top of page
www.lawtool.net

जॉन स्टुअर्ट मिल

अपडेट करने की तारीख: 31 जुल॰ 2021

जॉन स्टुअर्ट मिल



मिल का गुणात्मक उपयोगितावादी या उत्कूष्ट उपयोगितावादी सिधान्त की स्थापना इंग्लैंड के प्रसिद्ध दार्शनिक जॉन स्टुअर्ट मिल ने कीया है । मिल का उपयोगितावाद इस प्रकार से है ।


1. सुखवादमिल ने सुखवाद का पुरस्कार किया है इनके अनुसार मनुष्य के जीवन का अंतिम ध्येय सुख प्राप्ति है । प्रत्येक व्यक्ति जोभी कार्य करता है उसके पीछे केवल सुख प्राप्ति का ही उद्देश्य रहता है ।


2. मणिवैज्ञानिक सुखवाद मिल ने अपने सुखवाद का आधार मनोवैज्ञानिक माना है । उनके अनुसार मानव स्वभाव से ही स्वार्थी है सदैव से उसका प्रयास सुख की प्राप्ति है और दुख की निवूत्ति है । इस तथ्य के आधार पर मिल इस निष्कर्ष पर पाहुचते है की किसी वस्तु की ईच्छा करना और उस वस्तु से दूर भागना और उसे दुखदायी समझना अपूथक है ।


3. नैतिक सुखवाद एक तरफ मिल मनोवैज्ञानिक सुखवाद को अपने दर्शन का आधार मानते है । वह दूसरी तरफ वे नैतिक सुखवाद के समर्थक भी है । उनका कहना है जो भी मानव स्वभाव से ही सुख पाने की इच्छा करता है इसीलिए उसका यह नैतिक कर्तव्य होता है की वह सुख प्राप्त करने की ईच्छा करता रहे । इस संदर्भ मे मिल निंम्न तर्क भी देते है । प्रत्येक व्यक्ति जहा तक अपने सुख को सुलभ समझता है वहा तक वह उसकी ईच्छा स्वया अपने लिए करता है । अंत प्रत्येक मनुष्य का सुख श्रेय है इसलिए सामान्य सुख सभी व्यक्तियों का श्रेय है ।


4. नैतिक सुखवाद को सिद्धा करने का प्रमाण

i. मिल इस बात की हम सवैव सुख की ईच्छा करते है निम्न प्रमाण देते है किसी वस्तु के दिखाई देने का एकमात्र प्रमाण यह है की लोग सचमुच उसे देखते है किसी वस्तु के श्रवणिय होने का एकमात्र प्रमाण है की लोग सचमुच उसे सुनते है । इस तरह किसी वस्तु के वांछनीय होने का एकमात्र प्रमाण यह है की लोग सुचमुच उसकी ईच्छा करते है । क्यो की लोग सचमुच सुख की ईच्छा करते है। अंत इससे सिद्धा होता है की सुख वांछनीय है ।


5. स्वार्थ सुखवाद मिल के सुखवाद का आधार मनोवैज्ञानिक सुखवाद होने के कारण उन्होने स्वार्थ सुखवाद का भी पुरस्कार किया है ।

6. परार्थ सुखवादबेन्थ्म की तरह मी भी स्वार्थ से परार्थ की तरफ बढ़ते है । और स्वीकार करते है की कुछ अंकुश या द्बावा के कारण मनुष्य स्वार्थी होता हुए भी परार्थी बन जाते है । इस अंकुश को मिल दो हिस्सो मे बाटते है ।


1)बाहरी अंकुश

2)आंतरिक अंकुश

याने बेन्थ्म द्वार बताए गए बाहरी प्रेरक मे मिल ने आंतरिक प्रेरक या अंकुश का भी समावेश किया है । उसके अनुसार अनतरिक अंकुश याने नैतिक भावनाओ के कारण उत्पन्न होने वाला सुख या दुख है । यह हमने सत विवेक बुद्धि का विचार करना चाहिए ।

7. उपयोगिता वादीमिल के अनुसार अधिकतम लोगो का अधिकतम सुख ही नैतिकता का मापदंड है प्रत्येक कार्य तभी उचित या शुभ होता है ,यदि उससे सुखमय बुद्धि हो इसके विपरीत वह कार्य जो सुख मे वृद्धि करे वह अशुभ होता है मिल के अनुसार सुख और दुख का स्वरूप भावनात्मक ही नहीं बल्कि निषेधात्मक भी है । इस प्रकार हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए की ज्यादा से ज्यादा लोगो को ज्यादा से ज्यादा सुख मिले तथा कम से कम व्यक्तियों को दुख मिले ।


