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सुखवाद

अपडेट करने की तारीख: 29 जुल॰ 2022

सुखवाद



सुखवाद की प्रस्तावना

नीतिशास्त्र का सिद्धांत जो स्वीकार करता है की सुख ही परमसुख है उसे सुखवाद कहते है । इस सिद्धांत के अनुसार सुख ही नैतिकता का मापदंड है । सुख की प्राप्ति और दुख की निवृत्ति यही सुखवाद का नारा है सुखवाद को अँग्रेजी मे Hedonism कहते है Hedonism यह शब्द Hedon से बना है जिसका अर्थ है सूख । नैतिक कृति का मूल्यमापन करते समय कृति के परिणाम को महत्व देने वाले तत्व परिणामवादी कहलाते है ।और इनके मत को परिणामवादी मत कहते है । सुखवाद परिणामवाद कहलाता है । इनके अनुसार अगर कृति का परिणाम सुखकारक होते ही कृति उचित या योग्य कहलाती है । जिसका परिणाम दुखकारक होता है वह कृति अनुचित या अयोग्य कहलाती है इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य सुख की इच्छा से प्रेरित होकर ही कृति करता है । सुख के लिए सुख यह सुखवाद का नारा है ।



सुख की परिभाषा

एपिक्यूरस के अनुसार वर्तमान क्षणिक ही सुख है सुख की अवस्था शारिरिक एव मानसिक दोनों होती है।

I. सीज्विक के अनुसार सुख एक वांछनीय अनुभव है

II. मॉकेन्झि के अनुसार सुख चित की शान्त अवस्था है ।

III. चार्वाक के अनुसार प्रसन्न और स्वस्थ रहना ही सुख है

उपयूक्त सभी परिभाषओ को देखकर एक बात स्पष्ट होती है की सभी सुखवादी विचारको के अनुसार एक ही मान्यता है और वह है सुख की प्राप्ति मनुष्य जो भी कार्य करता है उसके पीछे केवल सुखप्रप्ति का ही उद्देश्य होता है ।


  • सुखवाद –सुखवाद की प्राप्ति ही प्रत्येक मनुष्य का अन्तिम ध्येय ।

  • सुख प्राप्ति और दुख निवुत्ति के लिए कर्म ।

  • सुख के लिए ही कर्म करता है इसीलिए परिणामवादी ।

  • यदि परिणाम सुखकारक हो तो कृति उचित या योग्य कहलाती है ।

  • यदि परिणाम दुखकारक हो तो कृति अनुचित या अयोग्य कहलाती है ।

  • सुख के लिए सुख


मनोवैज्ञानिक सुखवाद

1. सुख की प्राप्ति तथा दुख की निवुत्ति यही मनोवैज्ञानिक सुखवाद का नारा है । इसके अनुसार प्रकृति ने ही मानव को ऐसा बनाया है की वह सदेव सुख की खोज करता है तथा दुख से दूर भागता है ।

2. जीवन का ध्येय ; मानोवैज्ञानिक सुख के अनुसार सुख ही मनुष्य के इच्छाओ का वास्तविक लक्ष्य है । मानव जो भी कार्य करता है वह सुख पाने के लिए ही करता है ।

3. मिल नामक तत्वज्ञ ने मनोवैज्ञानिक सुखवाद का पुरस्कार किया है । इनके अनुसार एक वस्तु को वांछनीय समझना और उस वस्तु को सुखकारक समझ दोनों बाते एक ही है । मनुष्य जिस वस्तु की इच्छा करता है वह सुखकारक ही होता है । अनजाने मे भी किया गया कर्म सुखकारक होता है ।

4. बेन्थ्म नमक तत्वज्ञ ने भी मनोवैज्ञानिक सुखवाद का ही पुरस्कार कीया है । उनके अनुसार निसर्ग ने ही मनुष्य को सुख तथा दुख के साम्राज्य मे रखा है और मनुष्य का हेतु सदैव सुख की प्राप्ति तथा दुख का अभाव होता है

5. मनोवैज्ञानिक सुखवाद के अनुसार वस्तुए सध्या नहीं होती परंतु सुख साधन मात्र से होती है । हम वस्तु को नहीं बल्कि वस्तु से उत्पन्न होने वाले सुख को चाहते है ।

6. मनोवैज्ञानिक सुखवाद के अनुसर सुख एक मूल प्रवृति है । प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही स्वार्थी होता है । इस लिए उसके मन मे जो विचार आते है वो सुख की प्राप्ति के लिए होते है

