बेन्थ्म का निकुष्ट उपयोगिता वादी नैतिक सुखवाद
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- 20 अप्रैल 2021
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अपडेट करने की तारीख: 20 मई
बेन्थ्म का निकुष्ट उपयोगिता वादी नैतिक सुखवाद या बेन्थ्म का परिणाम का परिमाण त्मक उपयोगितावादी सुखवाद ।
बेन्थम का निकृष्ट उपयोगितावादी नैतिक सुखवाद (Jeremy Bentham's Quantitative Utilitarian Hedonism) एक ऐसा सिद्धांत है जो यह मानता है कि नैतिकता का मूल उद्देश्य सुख (Pleasure) को बढ़ाना और दुःख (Pain) को कम करना है, और इस सुख-दुःख का मूल्यांकन मात्रात्मक (Quantitative) रूप से किया जा सकता है।
मुख्य विशेषताएँ:
परिणामवादी दृष्टिकोण (Consequentialism):बेन्थम का सिद्धांत यह मानता है कि किसी भी कार्य की नैतिकता उसके परिणामों से तय होती है। यदि किसी कार्य से अधिक लोगों को अधिक सुख मिलता है, तो वह नैतिक रूप से उचित है।
सुख की मात्रात्मक गणना (Quantitative Measurement of Pleasure):बेन्थम ने सुख को मात्रात्मक रूप से मापने का प्रयास किया और इसके लिए "हेडोनिक कैलकुलस (Hedonic Calculus)" नामक पद्धति प्रस्तावित की। इसके अंतर्गत निम्नलिखित तत्वों पर विचार किया जाता है:
Intesity (तीव्रता): सुख या दुःख कितना तीव्र है?
Duration (अवधि): वह कितनी देर तक रहेगा?
Certainty (निश्चितता): उसके घटित होने की कितनी संभावना है?
Propinquity (निकटता): वह कब घटित होगा – निकट भविष्य में या दूर?
Fecundity (उत्पादकता): वह आगे और कितना सुख/दुःख उत्पन्न करेगा?
Purity (शुद्धता): क्या उसमें दुःख की कोई मिलावट है?
Extent (व्यापकता): कितने लोगों को प्रभावित करेगा?
सभी सुख समान माने जाते हैं:बेन्थम के अनुसार, सभी प्रकार के सुख मूल रूप से समान होते हैं — चाहे वह शारीरिक सुख हो या बौद्धिक। उनके अनुसार, "एक साधारण व्यक्ति का सुख उतना ही महत्वपूर्ण है जितना एक ज्ञानी का।"
आलोचना:
जॉन स्टुअर्ट मिल (J.S. Mill) ने बेन्थम की मात्रात्मक दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए गुणात्मक सुखवाद (Qualitative Utilitarianism) का समर्थन किया, जिसमें कुछ सुखों को अन्य की तुलना में श्रेष्ठ माना गया (जैसे बौद्धिक सुख > शारीरिक सुख)।
सुखवाद – बेन्थ्म इंग्लैंड के प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक और समाज सुधारक थे । इनके अनुसार मानव स्वाभवत ; सुख चाहता है । अंत वह सुख के लिए कोई भी कार्य करता है । प्रत्येक मनुष्य का अंतिम लक्ष्य केवल सुख प्राप्ति होता है ।
मनोवैज्ञानिक सुखवाद - बेन्थ्म मनोवैज्ञानिक सुखवाद के समर्थक थे । इनके अनुसार निसर्ग ने ही मनुष्य को सुख तथा दुख के साम्राज्य मे रखा है । सुख की प्राप्ति और दुख की निवूत्ति यही मनुष्य के जीवन का सही नारा है । इसीलिए मनुष्य सदैव सुख की खोज करता है तथा दुख से दूर भागता है ।
नैतिक सुखवाद - बेन्थ्म ने अपने सिधान्त मनोवैज्ञानिक सुखवाद तथा नैतिक सुखवाद मे समन्वय स्थापित करने की चेष्टा की है वह लिखते है की प्रकृति ने मनुष्य को सुख और दुख नामक दो सर्वाशक्तिमान शासको के अधीन रख दिया है । हमे क्या करना चाहिए ?यह हमरे लिए महत्वपूर्ण है ।