8. गुणात्मक उपयोगितावादबेन्थ्म के विरूद्ध मिल ने सुखो मे गुणात्मक भेद को स्वीकार किया है । मिल के अनुसार सुख मे परीणामात्मक अंतर तो है ही साथ ही उसमे गुणात्मक भेद भी पाया जाता है । मिल ने सुख के दो प्रकार बताए है ।


1)इंद्रिय सुख

2)बोद्धिक सुख


बोद्धिक सुख इंद्रियों के सुखो की अपेक्षा श्रेष्ठ है इस मत को स्पष्ट करने के लिए मिल ने एक प्रसिद्ध बयान दिया है वे कहते है की संतुष्ट सूअर होने की अपेक्षा असंतुष्ट साक्रेटीस होना ज्यादा बेहतर है । इसका अर्थ यह है की परिणामो से ज्यादा महत्वपूर्ण गुणात्मक श्रेष्ठता है । इस बयान का अर्थ यह है की मूर्ख रहकर संतुष्ट रहने की अपेक्षा बुद्धिमान रहकर असंतुष्ट रहना श्रेष्ठ है । अंत बुद्धि के अनुसार कार्य करना ईच्छा पूर्ति से श्रेष्ठ है । इस प्रकार मिल गौरव बोध के सिधान्त को सहन करने के कारण मिल का सुखवाद गुणात्मक उपयोगितावाद कहलाता है ।

9. गुणो का मापदंड गुणात्मक भेद स्पष्ट करते हुए मिल गुणो को मापने के लिए योग्य न्यायाधीशो के निर्णय की ओर संकेत करते है । योग्य न्यायाधीश शारीरिक और इंद्रिय सुखो की अपेक्षा सदा ही बोद्धिक सुख को अधिक महत्व देता है । इसीलिए मिल के अनुसार योग्य न्यायाधीश का निर्णय परमनिर्णय मानना चाहिए ।


10. गोरव का बोध योग्य न्यायाधीश आखिरी श्रेष्ठ सुखो को ही महत्व देता है । यह प्रश्न यहा निर्मित होता है । मिल का कहना है की हम पशुओ से अलग करती है । गोरवता का बोध ही मनुष्य का चिन्ह है । इसीलिए मानवीय गोरव के अनुरूप कर्म ही वांछनीय है । और इसिकरणा मूर्ख लकीन संतुष्ट मनुष्य होने से बढ़िया बुद्धिमान और असंतुष्ट मनुष्य होना ही हम पसंद करते है ।


इस प्रकार मिल ने शुरू मे मनोवैज्ञानिक सुखवाद को आधार मानकर बेन्थ्म के शारीरिक सुखवाद का परित्याग करके पुरस्कृत गुणात्मक उपयोगितावादी सुखवाद की स्थापना की है ।


 

आलोचन


  1. सुखवाद के दोषमिल ने सुखवाद का पुरस्कार किया है जिस सुखवाद का आधार जड़वाद है इसके कारण सुखवाद किसी भी नैतिक सिधान्त की स्थापना नहीं कर सकता है ।

  2. मनोवैज्ञानिक सुखवामिल ने मनोवैग्यनिक सुखवाद ,उपयोगितावाद के आधार के स्वरूप मे स्वीकार किया है इसीलिए मनोवैज्ञानिक सुखवाद के सभी आपेक्ष मिल के सुखवाद को भी लागू होता है ।

  3. उपयोगितावादीउपयोगितावाद का आधार मनोवैज्ञानिक सुखवाद नहीं है हो सकता है क्योकि मनोवैज्ञानिक सुखवाद स्वार्थ सुखवाद पर आधारित है । तथा उपयोगितावाद अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम सुख याने परार्थवाद पर आधारित है ।

  4. नैतिक सुखवादनैतिक सुखवाद का समर्थन करते हुए मिल ने जो तर्क दीये है उसमे वाक्यालंकार का दोष है । मिल कहते है की जिसकी ईच्छा की जा सके वह वांछनीय है । लेकिन यह अर्थ गलत है । वांछनीय शब्द का अर्थ जिसकी ईच्छा की जानी चाहिए होती है । वांछनीय कोई वस्तु नहीं है । जिसकी हम ईच्छा करे । वांछनीय शब्द का तात्पर्य जिस किसी की ईच्छा हम करते है वह ईच्छा करने लायक होनी चाहिए । मिल ने दिखाई देना जो सुनने योग्य है उसी प्रकार ईच्छा करने योग्य इस शब्द के प्रयोग को जोड़ दिया है जो गलत है ।

