तुलनात्मक राजनीति का महत्व और इसके क्षेत्र की व्याख्या

राजनीति हमारे समाज के हर पहलू को प्रभावित करती है। जब हम विभिन्न देशों या समाजों की राजनीतिक प्रणालियों, नीतियों और व्यवहारों की तुलना करते हैं, तो हमें तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन करना होता है। यह क्षेत्र न केवल राजनीतिक संरचनाओं को समझने में मदद करता है, बल्कि यह भी बताता है कि विभिन्न राजनीतिक प्रणालियाँ कैसे काम करती हैं और वे समाज पर किस प्रकार प्रभाव डालती हैं। इस लेख में हम तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति और इसके क्षेत्र की विस्तार से व्याख्या करेंगे।

तुलनात्मक राजनीति क्या है?
तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक विज्ञान की वह शाखा है जो विभिन्न देशों और समाजों की राजनीतिक प्रणालियों, संस्थाओं, प्रक्रियाओं और नीतियों की तुलना करती है। इसका उद्देश्य राजनीतिक व्यवहार और संरचनाओं के सामान्य सिद्धांतों को समझना और उनका विश्लेषण करना होता है। यह अध्ययन राजनीतिक विविधताओं को समझने, राजनीतिक विकास के पैटर्न खोजने और राजनीतिक समस्याओं के समाधान खोजने में सहायक होता है।

तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन राजनीतिक घटनाओं को एक व्यापक संदर्भ में देखने का अवसर देता है। उदाहरण के लिए, लोकतंत्र और तानाशाही के बीच के अंतर को समझने के लिए तुलनात्मक दृष्टिकोण जरूरी होता है। इससे यह भी पता चलता है कि किन कारकों से राजनीतिक स्थिरता या अस्थिरता होती है।

तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति तथा क्षेत्र की व्याख्या कीजिये ।

उत्तर : ( A ) तुलनात्मक राजनीति की प्रकृतिः आधुनिक तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति के संबंध में मुख्यतः निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं .

( i ) तुलनात्मक राजनीति एक लम्बवत तुलना है ( Vertical | Comparative Study ) : इस दृष्टिकोण के समर्थक विद्वानों के अनुसार | तुलनात्मक राजनीति एक ही देश में स्थित , विभिन्न स्तरों पर स्थापित सरकारों व उनको प्रभावित करने वाले राजनीतिक व्यवहारों का तुलनात्मक विश्लेषण व अध्ययन है । प्रत्येक राज्य में कई स्तरों पर सरकारे होती हैं जैसे - राष्ट्रीय सरकार , प्रांतीय सरकार , स्थानीय सरकार आदि । इस दृष्टिकोण के अनुसार तुलनात्मक राजनीतिक का संबंध , इस प्रकार की एक ही देश में स्थित विभिन्न सरकारों ( राष्ट्रीय , प्रांतीय व स्थानीय ) की आपस में तुलना से है । तुलनात्मक राजनीति एक ही देश की विभिन्न सरकारों की लंबात्मक ( Vertical ) तुलना है । किंतु यह दृष्टिकोण तर्क संगत नहीं है । राष्ट्रीय सरकार और स्थानीय सरकारों के बीच पायी जाने वाली समानता सतही है । आर्थिक साधनों के स्त्रोंत , आकार , व संभावनाओं की दृष्टि से देखो तो दोनों में काफी अंतर पाया जाता है । राष्ट्रीय सरकार के नियम व कानून स्थानीय सरकारों की तुलना में अधिक कठोर होते हैं और उनका पालन भी अधिक दृढ़ता से कराया जाता है । इन भिन्नताओं के कारण तुलनात्मक राजनीति में एक ही देश विभिन्न स्तरीय सरकारों का तुलनात्मक विश्लेषण संभव दिखायी दे भी सामान्यीकरण की संभावनायें नही रखता । अतः तुलनात्मक राजनीति की व्याख्या एक लम्बात्मक अध्ययन व तुलना के रूप में नहीं की जा सकती ।