नैतिक स्वार्थ सुखवाद - बेन्थ्म मनोवैज्ञानिक सुखवाद का समर्थन करते है और इसके अनुसार मनुष्य स्वभावत ; स्वार्थी होता है । अंत सुख प्राप्ति ही मानुष्य का पहला कर्तव्य होना सी चाहिए । यदि वह वस्तु सुख उत्पन्न कर सकता है वह शुभ है अन्यथा अशुभ है ।
परर्थ सुखवाद - बेन्थ्म मनोवैज्ञानिक सुखवाद का पुरुस्कार करते हुए बेन्थ्म स्वार्थ सुखवाद का ही समर्थन करते है । उनका कहना है की यह स्वप्न भी नहीं देखना चाहिए की मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के बिना अपनी उंगली भी नहीं हिलाता । लेकिन यह कहते हुए बेन्थ्म पारर्थ की तरफ बढते हुए यह भी बताते है की मानुष्य को व्यक्तिगत सुख को ही नहीं बल्कि दूसरों के सुख को भी जीवन का लक्ष्य मानना चाहिए । दूसरों को सुखी बनाकर ही व्यक्ति को सच्चा सुख मिलता है ।
स्थूल /निकुष्ट उपयुक्तावादी सुखवाद
पार्थवाद का समर्थन करते हुए बेन्थ्म उपयोगितावाद की तरफ बढ़ते है । अधिकतम लोगो का अधिकतम सुख ही नैतिकता का मापदंड होना चाहिए इस मत को स्वीकार करते हुए बेन्थ्म कहते है की उपयोगितावाद की सिद्धांता से अभिप्राय यह है की प्रत्येक आचरण को यह सिधान्त करता है जिससे प्रस्न्नता और सुख को बढ़ाया जा सके । त्ता एसे आचरण को अस्वीकार करना चाहिए जिससे दुख या प्रसन्नता घटती हो या प्रसन्नता कम होती हो इस प्रकार का आचरण मनुष्य को नहीं करना चाहिए ।
सुख का मापदण्ड - बेन्थ्म के उपयोगितावाद के मत का आध्ययन करने से एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है की अधिकतम निर्णय कैसे करे । इसके उत्तर मे बेन्थ्म का कहना है की सुखो के परिणाम को मापा जा सकता है । उन्होने सुख तथा दुख से भेद बतलाए है । और सुखो के परिणाम को मापने का तरीका बताया है । इसे ही सुख का मापदंड कहते है ।
बेन्थ्म के अनुसार सुखो को मापने के सात आयाम है । वे इस प्रकार है ।
सुखो के आयाम
1. तीव्रता - एक सुख दूसरे सुख की अपेक्षा अधिक तीव्र हो सकता है ।
उदा =खेलने का सुख सोने के सुख की अपेक्षा अधिक तीव्र होता है । अंत खेलने का सुख नैतिक दुष्टि से अधिक शुभ है ।
2. अवधि - जो सुख अधिक समय तक स्थायी रहे वह नैतिक दुष्टि से अधिक शुभ रहेगा । यहा सोने का सुख खेलने के सुख से स्थायी है ।
3. निकटता - एक सुख दूसरे सुख की अपेक्षा अधिक निकटता से प्रप्ता होता है । यहा पर सोने का सुख खेलने के सुख की अपेक्षा निकट है इसी लिए खेलने का सुख की अपेक्षा सोने का सुख अधिक शुभ है ।
4. दुष्टियता - एक सुख दूसरे सुख की अपेक्षा अधिक निशिचित एव नि-निश्देहात्मक होता है ।
उदा –सोने के सुख मे खेलने के सुख की अपेक्षा अधिक निशिचिता पाई जाती है ।
5. उत्पादकता - जो सुख अन्य सुख को भी उत्पन्न करता है नैतिक दुष्टि से अधिक शुभ है । सोने के सुख की अपेक्षा खेलने का सुख अधिक शुभ है ।
6. स्वच्छता - कुछ सुख जो के दुखो से मुक्त होते है उन्हे स्वच्छ सुख कहते है । और ऐसा सुख शुभ है । यहां सोने का सुख खेलने के सुख की अपेक्षा स्वच्छ रहेगा ।