7. मनोवैज्ञानिक सुखवाद के अनुसार व्यक्ति इतना स्वार्थी और सुखवादी होता है की दान द्या ,परोपकार ,त्याग बलिदान जैसे कामो मे भी उसे सुख अन्नद मिलता है । सुख मिलेगा इसलिए करते है न की आदर्श की भावना से करता है ।

8. मनोवैज्ञानिक सुखवाद मे सुख का अर्थ शरारीक सुख से संबन्धित है । इनके अनुसार मानव के इच्छा पूर्ति उसके क्षाररिक सुख से ही होती है ।

9. मिल तथा बेन्थ्म ने मनोवैज्ञानिक सुखवाद का समर्थन करते हूऐ अपने सुखवादी विचारो को उपयोगीवादी सुखवाद का सिद्धान्त बना दिया है ।


आलोचना

मनोवैज्ञानिक सुखवाद अमनोवैज्ञानिक है मनोवज्ञानिक सुखवाद का कहना है की मानव स्वभाववीक रूप से सुख की इच्छा करता है इसी सुख की इच्छा से प्ररित होकर कर्म करता है । लकीन आलोचको का ये कहना है की सुख प्रेरक नहीं है परिणाम है जैसे की अगर किसी को भूख लगती है । तो सुख की प्रक्रिया इस प्रकार होती है

1. कर्म की अनुभूति याने भूख लगना ।

2. भोजन की इच्छा।

3. भोजन की प्राप्ति ।

4. सुख की अनुभूति ।

मनोवैज्ञानिक होने के बावजूद भी इनहोने मानसिक प्रक्रिया का विचार ही नहीं किया है । इसलिए मनोवैज्ञानिक सुखवाद अमानो वैज्ञानिक हुआ है ।



मनोवैज्ञानिक सुखवाद मे घोड़े के आगे गाड़ी नामक दोष है ।

कीसी भी कर्म करने के बाद मिलने वाला सुख तथा वह कृति करने से पहले मिलने वाला सुख इसमे फरक है । इन दोनों विचारो मे से पहले मत का स्वीकार कर सकते है क्योकि कृति करने के पश्चयत ही सुख की अपेक्षा होती है । लकीन मनोवैज्ञानिक सुखवाद के अनुसर कृति के पूर्व ही प्राप्त होता है । यह सिधान्त गलत है । क्योंकि मनुष्य इच्छा वस्तु की करता है । सुख की नहीं इस प्रकार के दोष को घोड़े के आगे गाड़ी या अश्व दोष कहते है समाधान के पूर्व जरूरत उत्पन्न होती है ।


मनोवैज्ञानिक सुखवाद से नैतिक सुख की प्राप्ति साम्भव नहीं है । मनोवैज्ञानिक सुखवाद तथ्य पर आधारित है लकीन नैतिक सिद्धांत मूल्यो पर आधारित है । मूल्य हमेशा तथ्यो से पहले आते है ।

सुखवाद मे विरोध –सिज्विक नामक तत्वज्ञ के अनुसार मनोवैज्ञानिक सुखवाद मे सुखवाद का विरोध है । उनका कहना है । की सुख प्राप्त करने की आतुरता जितनी अधिक होगी उसका लक्ष्य उतना ही नीरर्थक

हो जाएगा जितना हम सुख के पीछे भागते है । उतना सुख हमसे दूर भागता है और जब वो प्राप्त होता है । अगर सुख पाना चाहते हो तो सुख को भूल जाओ । यह सुखवादी मत सुखवाद मे विरोध दर्शाता है ।

मनोवैज्ञानिक सुखवाद व्यक्तिगत सिद्धांत है ।

मनोवज्ञानिक सुखवाद से किसी सिद्धांत की सिधता नहीं हो सकती है ।



नैतिक सुखवाद


1. नैतिक सुखवाद एक प्रमुख नैतिक सिद्धांत है ।

2. नैतिक सिद्धांत आदर्शनात्म्क है । क्यों की वह नीतिशास्त्र से संबन्धित है ।

3. नैतिक सुखवाद के अनुसार व्यक्ति का आदर्श यह होता है की वह सुख की ही प्राप्ति करे और वह दुख को दूर करे ।

4. नैतिक सुखवाद के अनुसार सुख सध्या है और इसी को पाने के लिए हम बिभिन्न साधनो का प्रयोग करते है ।

5. नैतिक सुखवाद वह नैतिक सिद्धांत है जिसके अनुसार सुख प्राप्त करना ही मानव का लक्ष्य है सुख ही परमशुभ है।