( ii ) तुलनात्मक राजनीति एक अनुप्रस्थ तुलना है : ( Horizontal Comparative Study ) : तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति संबंधी द्वितीय धारणा के अनुसार " यह राष्ट्रीय सरकारों की क्षैतिजीय / अनुप्रस्थ तुलना है । " अधिकांश राजनीति शास्त्री इस धारणा से सहमत है । ऐसी तुलना दो प्रकार से हो सकती है

१ ) एक ही देश में विभिन्न कालों में विद्यमान राष्ट्रीय सरकारों की आपस में तुलना ।
२ ) उन राष्ट्रीय सरकारों की आपस में तुलना , जो आज संपूर्ण विश्व में विद्यमान है । 
तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति संबंधी सर्वमान्य धारणा आज यही है कि यह समकालीन विश्व में प्रचलित राष्ट्रीय • सरकारों का तुलनात्मक अध्ययन है । जीन ब्लोन्डेल के अनुसार " हमारे पास तुलनात्मक सरकारों के अध्ययन का केवल एक .ही दृष्टिकोण शेष बचता है , और वह है समकालीन विश्व की राजनीतिक व्यवस्थाओं से संबंधित राष्ट्रीय सरकारों का राष्ट्रीय सीमाओं के आर - पार अध्ययन करना । " वास्तव में ऐसी ही तुलना से न केवल सामान्यीकरण ही संभव है , वरन् राजनीतिक व्यवहार के संबंध में ऐसे सिध्दांतों का प्रतिपादन भी किया जा सकता है , जिनसे हर देश की राजनीतिक व्यवस्था को समझा जा सके " ।

तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति के उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि तुलनात्मक राजनीति एक स्वतंत्र अनुशासन है , जो राजनीति विज्ञान में एक महत्वपूर्ण शाखा बन गया है । यद्यपि इसका अध्ययन भी राजनीतिक संस्थाओं से संबंधति राजनीति से है तथापि यह राजनीति विज्ञान के इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें राज्य व गैर - शासकीय राजनीति दोनो का ही अध्ययन सम्मिलित होता है । तुलनात्मक राजनीति एक ही देश की राष्ट्रीय सरकारों का ऐतिहासिक संदर्भ व राष्ट्रीय सीमाओं के आर - पार तुलनात्मक अध्ययन ही नहीं है , अपितु इसके साथ - साथ राजनीतिक प्रक्रियाओं व राजनीतिक व्यवहार तथा सरकारी तंत्रो को प्रभावित करने वाली गैर शासकीय व्यवस्थाओं का भी तुलनात्मक अध्ययन है । "

( B ) तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र : तुलनात्मक राजनीति का विषय क्षेत्र अभी भी संक्रमण की अवस्था में है । इसके विषय क्षेत्र का निर्माणात्मक अवस्था में होने के कारण ही जी.के. राबर्ट्स ने अपने लेख " Comparative politics today " में लिखा है कि " तुलनात्मक राजनीति सब कुछ है या वह कुछ भी नहीं है । " क्योंकि इसके विषय क्षेत्र में एक सीमा के बाद विस्तृतता इसे राजनीति विज्ञान के अनुरूप बना देती है तथा दूसरी तरफ , इसके क्षेत्र की अत्यधिक संकुचित अवधारणा इसे स्वतंत्र अनुशासन की अवस्था से ही वंचित कर देती है । हैरी एक्स्टीन का मत है कि " तुलनात्मक राजनीति के विषय क्षेत्र के संबंध में विद्वानों में गंभीर मतभेद है । उन्हीं के शब्दों में सबसे अधिक आधारभूत बात तुलनात्मक राजनीति के बारें में यह है कि आज यह एक ऐसा विषय है कि जिसमें अत्याधिक विवाद है , क्योंकि यह संक्रमण स्थिति में हैं- एक प्रकार की विश्लेषण शैली से दूसरे प्रकार की शैली में प्रस्थान कर रहा है । इससे स्पष्ट होता है कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का विषय क्षेत्र भी इसके अर्थ प्रकृति की तरह विवाद का विषय है । इसके विषय क्षेत्र को लेकर परंपरावादियों व आधुनिक राजनीतिशास्त्रियों में गहरा मतभेद है । जीन ब्लोंडेल के अनुसार यह विवाद दो बातों से संबंधित है । पहला , तुलनात्मक राजनीति की सीमा से संबंधित है और दूसरा , मानको व व्यवहार के पारस्परिक संबंधों से संबंधित है । यथा