7. प्रशाद्न्ता - कुछ सुख ऐसे होते है जो ज्यादा लोगो को प्रभावित करते है । यहाँ पर खेलने का सुख सोने के सुख से ज्यादा शुभ है ।
बेन्थ्म का परिणमात्मक सुखवाद - सुखो के परिणाम को मापने के सिधान्त को प्रस्तुत कर बेन्थ्म यह स्वीकार करते है । की सुखो मे परिमाणत्मक भेद है । , गुणात्मक भेद नहीं है । उनके अनुसार गुणो की दुष्टि से सभी सुख एक समान होते है , इसीलिए परिणामो को देखना आवश्यक है । यह विचार बेन्थ्म निम्न यूक्ती द्वारा व्यक्त करते है । सुख का परिणाम समान होने पर भी पुस्पिन का खेल भी उतना ही अच्छा है जितना कविता पाठ इसका तात्पर्य यह है की कारण की दुष्टि से क्रीडा और कविता मे कोई अंतर नहीं है । यानि दो कृतियो द्वारा उत्पन्न होने वाले सुख का परिणाम अगर समान हो तो उन दोनों कृतियों की नैतिकता एक समान होती है । इस प्रकार से बेन्थ्म ने परिणाम को अपने सुखवाद मे महत्व दिया है ।
नैतिक अंकुश - परिणामात्मक सुखवाद स्पष्ट करते हुऐ बेन्थ्म नैतिक अंकुश का समर्थन करते है एक ओर बेन्थ्म मनुष्य को जन्मजात स्वार्थी मानते है । तथा दूसरी ओर मनुष्य को परार्थी भी कहते है । स्वार्थी होते हुए मनुष्य परार्थी कैसे हो सकता है । यह प्रश्न यहा उपस्थित होता है । इसका उत्तर देते हुए बेन्थ्म नैतिक अंकुश के सिधान्त की स्थापना करते है । यह अंकुश चार प्रकार के है ।
भैतिक अंकुश
राजनैतिक अंकुश
सामाजिक अंकुश
धार्मिक अंकुश
A. भौतिक अंकुश - भौतिक अंकुश या प्रकृतिक अंकुश इसका अर्थ है । की प्रकृति द्वार लगाया गया अंकुश इसके उलंघन से शारीरिक कष्ट होता है । प्रकृति मनुष्य को एक सीमा तक भोगने की शक्ति देता है । उससे ज्यादा भोगने लगे तो शारीरिक कष्ट होता है । इस शारीरिक कष्ट के भय से वैसे ही कष्ट होता है जैसे की ज्यादा भोजन से शारीरिक कष्ट होता है। इस अवस्था मे मनुष्य दूसरे को भोजन देता है और इस प्रकार से मनुष्य परर्थी बनता है ।
B. राजनैतिक अंकुश –हर व्यक्ति पर कुछ राजनैतिक नियमो से बंधा रहता है । जिसके उलंघन से उसे दण्ड मिलता है । राज्य के दण्ड के भाय से व्यक्ति परार्थी बन जाता है ।
C. सामाजिक अंकुश –सामाजिक अंकुश समाज के वे नियम है जिनको भंग करने से समाज मे बदनामी होती है । इनके विपरीत अच्छा काम करने पर समाज मे प्रतिष्ठा मिलती है अंत समाज के भय से व्यक्ति स्वार्थी होते हुऐ भी परार्थी बन जाता है ।
D. धार्मिक अंकुश –इनमे धर्मग्रंथो मे दिये गए नियम आते है । व्यक्ति इन नियमो पर विश्वास करता है । ईश्वर के द्वारा प्राप्त पाप या पुण्य के कारण याने धार्मिक दबाव के कारण व्यक्ति परार्थी बन जाता है ।
इस प्रकार बेन्थ्म ने आपने सुखवाद के शुरूआता मनोवैज्ञानिक सुखवाद से करते हुए परिणात्मक उपयोगितावाद को समर्थन किया याने स्वार्थ सुखवाद से परार्थ सुखवाद के तरफ बढ़ते हुए अपना सुखवाद स्पष्ट किया ।
आलोचना
1. सुखवाद –बेन्थ्म ने सुखवाद का पुरस्कार किया है और सुखवाद जड़वाद पर आधारित होने के कारण एक कमजोर सिधान्त बन गया है । जिसके कारण सार्वभोमिक सिद्धांत की स्थापना नहीं हो सकती है ।
2. मनोवैज्ञानिक सुखवाद ---बेन्थ्म का सुखवाद आधार मनोवैज्ञानिक सुखवाद है अंत मनोवैज्ञानिक सुखवाद मे जो दोष है वे सभी बेन्थ्म के इस सिद्धांत मे भी विदयमान है ।
