस्था बनाये रखने का कार्य सफलतापूर्वक कर सके । अतः तद्नुसार शासन प्रणाली में परिवर्तन करने के लिए फरवरी १८४८ में १४ सदस्यों के एक आयोग की नियुक्ति की गयी । लगभग ५० दिन ( ११ फरवरी -८ अप्रैल १८४८ ) के परिश्रम से इस आयोग ने संविधान का एक प्रारूप तैयार किया , जिस पर ५ अगस्त से २ सितम्बर तक विभिन्न कैण्टनों में लोकनिर्णय लिया गया । लोकनिर्णय में जनता द्वारा भारी बहुमत से स्वीकार किये जाने और २२ में से १५ ½ कैण्टनों द्वारा इसे स्वीकार कर लिये जाने पर नया संविधान १२ सितम्बर , १८४८ से लागू कर दिया गया ।


सन् १८७४ का पूर्ण संवैधानिक संशोधन ( Complete Constitutional Revision of 1874 ) सन् १८४८ में निर्मित संविधान के अन्तर्गत संविधान के पूर्ण संशोधन और आंशिक संशोधन की व्यवस्था की गयी है । इस व्यवस्था के अन्तर्गत अब तक संविधान में ५७ संशोधन किये जा चुके हैं , लेकिन इसमें पूर्ण संशोधन १८७४ में ही किया गया और इसी का सर्वाधिक महत्त्व है । वर्तमान स्विस शासन प्रणाली का मूल आधार १८४८ में निर्मित और १८७४ में संशोधित किया गया । संविधान ही है ।


सन् १८७४ के इस पूर्ण संशोधन के आधार पर चार दिशाओं में परिवर्तन किये गये

( १ ) शासन - शक्ति के अधिकांश का केन्द्रीकरण ,

( २ ) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्रवाद की दिशा में प्रगति ,

( ३ ) आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में अधिकाधिक राजकीय हस्तक्षेप , तथा

( ४ ) धार्मिक महन्तों की शक्ति पर प्रहार तथा समाप्ति संविधान के इस पूर्ण संशोधन में १८४८ के संविधान की १४ धाराएं बिलकुल रद्द कर दी गयी , ४० संशोधित हुई तो २१ नई धाराएं अपनायी गयीं । यह संशोधित संविधान १ ९ अप्रैल , १८७४ को जनता तथा राज्यों के बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया गया । यह संशोधित संविधान ११ मई , १८७४ से प्रभावी हुआ । पूर्ण संशोधन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य संघीय सरकार की समस्त सेना पर नागरिक सत्ता का पूर्ण आधिपत्य स्थापित करना था ।


१८७४ के उपरान्त संवैधानिक विकास ( Constitutional Development after 1874 ) - १८७४ के उपरान्त संवैधानिक विकास से लेकर अब तक संविधान में अनेक संशोधन हो चुके है । संशोधन के परिणामस्वरूप संघीय सरकार की शक्तियों का और केन्द्रीकरण हुआ है और इन संशोधनों ने जीवन के उत्तरदायित्व सौंपे हैं । इसके साथ ही कानून - निर्माण में लोकनिर्णय को अपनाकर लोगों को कानून निर्माण में पहले से अधिक भूमिका और शक्ति प्रदान की गई । १ ९ ३५ माध्यम से मांग एक आन्दोलन के आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में शासन को और अधिक की गयी कि स्विट्जरलैण्ड के संविधान में पुनः में पूर्ण संशोधन होना चाहिए । इस आन्दोलन के समर्थक चाहते थे कि कैण्टनों की शक्तियां में वृद्धि की जाये , विधानमण्डलों के चुनाव व्यावसायिक प्रतिनिधित्व ' ( Vocational Representation ) के सिद्धान्त के अनुसार हों और अन्ततोगत्वा स्विट्जरलैण्ड से एक ' निगमनात्मक राज्य ' ( Corporate State ) की स्थापना की जाय , किन्तु यह मांग अस्वीकृत कर दी गयी और वर्तमान समय में स्विस संविधान में पूर्ण संशोधन की कोई सम्भावना नहीं है ।


 

स्विट्जरलैण्ड की राजनीतिक परंपराएँ


स्विस राजनीतिक परंपराओं व संवैधानिक महत्त्व का अध्ययन निम्न बिंदुओं के आधार पर किया जा सकता है