( १ ) सीमा संबंधी विवाद : सभी राजनीति वैज्ञानिक इस बात पर सहमत है कि तुलनात्मक राजनीति का संबंध राष्ट्रीय सरकारों से है और इसमें से भी केवल सरकारी ढाँचो का ही अध्यययन नही अपितु गैर - सरकारी संस्थाओं के कार्यो का भी अध्ययन सम्मिलित रहता है । लेकिन उनमें विवाद इस बात को लेकर है कि तुलना से संबंधित राजनीतिक कार्यकलापों से क्या अर्थ समझा जाये ? अर्थात् सरकार की क्रियाओं की व्याख्या किस ढंग से की जावे ? इस संबंध में दो दृष्किोण प्रचलित है कानूनी दृष्टिकोन व व्यवहारवादी दृष्टिकोण ।

( i ) कानूनी दृष्टिकोण ( Legalistic Approach ) : इस दृष्टिकोन के अनुसार तुलनात्मक राजनीति में केवल संविधान द्वारा स्थापित सरकारी संरचना का , तथा संविधान द्वारा नियत किये गये राजनीतिक व्यवहार का तुलनात्मक अध्ययन ही किया जाना चाहिये । इस दृष्टिकोन के समर्थक यह मानते है कि संविधान ही शासन के ढाँचे का संगठन करता है और इसी के द्वारा हर संस्था के कार्यों का नियमन होता है । इसलिये तुलना राष्ट्रीय सरकारों के आधार , संविधान व उनके द्वारा नियत कार्यकलापों की ही होनी चाहिये । लेकिन आलोचकों की मान्यता है कि इस प्रकार की तुलना केवल सतही और बनावटी होगी । उदाहरणार्थ यदि कानूनी ढंग से ब्रिटिश संविधान का अध्ययन किया जावे तो आज वहाँ हम निरंकुश राजतंत्र पायेगें , जबकि व्यवहार में उसका लोकतंत्रीकरण हो चुका है ।

( ii ) व्यवहारवादी दृष्टिकोण ( Behavioural Approach ) : जीन ब्लोंडेल ने तो राजनीति के व्यावहारिक पक्ष को आधारित व मौलिक माना है । तुलनात्मक राजनीति में केवल कानूनी संस्थाओं का औपचारिक अध्ययन व तुलना पर्याप्त नही है । व्यवहारवादियों के अनुसार तुलनात्मक राजनीति में राजकीय संस्थाओं व गैर - राजकीय संस्थाओं को राजनीतिक व्यवहार से संबंधित सब तथ्य एकत्रित करके विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में तुलना करनी चाहिये । तुलनात्मक राजनीति का संबंध मुख्यतया शासन क्रिया के इर्द - गिर्द घूमते राजनीतिक व्यवहार के तुलनात्मक अध्ययन से है ।

