नारीवादी दृष्टिकोण और नारीवादी विचारधारा आज के समाज में अत्यंत महत्वपूर्ण विषय हैं। यह केवल महिलाओं के अधिकारों की बात नहीं करता, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों की व्यापक समझ को भी बढ़ावा देता है। नारीवाद ने समय के साथ अपने स्वरूप और लक्ष्यों में बदलाव किया है, जिससे यह समकालीन संदर्भों में और भी प्रासंगिक हो गया है। इस लेख में हम नारीवादी दृष्टिकोण और विचारधारा की उत्पत्ति, विकास, और आज की दुनिया में उनकी भूमिका पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
नारीवादी दृष्टिकोण क्या है?
नारीवादी दृष्टिकोण के मुख्य तत्व
- समानता: महिलाओं और पुरुषों के बीच समान अधिकार और अवसर।
- सामाजिक न्याय: महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और उत्पीड़न को खत्म करना।
- स्वतंत्रता: महिलाओं को अपने जीवन के निर्णय लेने की स्वतंत्रता देना।
- सशक्तिकरण: महिलाओं को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाना।
नारीवादी विचारधारा का इतिहास और विकास
नारीवादी विचारधारा का इतिहास 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत से जुड़ा है। इस विचारधारा ने महिलाओं के मताधिकार, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए संघर्ष किया। नारीवाद के विभिन्न चरणों ने अलग-अलग मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रथम लहर नारीवाद
द्वितीय लहर नारीवाद
द्वितीय लहर नारीवाद 1960 और 1980 के बीच सक्रिय रही। इस दौर में महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों पर जोर दिया गया। महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, और कार्यस्थल पर भेदभाव जैसे मुद्दे सामने आए। इस लहर ने महिलाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के नए अवसर खोले।
तृतीय लहर नारीवाद
तृतीय लहर नारीवाद 1990 के बाद शुरू हुई और यह अधिक विविधता और समावेशन पर केंद्रित है। इस लहर ने जाति, वर्ग, और लैंगिक पहचान के विभिन्न पहलुओं को समझा। यह नारीवाद महिलाओं के अनुभवों को व्यापक रूप से स्वीकार करता है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व देता है।
नारीवाद की विचारधारा की प्रकृति / प्रकारों को हम निम्न तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं
( १ ) व्यक्तिवादी / उदारवादी नारीवाद - व्यक्तिवादी या उदारवादी नारीवाद के प्रमुख समर्थक जॉन लॉक , मेरी क्राफ्ट , माग्रेट फुल्लर , जे.एस. मिल और बैटी फ्राइडन है । उदारवादी नारीवाद के मुख्य विचार निम्नलिखित हैं
( i ) स्त्रियाँ सर्वप्रथम मानव प्राणी हैं , लेकिन प्राणी नहीं । मानव प्राणी के रूप में स्त्रियों को अपनी क्षमताओं का पूर्ण विकास करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।
( ii ) स्त्रियां उतनी ही विवेकपूर्ण होती है जितने किपुरुष विवेकपूर्ण होते हैं । इसलिये वे अपने आपको अपने विवेक अनुसार निर्देशित करने की योग्यता रखती हैं ।तुलनात्मक शासन एवं राजनीति ५/१७ पुरुषों को प्राप्त होती हैं ताकि वे पुरुषों के समान गुणी व्यक्ति बन सकें ।
( iii ) स्त्रियों को अपनी योग्यताओं का विकास करनेके लिए वैसी ही शिक्षा सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए जैसी कि ताकि वे आर्थिक दृष्टि से आत्म निर्भर हो सकें और विवाह को जीवन निर्वाह के साधन के रूप में स्वीकार न करें ।
( iv ) स्त्रियों को अपनी जीवन - वृत्ति ( Career ) अथवा किसी भी व्यवसाय को चुनने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए ।
( v ) स्त्रियों को पुरुषों के समान नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए ।
( vi ) स्त्रियों को अपनी इच्छानुसार विवाह करने अथवा अविवाहित रहने की स्वतन्त्रता होनीचाहिए ।
( vii ) विवाह दो स्वतन्त्र और समान व्यक्तियों के बीच समझौता है और इसका आधार सम्बन्धित पक्षों की परस्पर सहमति हैं ।
