top of page
www.lawtool.net

भारतीय संविधान के अधिकार - पत्र की विशेषताएँ


प्रश्न - भारतीय संविधान के अधिकार - पत्र की विशेषताएँ बताइए ।


उत्तर : यद्यपि मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में भारतीय संविधान द्वारा संयु और अन्य आधुनिक संविधानों से प्रेरणा ली गई है , लेकिन भारतीय संविधान का अधिकार पत्र अधिकारों और उनसे सम्बन्धित व्यवस्था के सम्बन्ध में वैसा ही नहीं है , जैसा कि अन्य संविधानों के अधिकार - पत्र हैं । भारतीय संविधान के अधिकार - पत्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ


१ ) अत्यधिक विस्तृत : भारतीय संविधान का मौलिक अधिकार - पत्र विश्व के अन्य किसी भी संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों से अधिक विस्तृत तथा पेचीदा है । एक सम्पूरक अध्याय के २३ अनुच्छेदों में इसका वर्णन किया गया है । अध्याय के विस्तृत होने का कारण यह है कि छ . अधिकारों के सविस्तर विवरण के साथ - साथ उन पर आरोपित प्रतिबन्धों का उल्लेख किया गया है ।


२ ) निषेधात्मक एवं सकारात्मक अधिकार : भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकों के अधिकारों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है - निषेधात्मक और सकारात्मक अधिकार । मौलिक अधिकारों के कतिपय उपलब्ध निषेधाज्ञाओं के समान हैं । वे राज्य शक्ति पर मर्यादाओं को आरोपित करते हैं । किसी व्यक्ति को अधिकार प्रदान नहीं करते । उदाहरणस्वरूप अनुच्छेद ८ द्वारा राज्य को सेना तथा शिक्षा सम्बन्धी उपाधि के सिवाय अन्य कोई उपाधि प्रदान करने से मनाही हैं , अनुच्छेद १७ सामाजिक छूआछूत को दूर करता है । व्यक्ति के दृष्टिकोण से ऐसे अधिकारों को निषेधात्मक अधिकार कहा जा सकता है । वे उपबन्ध जो किसी व्यक्ति को विशिष्ट अधिकार प्रदान करते हैं , उन्हें सकारात्मक अधिकार कहा जाता है । स्वतन्त्रता का अधिकार , सम्पत्ति का अधिकार , धार्मिक , सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार इस वर्ग में आते हैं । इस अन्तर के होते हुए भी दोनों के अधिकारों में स्पष्ट विभाजन - रेखा नहीं खींची जा सकती है । फिर भी दोनों में महत्त्वपूर्ण भेद यह है कि निषेधात्मक अधिकार निरपेक्ष है , जबकि सकारात्मक अधिकार सीमित और मर्यादित हैं ।


३ ) विभिन्न पदाधिकारियों पर मर्यादा के रूप में : मौलिक अधिकार केवल केन्द्रीय सरकार पर नहीं , बल्कि उन सभी अधिकारियों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं जिन्हें विधि निर्माण करने का स्वेच्छाधिकार प्राप्त हैं । इस प्रकार केन्द्रीय सरकार , राज्य सरकार , जिला बोर्ड नगरपालिकाएं . ताल्लुका बोर्ड , ग्राम पंचायत आदि उन्हें मानने के लिए बाध्य हैं । मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में इन सभी अधिकारियों से नागरिकों को समान व्यवहार मिलेगा । इसके विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका में अधिकार - पत्र का उद्देश्य केवल राष्ट्रीय सरकार पर मर्यादाएं आरोपित करना था ।


४ ) अधिकार निर्वाध नहीं : अधिकार मर्यादाहीन नहीं हो सकते । भारतीय संविधान द्वारा ही मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगा दिये गए हैं ।