  5. परार्थवादी – मिल के मनोवैज्ञानिक सुखवाद का समर्थन करते हुए परार्थ सुखवाद का भी प्रतिपादन किया है अगर मनुष्य स्वभावत ही स्वार्थी होता है तो वह दूसरों के सुख के बारे मे कैसे सोचे सकता है । कोई भी स्वार्थी सुखवादी परार्थी नहीं हो सकता मार्टिन न्यू नामक तत्वज्ञ कहते है की प्रत्येक अपने लिए ,प्रत्येक सबके लिए ऐसा कोई मार्ग नहीं है स्वार्थ से परार्थ के तरफ बढ़ते हुए जो तर्क मिल देते है उसमे एकइका तथा समूधभाष , यह दो दोष आ गए है मिल कहते है की प्रत्येक को अपना सुख ईष्ट है इसीलिए सबको अपना सुख ईष्ट है इस विधान मे समुधाभाष हुआ है कोई भी पद अगर एकबार विशेष अर्थ मे प्रयुक्त हुआ है तो वही पद इसी विधान मे समूहवायी रूप मे प्रयुक्त हो सकता है । इसी तर्क का दूसरा भाग इस प्रकार है ---सभी को सभी का सुख ईष्ट है इसीलिए प्रत्येक को सभी का सुख ईष्ट है । इस तर्क के एकईका भाष हुआ है याने विधान मे पद को पहले समूहवादी अर्थ मे उपयोग करके उसी के अनुसार बाद मे एकईकावादी अर्थ लाया गया है ।

  6. सुखो को मापनामिल ने सुखो का मापन गुणात्मक दुष्टि से हो सकता है । इसका समर्थन किया है लकीन सुख कोई भैतिक वस्तु नहीं है जिसको जोड़ने से सुख बढ़ जाएगा । सुख पूरी तरह से मानसिक होने के कारण इसका मापन होना अवश्यक है ।

  7. मानव का गोरव बोध मिल के अनुसार सुख उपभोग के लिए भी मनुष्य पशु नवहीं बनाना चाहेगा इसी का स्पष्टीकरण मे यह स्पष्ट होता है । की सुख की भावना की अपेक्षा बुद्धि ज्यादा श्रेष्ठ है और यदि बुद्धि के अनुसार कार्य करना ही श्रेष्ठ है । इसे मिल स्वीकार करते है तो उन्हे सुखवाद छोड़ना पड़ेगा ।

  8. योग्या न्यायधीश मिल के अनुसार योग्य न्यायधीश वे है जो दोनों प्रकार के सुखो का अनुभव कर चुके है । ऐसे न्यायधीश कोई भी निर्णय भावना से नहीं लेगा बल्कि वह निर्णय बुद्धि से ही लेगा यदि वो भावना से निर्णय लेता है तो उनका निर्णय भी व्यक्तिगत ही होगा

  9. सुखवादी परार्थ वादी नहीं हो सकता है एक बार मनोवैज्ञानिक सुखवाद का आधार स्वीकार करने के बाद सुखवादी ,परार्थ वादी नहीं हो सकता स्वार्थ सुखवाद से परार्थ के तरफ कोई मार्ग नहीं है क्योंकि यदि मै जन्म से ही स्वार्थी हूँ ओर स्वभाववश अपना ही सुख चाहता हूँ तो कोई कारण नहीं है की मै दूसरों पर उपकार करूँ ।

  10. सहानभूति और परोपकार एक बार स्वार्थ सुखवाद का समर्थन करने के बाद परोपकार समता शानुभूति यह बाते मायने नहीं रखती । ज्यादा से ज्यादा लोगो का ज्यादा से ज्यादा सुख प्राप्त हो इस तत्व मे संख्या पर नीति का निर्णय आधारित किया गया है जो की पूरी तरह से गलत है । लोकमान्य तिलक कहते है की लाखो दर्जनो को सुखी करने से अच्छा केवल एक व्यक्ति या सज्जन को संतोष मिले वही सही मायने मे स्वीकुत होगा । याने नीतिमत्ता का संबंध संख्या से नहीं जोड़ा जा सकता है ।





Comments


LEGALLAWTOOL-.png
67oooo_edited_edited.png
bottom of page