( १ ) विश्व का सर्वाधिक प्राचीन गणतन्त्र ( Oldest Republic of the World ) स्विट्जलैण्ड विश्व का सर्वाधिक प्राचीन गणतन्त्रीय राज्य है । सन् १८४८ के संविधान द्वारा स्विट्जरलैण्ड में गणतन्त्र की स्थापना हुई , उस समय वह आधुनिक विश्व का अकेला गणतन्त्र था । सन् १८४८ के पूर्व भी स्विट्जरलैण्ड में इस प्रकार का राजतन्त्र नहीं रहा , जिस प्रकार का राजतन्त्र इंग्लैण्ड , फ्रांस या सोविएत रूस में था । स्विस नागरिक न केवल वंशानुगत राजा वरन् किसी एक निर्वाचित प्रधान को भी पूर्ण शक्ति प्रदान करने के विरुद्ध रहे हैं और इस गणतन्त्रीय भावना की अत्यधिक प्रबलता के कारण ही उनके द्वारा एकल कार्यपालिका के स्थान पर बहुल कार्यपालिका को अपनाया गया है ।


( २ ) प्रजातन्त्र का आदर्श प्रतीक ( Best Model of Democracy ) स्विस राजनीतिक व्यवस्था को महत्त्व प्रदान करने वाला दूसरा तत्व उसका प्रजातन्त्रात्मक लक्षण है । आधुनिक युग में स्विट्जरलैण्ड उसी प्रकार से प्रजातन्त्र का प्रतीक है , जिस प्रकार प्राचीन विश्व में एथेन्स था । स्विस प्रजातन्त्र के नागरिकों को राजनीति तक शक्ति प्रदान की गयी है , उतनी सीमा तक अन्य किसी लोकतन्त्र में प्रदान नहीं की गयी है । ५ स्विस कैण्टनों में वर्तमान समय व्यवस्था में भाग लेने की जितनी सीमा में भी प्रत्यक्ष लोकतन्त्र है और नागरिकों के द्वारा ' जन सभाओं ' में कानूनों का निर्माण किया जाता है । लोक निर्णय और आरम्भक का स्विट्जरलैण्ड में ही उदय हुआ और वर्तमान समय में भी इनका बहुत अधिक सीमा तक पालन किया जाता है । अतः यह ठीक ही कहा गया है कि यदि ब्रिटेन संसदात्मक व्यवस्था का और अमरीका संघात्मक व्यवस्था का जनक है , तो स्विट्जरलैण्ड आधुनिक विश्व में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का घर होने का दावा कर सकता है । १


( ३ ) विविधता में एकता ( Unity in Diversity ) - स्विट्जरलैण्ड ने विविधता के बीच एकता का भी आदर्श उदाहरण उपस्थित किया है । स्विट्जरलैण्ड में भाषा धर्म और संस्कृति के भेद पाये जाते है , लेकिन इन भेदों के बावजूद राष्ट्रीय एकता की भावना बहुत अधिक प्रबल है । स्विट्जरलैण्ड में लगभग ७४ प्रतिशत लोग जर्मन , २० प्रतिशत फ्रेंच , ५ प्रतिशत इटालियन और १ प्रतिशत रोमन भाषा - भाषी है , लेकिन इस भाषा सम्बधी विविधता का हल इन सभी भाषाओं को राज - भाषा का स्तर प्रदान कर निकाल लिया गया है । इसी प्रकार वहां लगभग ५८ प्रतिशत लोग प्रोटेस्टेण्ट , ४० प्रतिशत रोमन कैथोलिक , १ प्रतिशत यहूदी और १ प्रतिशत अन्य है , लेकिन इन सभी ने धार्मिक सहिष्णुता और एक - दूसरे के प्रति सम्मान को इतने गहरे रूप में अपना लिया है कि इन धार्मिक भेदों ने राष्ट्रीय एकता को निर्बल करने के बजाय सुदृढ़ ही किया है । भाषायी और धार्मिक भेदों के कारण फूट उत्पन्न न होने का एक कारण यह भी है कि वहां एक ही धर्म के अनुयायियों को भाषाएं अनेक हैं और एक भाषा बोलने वाले लोग अनेक धर्मों के अनुयायी हैं । इसके अतिरिक्त कैण्टनों की सीमाएं भी धर्म तथा भाषा के क्षेत्रों की सीमाओं से भिन्न हैं । इन सबके कारण धर्म , भाषा और क्षेत्रीयता के भेद प्रबल नहीं हो सके है । स्विट्जरलैण्ड की विविधता में यह एकता भारत जैसे राज्यों के लिए तो एक उदाहरण ही है । सुदूर भविष्य में एक विश्व राज्य की स्थापना के लिए भी यह एक आदर्श बन सकता है ।