५ ) नागरिकों एवं विदेशियों में भेद : जहाँ तक मौलिक अधिकारों के उपभोग का प्रश्न है , भारतीय संविधान नागरिकों तथा विदेशियों में विभेद करता है । कुछ अधिकार केवल देश के नागरिकों तक ही सीमित है । लेकिन कुछ अधिकार ऐसे हैं , जो नागरिकों तथा विदेशियों के ऊपर समान रूप से प्रभावी हैं ।


६ ) मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक व्यवस्था : भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था की गयी है । अनुच्छेद ३२ के अनुसार नागरिकों को यह अधिकार दिया गया है कि अधिकारों के संरक्षण के लिए वे सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकते हैं । किसी नागरिक द्वारा अधिकारों के प्रवर्तन की मांग पर न्यायालय समुचित आदेश या लेख , जिनके अन्तर्गत बन्दी - प्रत्यक्षीकरण , परमादेश , प्रतिषेध , अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण लेख भी आते हैं , निकाल सकता है । अनुच्छेद २२६ उच्च न्यायालयों को भी आदेश लेख जारी कर मौलिक अधिकारों की रक्षा का अधिकार देता है ।


७ ) प्राकृतिक अधिकारों का अभाव : भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य अधिकारों का दावा नागरिक नहीं कर सकते हैं । तात्पर्य यह है कि कोई भी नागरिक सिर्फ संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए ही न्यायालय की शरण ले सकता है और न्यायालय विधान पालिका द्वारा पारित किसी अधिनियम को असंवैधानिक करार दे सकता है । यदि यह संविधान की व्यवस्था के अनुकूल नहीं है ।

८ ) मौलिक अधिकारों का निलम्बन : भारतीय संविधान के निर्माता इस तथ्य से भली भाँति अवगत थे कि आपातकालीन स्थिति में मौलिक अधिकारों को निलम्बित करने की आवश्यकता पड़ सकती है । इन उद्देश्यों से संविधान में बोलने , घूमने , संगठन बनाने आदि अधिकारों को आपातकाल में निलम्बित करने की व्यवस्था की गयी हैं । यहाँ तक कि संविधान राष्ट्रपति को आपातकाल स्थिति में आवश्यकता पड़ने पर संवैधानिक उपचारों के अधिकारों को निलम्बित करने की भी शक्ति प्रदान करता है ।


९ ) मौलिक अधिकारों को सीमित करना : कुछ परिस्थितियों में मौलिक अधिकारों को सीमित करने की व्याख्या संविधान में की गई है । अनुच्छेद ३३ द्वारा संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह सशस्त्र सेना में अनुशासन बनाये रखने के लिए तथा सैनिक कर्तव्यों की भली - भाँति परिपालन की दृष्टि से भारत के सशस्त्र बल से सम्बद्ध मौलिक अधिकारों में आवश्यक संशोधन कर सकती है । यहाँ विशेष रूपसे उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद ३३ के उपबन्ध न केवल देश के सशस्त्र बलों पर प्रभावी होंगे , अपितु सार्वजनिक शान्ति स्थापित करने वाले सामान्य पुलिस दल के ऊपर भी प्रभावी होंगे ।


१० ) मौलिक अधिकारों का संवैधानिक संशोधन : संघात्मक व्यवस्था में साधारणतः केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के सहयोग से संविधान में संशोधन लाया जाता है । भारत में भी संविधान के उन उपबन्धों को इस पद्धति में संशोधन लाने की व्यवस्था की गई है जो संघीय व्यवस्था से सम्बन्धित है । लेकिन मौलिक अधिकार के अध्याय में संशोधन लाने के लिए इस विधि को अपनाया गया है । इसमें संशोधन लाने के लिये ऐसी पद्धति को अपनाया गया है जिसमें राज्यों का कोई हाथ नहीं हैं । संसद के दोनों सदनों में से प्रत्येक में समस्त सदस्य संख्या से पारित होने पर मौलिक अधिकार सम्बन्धी उपबंधों में परिवर्तन लाया जा सकता हैं |



Comentários


LEGALLAWTOOL-.png
67oooo_edited_edited.png
bottom of page