6. इसके अनुसार व्यक्ति का यह कर्तव्य है की वह उस कार्य को शुभ समझकर करे । जिससे सुख प्राप्त हो और वह कार्य जो दुख उत्पन्न करता है । वह असुभ है ।

7. नैतिक सुखवादी स्पष्ट रूप से कहते है की हमे सुख की इच्छा करते रहना चाहिए । याने यह देखना चाहिए की हमे अधिक से अधिक सुख मिले जिससे की दुख का मिश्रण ण हो ।


नैतिक सुखवाद के दो प्रकार है

1. स्वार्थ सुखवाद

2. परार्थ सुखवाद


1 स्वार्थ सुखवाद

  • स्वार्थ सुखवाद नैतिक सुखवाद का एक प्रकार होने का नैतिक सिद्धांत है ।

  • इसके अनुसार जीवन का परम ध्येय व्यक्ति का निजी सुख प्राप्त करना है ।

  • स्वार्थ सुखवाद का लक्ष्य केवल स्वंय सुख को ही नैतिक दुष्टि से शुभ मानता है ।

  • इसके अनुसार सुखो को परिणाएमक की दुष्टि से देखने चाहिए तथा इसी दुष्टि से अधिकतम सुख को ही स्वीकार करना चाहिए ।

  • स्वार्थ सुखवाद सिद्धांत से अधिकतम सुख का निर्णय सुख की तीव्रता था कालावधि पर आधारित होती है

2 स्वार्थ सुखवाद के दो प्रकार है ।

1. निकुष्ट स्वार्थ सुखवाद

2. अकुष्ट स्वार्थ सुखवाद

1. निकुष्ट स्वार्थ सुखवाद

a) सिरेनाइक्स

b) होब्स

c) चार्वाक



सिरेनाइक्सका सुखवाद निकुष्ट स्वार्थ नैतिक सुखवाद कहलाता है

a) इस सुखवाद के मूल प्रवर्तक एरीस्टिपस है । इनके अनुनायीयो को सिरेनाइक्स कहते है

b) इनके अनुसार अतीत मर चुका है तथा भविष्य अनिशिचत है । अंत वर्तमान ही सब कुछ है । इसलिए वर्तमान सुख को । अंत वर्तमान ही सब कुछ है । इसीलिए वर्तमान सुख को ही जीवन का लक्ष्य मानना चाहिए ।

c) सिरेनाइक्स इंद्रिय सुख को ज्यादा महत्व देते है ।

d) इनके अनुसार सुख मे कोई गुणात्मक भेद नहीं है इनमे परिमाणात्मक भेद है ।

e) इस प्रकार सिरेनाइक्स का सुखवाद शारीरिक तथा भौतिक महत्व देने के कारण क्षणिक सुखवाद कहलाता है ।


आलोचना

सुखवाद मूल रूप से जड़वाद पर आधारित होने के कारण किसी सिद्धांत की स्थापना नहीं कर सकता

क्षणिक सुख को सब कुछ मनाने के कारण इस सुखवाद मे बुद्धि या विवेक की पूरी तरहा से अपेक्ष की गई है

मनोवैज्ञानिक सुखवाद से जुड़ी हुई सभी आलोचनाए यहाँ भी लागू होती है ।

होंब्ज –होब्ज विज्ञान शास्त्र तथा गणित के अभ्यास थे । इसलिए उन्होने गति के तत्व को महत्व दिया है ।

होब्ज ने पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक सुखवाद स्वीकार किया है

होब्ज के अनुसार मनुष्य स्वभावत ही स्वार्थी होने के कारण केवल अपने सुख के बारे मे ही विचार करता है किसी दूसरे की मददा भी स्वार्थी प्रवर्ती से ही करता है । याने अपनी संघर्षमय परिस्थिति मे दूसरे अपने को मदद करे ।इस स्वार्थ से ही व्यक्ति परोपकार है ।


साम्राज्य मे सुखपाने के लिए दो शर्तो को स्वीकार करना चाहिए

a) दूसरों के अधिकारो का पालन करो

b) सभी मिलकर अपने आपको सोभाग्यशील बनाओ

c) इस प्रकार से होब्ज के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति ने स्वया के सुख के बारे मे सोचना चाहिए और उस सुख को पाने के लिए अपने आप को ताकतवर बनाना चाहिए ।


आलोचन

होब्ज का स्वसुखवाद मनोवैज्ञानिक सुखवाद पर आधारित होने के कारण उन पर लागू किए गए सभी दोष यहाँ पर भी है ।