( ४ ) स्थायी तटस्थता ( Permanent Neutrality ) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से भी स्विट्जरलैण्ड की राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन महत्त्वपूर्ण है । वर्तमान समय में , जबकि विश्व के विभिन्न राज्य एक - दूसरे का विरोध करने में संलग्न हैं , स्विट्जरलैण्ड ने स्थायी तटस्थता को अपनाकर ' अशान्ति के समुद्र में बसने वाले सुखी द्वीप ' की स्थिति प्राप्त कर ली है । सर्वप्रथम १८१५ की वियना कांग्रेस द्वारा स्विट्जरलैण्ड की स्थायी तटस्थता को मान्यता प्रदान की गयी । १ ९९९ की वर्साय सन्धि और उसके बाद के अन्य अन्तर्राष्ट्रीय सम्मलनों में स्विट्जरलैण्ड ने सदा इस बात पर बल दिया कि स्विट्जरलैण्ड को स्थायी रूप मे एक तटस्थ राज्य घोषित किया जाय और सभी राज्यों ने स्विट्जरलैण्ड की इस स्थिति को स्वीकार किया । प्रथम महायुद्ध और द्वितीय महायुद्ध में स्विट्ज़रलैण्ड ने युद्धरत दोनों पक्षों के साथ समान सम्बन्ध बनाये रखे और और हिटलर तथा मुसोलिनो भी उसकी तटस्थता को बना रहने दिया । इसी कारण स्विट्जरलैण्ड के द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता प्राप्त नहीं की गयी है ,क्योंकि संघ की सदस्यता सदस्य राष्ट्रों को आक्रमणकारी राज्य का विरोध करने का दायित्व सौंपती है । स्विट्जरलैण्ड संघ की आर्थिक , सामाजिक और मानवीय क्षेत्र में कार्य करने वाली समितियों का सदस्य अवश्य है । इस सम्बन्ध में हमारे द्वारा भारत की तटस्थता और स्विट्जरलैण्ड की तटस्थता में अन्तर कर लिया जाना चाहिए । भारतीय तटस्थता का तात्पर्य शीतयुद्ध के दो पक्षों में तटस्थता से है और इसे सही अर्थों में ' असंलग्नता की नीति ' ( Policy of Non - alignment ) कहा जाना चाहिए । आधुनिक विश्व के अन्य तथाकथित तटस्थ राष्ट्रों की स्थिति भी यही है , लेकिन स्विट्जरलैण्ड अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अर्थों में तटस्थ है और उसे विश्व के विभिन्न राज्यों के विवादों से कुछ भी लेना - देना नहीं है अपनी इस तटस्थता के कारण स्विट्जरलैण्ड को अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में बहुत अधिक सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त है और इसी आधार पर इसने परस्पर विरोधी राज्यों के बीच सम्पर्क सूत्र का कार्य किया है । अपनी स्थायी तटस्थता के बावजूद स्विट्जरलैण्ड किसी भी आक्रमण से रक्षा के लिए तत्पर और सक्षम है ।


( ५ ) बहुल कार्यपालिका ( Plural Executive ) - सामान्यतया ऐसा समझा जाता है कि कार्यपालिका का संगठन एकल होना चाहिए , जिससे उसके द्वारा शासन - व्यवस्था का संचालन कुशलता के साथ किया जा सके । भारत , ब्रिटेन और अमरीका में एकल कार्यपालिका ही है , लेकिन स्विट्जरलैण्ड में ७ सदस्यों की बहुल कार्यपालिका को अपनाया गया है । यह कार्यपालिका न तो पूर्ण अंशों में संसदात्मक है और न ही अध्यक्षात्मक , वरन् इसमें दोनों के ही गुणों को ग्रहण करते हुए विश्व के सम्मुख एक नवीन उदाहरण उपस्थित किया गया है ।


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