( viii )कानूनी दृष्टि से विवाह में स्त्री को सम्पत्ति के अधिकारों के सम्बन्ध में पुरुष के समान और जिम्मेदार व्यक्ति स्वीकार किया जाना चाहिए । विवाहित स्त्री को अपनी सम्पत्तिऔर कमाई पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए ।
( ix ) पत्नी के रूप में स्त्री को अपने पति के साथ बौद्धिक संगति अथवा मित्रता होनी चाहिए ।
( x )घर में स्त्री के कार्य उसके लिए नीरस नहीं बनने चाहिए ।
( xi ) स्त्रियों को पत्नियों और माताओं के अतिरिक्त अन्य दिशाओं में विकसित होने का प्रयत्न करना चाहिए। उन्हें अपनी योग्यता और क्षमता अनुसार कोई न कोई जीवन - वृत्ति अपनाने का प्रयत्न करना चाहिए । उन्हें स्व - निर्भर होने का प्रयत्न करना चाहिए ।
( २ )समाजवादी या मार्क्सवादी नारीवाद - समाजवादी नारीवाद या मार्क्सवादी नारीवाद के मुख्य समर्थक चार्लस फोरियर , कार्ल मार्क्स , फ्रेडरिक एंजेल्स , अगस्त बेबल ,एलकजेन्ड्रा कोलनताई है । मार्क्सवादी या समाजवादी नारीवाद के मुख्य विचार निम्नलिखित है
१ ) समाजवादी स्त्री मुक्ति प्रश्न को पूंजीवाद के विरुद्ध समाजवाद के संघर्षके भाग के रूप में देखते हैं । समाजवादियों के अनुसार समाज में स्त्री की अधीनता के मुख्य कारण आर्थिक है
२ ) स्त्री की पुरुष पर आर्थिकनिर्भरता आदि ।
३ ) समाजावदी स्त्रियों को पुरुषों की भांति सार्वजनिक उद्योग - धन्धों में लगाना चाहते हैं ।
४ ) समाजवादी स्त्रियों को घरेलू कार्यों से मुक्ति दिलाने केलिए सार्वजनिक रसोईघरों , भोजनालयों , धोबी खानों , केन्द्रीकृत सफाई सेवाओं आदि की व्यवस्था करने का समर्थन करते हैं ।
५ ) एंजेल्स के अनुसार पुरुष ने अपनीनिजी सम्पत्ति को उत्तराधिकार में अपने वंशजों तक पहुंचाने के लिए स्त्री को विवाह द्वारा अपना दास बना कर उसे बच्चे उत्पन्न करने का यन्त्र बना दिया ।
६ ) समाजवादीएक पति एक पत्नी विवाह को स्त्री की अधीनता का कारण मानते हैं । इस प्रथा में स्त्री पत्नी के रूप में एक प्रकार से पति की निजी सम्पत्ति बन जाती है और उस पर पुरुष का पूर्ण अधिकार स्थापित हो जाता है । समाजवादी एक पति- एक पत्नी विवाह की संस्था को समाप्त करना चाहते हैं ।
७ ) समाजवादी निजी परिवार की संस्था काउन्मूलन करन चाहते हैं । निजी परिवार स्त्री की खुले या छिपे रूप में घरेलू दासता पर आधारित हैं । निजी परिवार में घरेलू कार्यों तक ( Bourgeoisie) और स्त्री सर्वहारा (Proletariat ) होती है । परिवार में घरेलू कार्यों तक सीमित रहने के कारण स्त्री को अपनी पूर्ण क्षमताओं का विकास करने काअवसर नहीं मिलता ।
८ ) समाजवादी स्त्रियों को पुरुषों की भान्ति सार्वजनिक उद्योग धन्धों में लगाना चाहते हैं । इससे स्त्रियां पुरुषों के समान सामाजिक भलाई के लिएकार्य करेंगी और आर्थिक दृष्टि से आत्म निर्भर हो जाएंगी ।
९ ) समाजवादियों के अनुसार बच्चों का पालन - पोषण और उनकी देखभाल करना समाज की जिम्मेदारी है ।इस उद्देश्य से वे बच्चों के लिए विशेष उपचार्य - गुहों ( Nursing homes ) ,बाल आहार केन्द्रों ( Kindergartens ) आदि की व्यापक व्यवस्था की जानी चाहिए ।
१० ) समाजवादियों के अनुसार समाजवाद के अन्तर्गतस्त्रियों को पुरुषों के समान शिक्षा , अपनी रुचियों और योग्यताओं के अनुसार अपने लिए व्यवसाय चुनने और पुरुषों के साथ समान परिस्थितियों में कार्य करने का अधिकार होगा । समाजवादियों के अनुसार स्त्री को अपनी इच्छानुसार पुरुष के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित करने या तोड़ने की स्वतन्त्रताहोनी चाहिए । काम वासना की पूर्ति एक निजी मामला है जिसमें समाज को तब तक कोई दखल नहीं देना चाहिए जब तक इससे दूसरों को होई हानि नहीं पहुंचती ।
( ३) उग्र नारीवाद उग्र नारीवाद के प्रमुख समर्थक केट मिल्लट , शुल्लामिथ फायर स्टोन , एस ब्रान मिल्लर है । उग्र नारीवाद की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं
१. उग्र -नारीवादियों के अनुसार समस्त नारी जाति एक उत्पीड़ित वर्ग है जिसे मुक्ति प्राप्त करने के लिए पुरुष प्रधान संस्थाओं के विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए ।
२. उग्र - नारीवादके अनुसार स्त्री के उत्पीड़न - दमन और अधीनता का कारण पितृ तन्त्र ( Patriarchy ) , विवाह और परिवार की संस्थाएं हैं , इसलिए इन तीनोंसंस्थाओं को समाप्त करना चाहिए ।
३. उग्र - नारीवादी पितृ - तन्त्र का विरोध करते हैं क्योंकि इसमें मानव जाति का आधा भाग जो स्त्रियों का है , मानव जाति के दूसरेआधे भाग जो पुरुषों का है , के द्वारा नियंन्त्रित और निर्देशित होता हैं । पितृ - तन्त्र में स्त्रियों का सामाजीकरण इस प्रकार किया जाता है कि वे केवल पत्नियों और माताओंकी भूमिका निभा सकें । व्यापक मानव भूमिकाएं पुरुषों के लिए आरक्षित रखी जाती है ।
४. उग्र - नारीवादियों के अनुसर स्त्री का कोई लैंगिक स्वभाव नहीं हैं । वे यहबात स्वीकार नहीं करते कि स्त्री और पुरुष की कुछ जन्मजात विशेषताएं होती हैं । जिन्हें इस स्त्री की जन्म - जाति विशेषताएं कहते है वे वास्तव में बचपन काल में स्त्रियोंको दी गई शिक्षा और प्रशिक्षण का परिणाम होता है ।
५. उग्र - नारीवादी विवाह और परिवार की संस्थाओं को समाप्त करना चाहते हैं । विवाह स्त्री को पुरुष के साथ बांध कर उसे पुरुष की दासी बना देता है । परिवार में बच्चों का सामाजीकरण इस प्रकार किया जाता है कि पुरुष का स्त्री पर प्रभुत्व बना रहे ।
६. उग्र - नारीदी मुक्त यौनसम्बन्धों का समर्थन करते हैं । उनकी लैंगिक क्रान्ति में सब प्रकार की असीमित लैंगिक गतिविधियां शामिल है ।
७. उग्र - नारीवादी स्त्रियों को प्रजनन के कार्य ( reproduction function ) से मुक्ति दिलाने के लिए बनावटी • साधनों द्वारा बच्चे पैदा करने का समर्थन करते हैं ।
८. उग्र-नारीवादी बच्चों का पालन - पोषण और शिक्षा समस्त समाज की जिम्मेदारी समझते हैं ।
९ . उग्र- नारीवादी लिंग भेद के महत्त्व को समाप्त करके इस संसार कोअभयलिंगी ( audrogynous ) बनाना चाहते है जिसमें सभी व्यक्तियों को पुरुष या स्त्री के रूप में नही बल्कि मानव प्राणियों के रूप में देखा जायेगा
नारीवादी विचारधारा के प्रभाव के उदाहरण
भारत में महिला सशक्तिकरण
वैश्विक स्तर पर नारीवाद
नारीवादी दृष्टिकोण को मजबूत बनाने के उपाय
नारीवादी दृष्टिकोण को और प्रभावी बनाने के लिए समाज के हर स्तर पर प्रयास जरूरी हैं। कुछ महत्वपूर्ण उपाय हैं:
- शिक्षा में सुधार: लैंगिक समानता पर आधारित शिक्षा बच्चों में समानता की भावना विकसित करती है।
- कानूनी सुधार और क्रियान्वयन: महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून और उनका सही पालन आवश्यक है।
- सांस्कृतिक जागरूकता: पारंपरिक रूढ़ियों को बदलने के लिए सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।
- महिलाओं का सशक्तिकरण: आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाना चाहिए।
- डिजिटल सुरक्षा: ऑनलाइन उत्पीड़न से बचाव के लिए कड़े नियम और तकनीकी उपाय अपनाने चाहिए।
नारीवादी दृष्टिकोण का भविष्य
नारीवादी दृष्टिकोण का भविष्य उज्ज्वल है, लेकिन इसके लिए निरंतर प्रयास की जरूरत है। समाज के हर वर्ग को मिलकर काम करना होगा ताकि महिलाओं को पूरी तरह समान अधिकार मिल सकें। यह न केवल महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए लाभकारी होगा।
नारीवादी दृष्टिकोण समाज को अधिक न्यायसंगत, समावेशी और मजबूत बनाता है। यह हमें याद दिलाता है कि समानता केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि एक ज़रूरत है। आने वाले समय में नारीवादी विचारधारा और भी व्यापक रूप से अपनाई जाएगी, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आएंगे।
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