सुखवाद जड़वाद पर आधारित होने के कारण किसी नैतिक सिद्धांत की स्थापना नहीं कर सकता ।

होब्ज ने स्वार्थ सुखवाद का समर्थन करते हुए पार्थ सुखवाद का भी स्पष्टीकारण दिया है । अंत यह विचार अपने आप मे विरोधि हो गया है ।


चार्वाक

चार्वाकदर्शन केवल एक ही भारतीय दर्शन है । जिनहोने सुखवाद का समर्थन किया है ।

इनहोने अपना इस सुखवाद वाक्यो मे कहा की जब तक जीवित रहो सुख पूर्वक जियो ऋण करके भी घी पियो एक बार यह देह नष्ट हो जाए फिर किसने पुर्नजन्म को देख है ।

चार्वाक के अनुसार दुख मिश्रित सुख को महत्व देते है । उनके अनुसार सुख प्राप्त करना ही हमारा कर्तव्य है ।

अन्न को यदि उसमे आने वाली मूसी के कारण छोड़ दिया जाए तो मूर्खता है । तथा काटा लगाने के भय से मछली खाना नहीं छोड़ना चाहिए ।

चार्वाक के सुखवादी सिधान्त पर अनेक तत्वज्ञों मे अवशेप हुई है । लकीन एक तत्वज्ञ होने के नाते अपनी सुखवाद से उन्होने लोगो के सामने जीने का एक सकारात्मक दुष्टि कोण रखा है ।


उत्कूष्ट स्वार्थ सुखवादी


एपीक्यूस्य – एपीक्यूनस निकुष्ट या उकुष्ट दोनों स्वार्थ सुखवाद का आधार अमनोवैज्ञानिक सुखवाद है ।

एपीक्यूनस के अनुसार शारीरिक सुख की अपेक्षा हमको बोद्धिक सुखो को महत्व देना चाहिए ।

एपीक्यूनस के अनुसार तथा चिंता के कारण मनुष्य दुखी होता है । और ये दोनों चिजे धर्म से जुड़ी हुई होती है इसीलिए धर्म तथा ईश्वर का डर सर से निकाल देना चाहिए ।

इनके अनुसार वर्तमान जीवन को आदर्श मानकर जीना चाहिए इस जगत को ईशवर ने ही बनाया है इसलिए स्वर्ग और नर्क देवी , देवताओ से भयभीत नहीं होना चाहिए ।


आलोचना

एपीक्यूनस बोद्धिक सुख को परमसुख मानते है । लकीन इस बुद्धि को उन्होने सुखी जीवन का केवल एक साधन मात्र मना है ।

शांत जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है यह कहकर जीवन को निस्क्रिया बना दिया है व्यक्तिगत सुख हो श्रेष्ठ मानने के कारण स्वार्थमय सुख कभी ऐश्वर्य सुख नहीं हो सकता है ।

परर्थ सुखवाद

परर्थ सुखवाद नैतिक सुखवाद का वह प्रकर है जिसके अनुसार दूसरों का सुख था दूसरों का सुख ही हमारा नैतिक सुख है

परर्थ सुखवाद के अनुसार केवाल दूसरों का सुख ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए ।

परर्थ सुखवाद के अनुसार केवल दूसरों का सुख चाहे वह केसा भी हो नैतिक शुभ है ।

यह एक अदर्शत्मक सिद्धांत है ।

परर्थ सुखवाद के अनुसार हमे यह ध्यान मे रखना चाहिए की कम से कम व्यक्तियों को कम से कम दुख मिले ।

पारर्थ /उपयुकतवादी ;सुखवाद

उपयुकतवादी ;सुखवाद के अनुसार व्ही कर्म नैतिक दुष्टि शुभ है की मानव के लिए उपयोगी है ।

उपयुकतवादी ;सुखवाद पारर्थ सुखवाद की अपेकषा अधिक व्यापक है ।

उपयुकतवादी ;सुखवाद के अनुसार अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख ही नैतिकता का मापदंड होने चाहिए ।

उपयुकतवादी ;सुखवाद का आधार मनोवैज्ञानिक सुखवाद है ।

बेन्थम और मिल दोनों इसके समर्थक है ।

बेन्थम के अनुसार हम प्रत्येक व्यक्ति की सुख तो नहीं बना सकता लकीन हमारा प्रयास यही रहना चाहिए की हम अधिक से अधिक व्यक्तियो को अधिक से अधिक मात्रा मे सुख दे सके ।


















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