( २ ) मानको व व्यवहार के संबंधों का विवाद : इस दृष्टिकोन के अनुसार मानकों की अभिव्यक्ति कानूनों प्रक्रियाओं व नियमों में होती है । परंतु राजनीतिक व्यवहार कई बार इन कानूनों के प्रतिकूल होता है और यही तुलनात्मक अध्ययन में जटिलतायें या बाधायें उत्पन्न करता है । यदि राजनीतिक व्यवहार मानकों के अनुकूल रहे तो तुलना करना होता है , किंतु आम तौर पर ऐसा नहीं होता है । राजनीतिक व्यवहार को तुलना से बाहर रखना , राजनीतिक व्यवस्थाओं की वास्तविकताओं से दूर रहना है । अतः तुलनात्मक राजनीति में यह भी देखा जाना चाहिये कि राजनीतिक व्यवहार मानकों के अनुकूल है या प्रतिकूल । वस्तुतः मानक व व्यवहार दोनों ही अचल नही रहते , क्यों कि दोनों ही गत्यात्मक है । मानक में परिवर्तन , व्यवहार में परिवर्तन लाता है और स्वयं व्यवहार भी नवीन मानको की स्थापना का कारण बन सकता है । संक्षेप में तुलनात्मक राजनीति में न केवल शासन तंत्रों व संगठनों की तुलना की जाती है और न ही मानक व व्यवहारों के संबंधों का विश्लेषण मात्र ही किया जाता है , वरन् इसके क्षेत्र में इन दोनो का ही समावेश है । 

( ३ ) वर्तमान अध्ययन क्षेत्र : वर्तमान समय में तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन क्षेत्र में निम्न विषयों के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता है में

( i ) विश्लेषणात्मक आनुभविक खोज ( Analytical and Empirical ) : इसके अंतर्गत अध्येता स्वयं राजनीतिक संस्थाओं और संरचनाओं की बजाय उसमें क्रियाशील कार्यकर्ताओं ( Political actors ) के व्यवहार का अध्ययन करता है ।

( ii ) अवसंरचना का अध्ययन ( Study of the Infra Structure ) : तुलनात्मक राजनीति का अध्येता औपचारिक संरचना की बजाय नव संरचनाओं के अध्ययन को अधिक महत्व देता है । वह कार्यपालिका , विधायिका , न्यायपालिका के साथ - साथ राजनीतिक दलों , दबाव गुटों , मतदान व्यवहार , लोकमत , आदि के अध्ययन पर ध्यान कें करता है ।

( iii ) विकासशील समाजों के अध्ययन पर बल ( Emphasis on the Study of Developing Societ ies ) : इसके अंतर्गत विकसित पश्चिमी देशों की शासन प्रणालियों के अध्ययन के साथ - साथ गरीब और पिछड़े हुये एफ्रो एशियाई जगत की सरकारों के अध्ययन पर भी बल दिया जाता है ।

( iv ) अंतःशास्त्रीय उपागम ( Focus on Interdisciplinary Approach ) : इसके अंतर्गत अध्ययन कर्ताओं ने समाजशास्त्र , मनोविज्ञान , अर्थशास्त्र , नृविज्ञान ( Anthropology ) , जीव विज्ञान आदि का भी अध्ययन किया है । इस विषय के अंतर्गत विद्वानों द्वारा अंतःशास्त्रीय उपागम अपनाने के कारण यह कहा जा सकता है कि राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में एक प्रकार की क्रांति आ गई है ।

( v ) मूल्यविहीन राजनीतिक सिद्धांत ( Value free Political theory ) : इस विषय का संबंध वस्तुओं के आदर्श रूप से न होकर उनके वास्तविक रूप से है , अतः तुलनात्मक राजनीति में मूल्य - मुक्त राजनीतिक सिद्धांत ने मूल्य युक्त * सिद्धांत का स्थान ग्रहण कर लिया है । हाल ही में तुलनात्मक राजनीतिक के अध्ययन क्षेत्र में निरंतर वृद्धि हो रही है । अब लार्ड ब्राईस का यह कथन उचित ही प्रतीत होता है कि " अब लगता है , समय आ गया है , जब सरकार की वास्तविकताओं का उनके विभिन्न रूपों में अन्वेषण किया जाय । "



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