3. नैतिक सुखवाद –बेन्थ्म मे मनोवैज्ञानिक सुखवाद को आधार मानकर नैतिक सुखवाद का पुरस्कार किया है लेकिन क्या है से क्या करना चाहिए ?यह हम नहीं बता सकते क्यो की नैतिकता पहले आती है याने की मूल्यो का विचार पहले करके तथ्यो के बारे मे सोचना चाहिए ।
4. स्वार्थ से पारार्थ की तरफ कोई मार्ग नहीं है । स्वार्थ ओर पारर्थ नितांत विरोधी तत्व है । उसमे स्मन्वय कदापि स्थापित किया जा सकता है ।
5. अधिकतम सुख का निर्माण असंभव है । अधिकतम सुख कीस प्रकार से निशिचय करे ? इसका निर्णय असंभव है क्यों की सुख आत्मा निष्ठा होता है कोई एक रोटी से सुखी होता है तो कोई चार रोटियो से
6. नैतिक अंकुश को नैतिकता कहना अनुचित है । कोई भी कार्य बाहरी दबाव से किया जाये तो वह नैतिक नही हो सकता और नैतिक अंकुश बाहरी दबावो के कारण किये गए नैतिकता का पालन है ।
7. सुख का मापदंड अव्यवहरिक है । सुख आत्मनिष्ठा होता है । साथ ही साथ देश और काला के अनुकूल परिवर्तनशील भी होत है । एक ही कर्म एक परिस्थिति मे दुख देता है इसलिए इसका कोई मूल्यांकन नहीं है ।
8. व्यापकता का आयाम उपयुक्त नहीं है । बेन्थ्म ने परिगणमाँ मे व्यापक को स्थान दे परर्थवादी बनने की चेष्ठा की है । लेकिन इस मापदंड का बलिदान देना पड़ता है ।
9. सुख को भौतिक वस्तुओ की तरफ मापा नहीं जा सकता । सुख एक मानसिक तत्व होने के कारण किसे ठोस भौतिक वस्तु की तरह उसे मापा नहीं जा सकता है ।
10. गुणात्मक भेद की कमी --बेन्थ्म ने सुखो मे परिणाम को ज्यादा महत्व दिया है और गुणात्मक भेद को अस्वीकार किया है उनके तत्वज्ञान ये सबसे बड़ी गलती है । इसी के कारण उनका सुखवाद निकुष्ट सुखवाद कहलाता है जिसका कोई सिधान्त नहीं बन सकता ।
बेन्थम के निकृष्ट (मात्रात्मक) उपयोगितावादी नैतिक सुखवाद का एक सारणीबद्ध
तत्व | विवरण (हिंदी में) | Description (in English) |
सिद्धांत का नाम | निकृष्ट उपयोगितावादी नैतिक सुखवाद | Quantitative Utilitarian Hedonism |
प्रवर्तक | जेरेमी बेन्थम (Jeremy Bentham) | Jeremy Bentham |
मुख्य उद्देश्य | अधिकतम लोगों को अधिकतम सुख पहुँचाना | Greatest happiness for the greatest number |
मूल विचार | नैतिकता का मूल्यांकन कार्य के परिणाम से होता है | Morality judged by consequences (Consequentialism) |
सुख का प्रकार | मात्रात्मक (सभी सुख समान) | Quantitative (All pleasures are equal) |
सुख का मापन (Hedonic Calculus) | 1. तीव्रता (Intensity) 2. अवधि (Duration) 3. निश्चितता (Certainty) 4. निकटता (Propinquity) 5. उत्पादकता (Fecundity) 6. शुद्धता (Purity) 7. व्यापकता (Extent) | 1. Intensity 2. Duration 3. Certainty 4. Propinquity 5. Fecundity 6. Purity 7. Extent |
प्रमुख आलोचना | सुख की गुणवत्ता की अनदेखी (सभी सुख बराबर नहीं) | Ignores quality of pleasures |
प्रतिक्रिया | जॉन स्टुअर्ट मिल ने गुणात्मक उपयोगितावाद प्रस्तुत किया | J.S. Mill proposed qualitative utilitarianism |

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